राजपथ - जनपथ
एडवांस लेने-देने वालों में तनातनी
छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन भी ऐसे वक्त पर लगा है जब एक के बाद एक शादियों का मुहूर्त है। अकेले अप्रैल माह में 10 से अधिक शुभ मुहूर्त हैं। पर सब लॉकडाउन की भेंट चढ़ गये। साल भर से कोरोना महामारी के चलते मंगल भवन, बैंड बाजा, कैटरिंग, डीजे, फूल माला, टैक्सी, पार्लर का कारोबार ठप पड़ा हुआ था। इस बार फरवरी माह से ऐसा लगा था कि प्रकोप अब खत्म हो जायेगा। लोगों ने रिश्ते ठीक किये, विवाह भवन, बैंड बाजा, कैटरिंग की एडवांस बुकिंग करा ली। काफी पैसे इसमें निकल गये। कई ने कार्ड भी छपवा डाले। अब अचानक लॉकडाउन लग गया है। ये दौर अगले हफ्ते दस दिन में खत्म हो भी जाये तो भी ऐसे हालात हैं कि बड़ा आयोजन करने की इजाजत मिलने वाली नहीं है। प्रकोप का अचानक छू मंतर होना भी संभव नहीं है।
अब बुकिंग लेने वालों और अग्रिम राशि देने वालों के बीच विवाद हो रहा है। जिन लोगों ने एडवांस दिया, पैसे वापस मांग रहे हैं। लेने वाले कह रहे हैं बुकिंग तो आप कैंसिल कर रहे हैं, हम क्यों वापस करें। हमने भी तो मजदूरों को आपके भरोसे एडवांस दे दिया। एक इवेंट मैनेजर ने तो कह दिया कि हमने तो आपकी बरात के लिये बग्घी और घोड़े भी खरीद लिये हैं। इतनी रियायत दे सकते हैं कि आप तारीख आगे खिसका दीजिये हम बिल में से एडवांस ली गई रकम को कम कर देंगे। आफत है। ये महामारी बीमार ही नहीं, दुश्मन भी पैदा कर रही है।
वर्क फ्रॉम होम की नसीहत
लॉकडाउन को लेकर जिले के कलेक्टरों के कॉपी-पेस्ट आदेशों में एक खास बात यह है कि उन्होंने मीडिया के लोगों को ‘वर्क फ्रॉम होम’ की सलाह दी है। अच्छी सलाह है, मीडिया से जुड़े लोगों की सेहत की परवाह कर रहा है प्रशासन। पर, अफसोस सौ फीसदी ऐसा करना मुमकिन नहीं। घड़ी चौक पर मुस्तैद जवानों की तस्वीर तो घर बैठे मिल जायेगी, पर फाफाडीह में होने वाली पिटाई की रपट घर बैठकर नहीं बनाई जा सकती। सूचनायें मिलने से आम लोगों तक पहुंचाने के बीच किसी ख़बर को कई चरणों से गुजरना पड़ता है। जिस तरह से प्रशासन और पुलिस के कामकाज की पूरी समझ मीडिया को नहीं है, उसी तरह से उन्हें भी मीडिया के काम की एबीसीडी मालूम नहीं है।
यह सलाह मीडिया के काम को कमतर आंकने की है। बीते दो दिनों के भीतर दो पत्रकारों को कोरोना ने लील लिया है। बिलासपुर के प्रदीप आर्य और दुर्ग के जितेन्द्र साहू को। हर शहर में दर्जन, दो दर्जन पत्रकार कोरोना संक्रमित हैं। जाहिर है ये इन खतरों को अपनी जवाबदेही समझकर गले लगा रहे हैं, मनोरंजन के लिये नहीं। अस्पतालों में भर्ती और इस दौरान जरूरी दवाई हासिल करना उन नसीहत देने वाले लोगों की तरह आसान नहीं हैं जो शासन-प्रशासन के अंग हैं। कुछ राजनेताओं ने हाल ही में मीडियाकर्मियों को कोरोना वारियर्स का दर्जा देने की मांग उठाई है और कहा है कि इलाज और वैक्सीनेशन में उन्हें भी स्वास्थ्य, प्रशासन, पुलिस से जुड़े लोगों की तरह प्राथमिकता मिले। पर मीडिया कर्मी ऐसे हैं कि वे इन सुविधाओं को हासिल करने के लिये गिड़गिड़ा नहीं रहे हैं, खतरे मोल कर काम किये जा रहे हैं।
इतने त्यौहार और इतनी वीरानी
नववर्ष, नवरात्रि, चेट्रीचंड, उगादी, गुड़ी पड़वा, बैसाखी, नौरोज़ और कल से रमजान। देश के हर कोने में आज का दिन उत्सवों का है। पर स्वास्थ्य और सुरक्षा का सवाल है। बीते साल की तरह इस बार भी संक्रमण ने इस तरह घेर रखा है कि न तो नववर्ष की जुलूस सडक़ों पर है, न चेट्रीचंड की बाइक रैली दिखाई दे रही है। बैसाखी पर होने वाले भांगड़ा का उत्सव भी फीका पड़ा है। देवी मंदिरों में भक्तों की कतार नहीं लगी है। महामारी शायद सबक दे रही है कि आस्था का प्रदर्शन किये बिना भक्ति कैसे होती है, मन को जगाओ और महसूस करो।