राजपथ - जनपथ
बाद में सबके तेवर बदल गए...
पुलिस और जनसंपर्क विभाग में एक समानता रही है, वह यह कि दोनों विभागों में अनुशासन रहता है, और धरना-प्रदर्शन और आंदोलन से दूर ही रहते हैं। सरकार के कामकाज को मीडिया के जरिए जन-जन तक पहुंचाने का जिम्मा जनसंपर्क विभाग का है। राज्य बनने के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब अकेले जनसंपर्क विभाग के अधिकारी-कर्मचारी मंगलवार को सामूहिक अवकाश पर रहे।
जनसंपर्क अफसरों की आपत्ति इस बात को लेकर ज्यादा है कि राप्रसे के जूनियर अफसर को विभाग का संचालक बना दिया गया। जबकि इस पद पर आईएएस ही रहते आए हैं। तर्क यह है कि अपर संचालक स्तर के अफसर का वेतनमान मौजूदा संचालक से ज्यादा है। चूंकि यह विभाग सीएम के अधीन है इसलिए हड़ताल की चर्चा थोड़ी ज्यादा हो रही है। ऐसा नहीं है कि जनसंपर्क के लोग पहली बार मुखर दिख रहे हैं।
रमन सरकार के पहले कार्यकाल में रेल्वे सेवा से आए जयंत देवांगन के जनसंपर्क विभाग के सहायक संचालक के पद पर संविलियन को लेकर भी कुछ इसी तरह का विरोध हुआ था। तब हड़ताल की नौबत नहीं आई, और सरकार ने भी उनकी आपत्तियों को अनदेखा कर जयंत का संविलियन कर दिया था। हड़ताल की नोटिस के बाद नए नवेले आयुक्त दीपांशु काबरा ने दो दौर की बैठक कर विभाग के अफसरों को अपनी तरफ से समझाइश देने की कोशिश भी की।
बताते हैं कि ज्यादातर अफसर दीपांशु के तर्कों से सहमत भी थे, और सोमवार को अपने-अपने काम पर चले भी गए थे। बाद में सबके तेवर बदल गए। देखना है कि सरकार आगे क्या फैसला लेती है।
रजिंदर के पुत्र कर रहे खुज्जी में दौरा
पूर्व मंत्री रजिंदरपाल सिंह भाटिया के निधन के बाद खुज्जी विधानसभा में उनके पुत्र जगजीत सिंह (लक्की) की सक्रियता के पार्टी हल्के में सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। सुनते हैं कि जगजीत सिंह अपने पिता की सियासत को आगे बढ़ाने की मंशा लेकर शारदीय नवरात्रि पर्व में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में बढ़-चढक़र शामिल हो रहे हैं। राजधानी रायपुर के एक सर्वसुविधायुक्त अस्पताल के डायरेक्टर जगजीत सिंह पूर्व में प्रदेश भाजयुमो में मंत्री भी रहे हैं। पिता के गुजर जाने के बाद जगजीत सिंह यह मान रहे हैं कि भाजपा की टिकट के लिए उनका स्वाभाविक हक बनता है। बताते हैं कि पिता के कट्टर समर्थकों और कुछ युवाओं को लेकर जगजीत यह कहने से हिचक नहीं रहे हैं कि खुज्जी में भाजपा की मजबूत नींव उनके पिता यानी स्व. भाटिया ने ही रखी थी। यह बात सियासी स्तर पर नजर भी आती है कि 2008 के बाद से टिकट से वंचित हुए भाटिया ने अपनी जमीनी पकड़ के बूते भाजपा को जीत से महरूम रखा। पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा जीत के लिए तरसती रही।
2013 के चुनाव में भाटिया ने निर्दलीय उम्मीदवार बनकर भाजपा को तीसरे नंबर में धकेल दिया। जगजीत के दौरे से पार्टी में विरोध के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं। यह जगजाहिर है कि अपने प्रभावी राजनीतिक व्यक्तित्व के कारण स्व. भाटिया के पार्टी में विरोधियों की फेहरिस्त लंबी थी। जगजीत सिंह के कदम को दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की प्रारंभिक तैयारी से जोडक़र देखा जा रहा है। कह सकते हैं कि पिता की जमीनी पकड़ का जितना फायदा उन्हें मिलेगा। वहीं अपनी ही पार्टी के सियासी प्रतिद्वंदियों से भी निपटना एक बड़ी चुनौती होगी।
रावण के बहाने मैदान मारने की कोशिश
पॉलिटिक्स में केवल सडक़, नाली, विकास, ठेका, सप्लाई, ट्रांसफर आदि जन कल्याण के काम काफी नहीं होते हैं। इसके लिए जरूरी होता है उस हर गतिविधि में हस्तक्षेप हो, जिसमें भीड़ आती है। यदि आयोजन धार्मिक हो तो दखलंदाजी का फल अधिक मिलता है।
