सरगुजा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अंबिकापुर, 23 जुलाई। छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग लंबे समय से जोर पकड़ रही है। यह मुद्दा न केवल सामाजिक और शैक्षिक समानता से जुड़ा है, बल्कि यह राज्य के बहुसंख्यक ओबीसी समुदाय के समग्र विकास और उत्थान का भी सवाल है। ओबीसी महासभा इस मांग को लेकर लगातार सक्रिय है और इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए शासन-प्रशासन से अनुरोध कर रही है।
ओबीसी महासभा ने इस मुद्दे को बार-बार शासन के समक्ष उठाया है। पिछले कई वर्षों से राज्य के सभी जिलों में कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदारों के माध्यम से ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं। इसके बावजूद, शासन-प्रशासन द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने से ओबीसी समुदाय में असंतोष बढ़ रहा है।
महासभा ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे, जिसकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।
ज्ञापन सौंपने के दौरान प्रदेश उपाध्यक्ष एवं सरगुजा संभाग प्रभारी परशुराम सोनी, प्रदेश सचिव सुभाष साहू, संभागीय मीडिया प्रभारी आदित्य गुप्ता, प्रमुख सलाहकार सतनारायण वर्मा, जिला महामंत्री संतोष विश्वकर्मा, जिला कोषाध्यक्ष रघुनंदन सोनी, ब्लॉक मंत्री युगल किशोर वर्मा और प्रकाश दास, अविनाश राजवाड़े सहित अन्य पदाधिकारी मौजूद थे।
ज्ञात हो कि भारत के संवैधानिक ढांचे के तहत सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों को अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। केंद्र सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1990 के दशक में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था। इसके विपरीत, छत्तीसगढ़ में, जो पहले अविभाजित मध्य प्रदेश का हिस्सा था, ओबीसी समुदाय को केवल 14 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, जो उनकी जनसंख्या के अनुपात में काफी कम है।
सूत्रों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में ओबीसी समुदाय की आबादी लगभग 45-52 प्रतिशत है, फिर भी उन्हें शिक्षा और रोजगार में पर्याप्त हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। इससे समुदाय के समुचित विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक और आर्थिक असमानता बढ़ रही है।