राजपथ - जनपथ
तीसरी लहर की आहट के बीच कामयाबी...
रायगढ़ जिले ने वैक्सीनेशन का जो कीर्तिमान बनाया वह राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है। इस जिले में 100 फीसदी लोगों को सिंगल डोज लग चुके हैं और 30 प्रतिशत ऐसे हैं जिनको दोनों डोज लग चुकी है। जब 45 वर्ष तक के लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया था तब भी प्रदेश में सबसे पहले कीर्तिमान इसी जिले का बना।
रायगढ़ शहर में 100 फीसदी टीकाकरण का लक्ष्य सबसे पहले हासिल किया गया। उसके बाद घरघोड़ा, बरमकेला, पुसौर और तमनार में भी 100 प्रतिशत लोगों को कम से कम एक डोज दे दी गई।
काम इतना आसान भी नहीं था। खरसिया ब्लॉक के करीब डेढ़ दर्जन गांव थे जहां लोगों को टीका लगवाने में रुचि नहीं थी। सारंगढ़ के नगरीय निकाय और करीब 15 पंचायतों में यही स्थिति थी। लोगों को समझाने के लिये अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई और आखिर लक्ष्य का एक चरण पूरा हुआ। वैक्सीन की बार-बार आपूर्ति रुकने के बावजूद यह उपलब्धि हासिल कर ली गई। पर अभी वैक्सीनेशन का अभियान चलेगा, क्योंकि दूसरा डोज तो 70 फीसदी लोगों को लगाया जाना बाकी है। केरल से जब तीसरी लहर का अंदेशा देशभर में फैलने का खतरा मंडरा रहा हो, रायगढ़ जैसी खबर बाकी जिलों से भी जल्दी आने की उम्मीद रखनी चाहिये।
सीएम की दौड़ में भी शामिल नहीं...।
पता नहीं कितने ही खिलाड़ी कप्तान बनना चाहते होंगे, पर रायपुर से लेकर दिल्ली तक किसी तीसरे-चौथे नेता से उनके मन की बात पूछी ही नहीं जा रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को ही देखिये। पूछा तब उन्होंने राज खोला। उन्होंने 26 और 27 अगस्त का अपना तय दौरा रद्द कर दिल्ली जाने का फैसला नहीं लिया। वे पहले से तय जीपीएम और बिलासपुर जिले के दौरे पर हैं। मरवाही में वे फुरसत में, बड़े इत्मीनान से पत्रकारों से मिले। तमाम राजनीतिक सवालों के बीच सीएम की उनकी अपनी दावेदारी को लेकर भी पूछ लिया गया। मरकाम ने भी कह दिया- मैं दौड़ में नहीं हूं। हमारे यहां हाईकमान तय करता है, कौन मुख्यमंत्री होगा, कौन नहीं...। चलिये...एक दावेदारी तो खत्म हुई, मरकाम के बयान से चिंता घटी होगी हाईकमान की...।
संस्कृति विभाग तुम्हारे बाप का नहीं..
रंगमंदिर में एक नाट्य समारोह 1 और 2 सितम्बर को होने जा रहा है। समारोह का नाम है- ‘संस्कृति विभाग तुम्हारे बाप का नहीं’। समारोह के इस अजीबोगरीब शीर्षक की वजह भी जान लीजिये। लॉकडाउन के दौरान मंचीय प्रस्तुतियां लगभग ठप पड़ गई थीं। कुछ नाट्य कलाकारों ने इस अवधि का इस्तेमाल करते हुए कुछ नाटक तैयार किये। अब वे इनकी प्रस्तुति हबीब तनवीर की स्मृति में करना चाहते थे। वे संस्कृति विभाग के एक अधिकारी से सहयोग मांगने गये। जैसा कि कलाकार बताते हैं कि अधिकारी ने उनसे कहा कि अभी मंचीय प्रस्तुति के लिये हमारे पास कोई गाइडलाइन नहीं आई है, आप लोग यह आयोजन ऑनलाइन कर लो। कलाकारों ने कहा- ठीक है, फिर भी साउन्ड लाइट, मंच आदि पर खर्च तो होगा। उनकी बात अधिकारी को पसंद नहीं आई और उन्होंने जवाब में यह कहा- कुछ भी प्रोजेक्ट बनाकर ले आते हो और हमारे कंधे पर रखकर बंदूक चलाते हो। संस्कृति विभाग तुम्हारे बाप का नहीं है। कलाकारों के लिये यह बात चुभने लायक थी। बस, उन्होंने तय कर लिया कि अब समारोह का नाम क्या रखा जाये।