राजधानी रायपुर के बीटीआई मैदान में रावण दहन कौन करे, इस पर खड़ा हुआ विवाद कुछ इसी तरह का है। बीजेपी के नेता कहते हैं कि वहां सालों से वे रावण दहन करते आ रहे हैं, कांग्रेस अब यहां जबरन हस्तक्षेप कर रही है। कल भाजपा नेताओं ने इस मुद्दे को लेकर चक्का जाम भी कर दिया, पर विवाद सुलझा नहीं। कांग्रेसी भी कह रहे हैं कि सालों से वे लोग यहां रावण दहन कर रहे थे। पार्षद और दूसरे भाजपा नेताओं ने कांग्रेस के पंडाल पर आपत्ति जताते हुए कल बीच सडक़ पर धरना दे दिया। मामला फिर भी सुलझ नहीं पाया। उल्टे सडक़ पर बैठने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है।
अब स्थिति यह है कि यहां पर दो दो पंडाल लग गए हैं। प्रशासन के सामने दिक्कत यह है कि किसे वहां से हटाए और किसे रहने दे। भाजपा को बीटीआई मैदान तब भा गया था जब वह सत्ता में थी। अब कांग्रेस सत्ता में है तो उसे भी यहां जुटने वाली भीड़ का महत्व समझ में आ रहा है। हो सकता है की इस बार दोनों की लड़ाई में यहां रावण के दो पुतले अलग-अलग खड़े कर दिया जाए। दर्शकों को दोगुना मजा आएगा।
समिति से सांसद का बाहर किया जाना
संसद मैं वैसे तो विधेयक बहुमत के आधार पर सत्ता पक्ष की मंशा के अनुरूप ही पारित होते हैं पर विपक्ष के लिए संसद की स्थायी समितियां महत्वपूर्ण होती हैं। अनिवार्य रूप से जिनमें उनको जगह दी जाती है और उनके सुझावों को गंभीरता से लिया जाता है। किसी प्रस्तावित विधेयक में खामियां हो तो मुखर रूप से उसे समितयों में रहते हुए ही उठाया जा सकता है। बीते दिनों संसदीय स्थायी समितियों का पुनर्गठन किया गया तो उसमें छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा को बाहर कर दिया गया। खबर यह है कि जिन लोगों की छुट्टी की गई है उनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनकी समिति की बैठकों में उपस्थिति बेहद कम रही। सांसद ही बता सकती हैं ऐसी क्या व्यस्तता थी कि वे इन बैठकों के लिए समय नहीं निकाल पाईं। वैसे भी ज्यादातर पता चलता नहीं है कि राज्यसभा के सदस्य काम क्या करते रहते हैं। अब खबर भी आई है तो काम नहीं करने की।
शिक्षक को डेंगू, रसोइया करा रहा पढ़ाई
शिक्षा मंत्री के खिलाफ कांग्रेस के ही विधायकों का मोर्चा खुलने के बाद जशपुर के जिला शिक्षा अधिकारी निलंबित कर दिए गए लेकिन कुछ तस्वीरें ऐसी हैं जो अधिकारियों के आने-जाने से नहीं बदलती और जनप्रतिनिधि भी इसे लेकर बेपरवाह रहते हैं।
ओडिशा सीमा से लगे फरसाबहार ब्लॉक के सागजोर गांव की प्राथमिक शाला में 53 बच्चे पढ़ते हैं। दूरदराज का स्कूल होने के बावजूद इतने बच्चों का दाखिला अच्छी बात है। मगर यहां बच्चे स्कूल जाते हैं, शिक्षक नहीं पहुंचते। बीते दिनों पता चला कि जो रसोईया बच्चों के लिए खाना बनाता है वही इन्हें पढ़ा भी रहा है। शिक्षक दोनों गायब हैं। सोशल मीडिया के जरिए जब यह जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी को मिली तो पूछताछ हुई। शिक्षक ने तुरंत एक व्हाट्सएप मैसेज डाल दिया जिसमें लिखा कि उसको डेंगू हो गया है और डॉक्टरों ने उसे उन्हें आराम करने की सलाह दी है। डीईओ का माथा ठनक गया। जशपुर जिले में अभी डेंगू ने दस्तक तो दी ही नहीं है फिर शिक्षक शिकार कैसे हो गया। तहकीकात से पता चला कि शिक्षक के ध्यान में अचानक आया कि डेंगू छुट्टी लेने का ठीक बहाना रहेगा। बार-बार एक ही बीमारी, एक ही घिसा-पिटा कारण बताना ठीक नहीं रहेगा। अब इस शिक्षक को जो प्रधान पाठक भी है, नोटिस दी जा रही है कि डेंगू की जांच रिपोर्ट और अस्पताल में चल रहे इलाज की रिपोर्ट जमा करे।