राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : छांछ फूंकती कांग्रेस
02-Jan-2021 3:58 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : छांछ फूंकती कांग्रेस

छांछ फूंकती कांग्रेस

मध्यप्रदेश में सरकार गंवाने के बाद कांग्रेस हाईकमान सतर्क हो गई है, और बाकी कांग्रेस शासित राज्यों में मध्यप्रदेश जैसी स्थिति न बन पाए, इस कोशिश में जुटी है। छत्तीसगढ़ में तो टूट-फूट की संभावना दूर-दूर तक नहीं है। बावजूद इसके हरेक विधायक से फोन पर अलग-अलग सरकार और संगठन को लेकर फीडबैक लिया जा रहा है। इससे पहले तक हाईकमान प्रदेश प्रभारी की रिपोर्ट को ही अंतिम मानकर चलता था, लेकिन अब हाईकमान प्रदेश प्रभारी की रिपोर्ट पर ही निर्भर नहीं रहना चाहता है। कहावत है दूध का जला छांछ को भी फूंक-फूंककर पीता है।

पास्को-आरोपी जिलाध्यक्ष !

भाजपा के मोर्चा-प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों की सूची जारी हो रही है। दुर्ग संभाग के एक जिले में पास्को एक्ट के आरोपी को ही अल्पसंख्यक मोर्चे का जिलाध्यक्ष बना दिया गया। अगले महीने अल्पसंख्यक नेता की पेशी भी है। दिलचस्प बात यह है कि बधाई देने वालों में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के सदस्य यशवंत जैन भी हैं। चर्चा तो यह भी है कि यशवंत की सिफारिश पर नाबालिग से यौन दुव्र्यवहार के आरोपी को पदाधिकारी बनाया गया है। सोशल मीडिया में आरोपी पदाधिकारी बड़े नेताओं के साथ तस्वीर भी वायरल हुई है। अब इसकी शिकायत भी प्रदेश कार्यालय को भेजने की तैयारी है। देखना है कि पार्टी इस मामले में क्या कदम उठाती है।

ऑनलाइन के भरोसे होगी बोर्ड परीक्षा?

सीबीएसई की परीक्षाओं की तारीखों का ऐलान केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री ने कर दिया है। इधर छत्तीसगढ़ में तारीखें अब तक तय नहीं की गई है। हालांकि यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सीबीएसई की तरह दो तीन माह आगे खिसकाकर  छत्तीसगढ़ में भी परीक्षा ली जायेगी। पर इतना भी आगे नहीं किया जायेगा कि अगले सत्र की समय-सारिणी बिगड़ जाये। परीक्षाओं की संभावनाओं को देखते हुए छात्र-छात्राओं में तनाव बढऩे लगा है। ऑनलाइन पढ़ाई से शिक्षक और पालक क्या खुद छात्र भी संतुष्ट नहीं हैं। जो समर्थ हैं वे कोचिंग का सहारा ले रहे हैं। पर जिनकी क्षमता नहीं है वे पिछड़ गये हैं। वे सक्षम बच्चों से बराबरी नहीं कर पायेंगे।

पिछले कई वर्षों से देखा गया है ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे, सरकारी स्कूलों में पढक़र, कम संसाधनों के बावजूद अच्छे नतीजे दे रहे हैं। बीते सत्र में 10वीं और 12वीं दोनों ही कक्षाओं के टॉपर ग्रामीण स्कूलों के विद्यार्थी थे। केन्द्रीय मंत्री ने साफ कर दिया है कि बोर्ड परीक्षा ऑनलाइन आयोजित नहीं की जायेगी। यह मुमकिन भी नहीं है। छत्तीसगढ़ में भी परीक्षायें ऑफ लाइन ही होंगीं।

मध्यप्रदेश सहित कुछ अन्य राज्यों में कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए कक्षायें शुरू कर दी गई हैं पर छत्तीसगढ़ में अब तक इसकी कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई दे रही है।  बोर्ड परीक्षाओं में यदि समर्थ और वंचित विद्यार्थियों के बीच बराबरी की प्रतियोगिता रखनी है तो कक्षाओं को कुछ दिनों के लिये शुरू किया जाना जरूरी है।

लो अब गोबर के उत्पादों की दुकान भी खुल गई

गोबर की सरकारी खरीदी ने इसे लेकर लोगों की सोच में बड़ा बदलाव लाया है। गांवों में गैस सिलेन्डर पहुंचने के बाद इसका कंडे के लिये इस्तेमाल करना भी बंद हो गया था। खाद भी बाजार से खरीद लिया जाता रहा है। इस बीच ख़बरें आई हैं कि गोबर से कुछ लोगों को इतनी कमाई कर ली कि वे कच्चे घरों की पक्की मरम्मत करा रहे हैं और बाइक जैसे साधन भी खरीद रहे हैं। खाद बनाने का काम तो गोठानों में चल ही रहा है, अब गोबर की लकडिय़ां बनाने की मशीन भी आ गई है। इन लकडिय़ों का दाह-संस्कार करने में इस्तेमाल किया जा रहा है। कुछ शहरों नें नगरीय निकायों ने ठंड से बचाव के लिये अलाव जलाने का काम भी गोबर की लकडिय़ों से किया है।

अम्बिकापुर से तो ख़बर है कि वहां गोबर के उत्पादों की दुकान भी खुल गई है। इसे ‘गोबर एम्पोरियम’ नाम दिया गया है। दावा है कि इससे पेड़ों का काटने की नौबत कम आयेगी। जब गोबर खरीदी की योजना छत्तीसगढ़ में लाई गई तो खूब मजाक उड़ा। विरोधी दलों ने कहा कि पढ़े लिखे बेरोजगारों को नौकरी देने की जगह सरकार गोबर बीनने के काम में लगा रही है। लेकिन अब, जैसा कि विभाग के मंत्री ने दावा किया है, दूसरे राज्यों से भी इस योजना के बारे में पूछताछ हो रही है।

धान खरीदी का बंद हो जाना

धान खरीदी के मामले में पैदा हुए अभूतपूर्व संकट का सबसे ज्यादा किसानों को नुकसान हो रहा है। प्राय: सभी जिलों से खबर आ रही है कि धान का उठाव नहीं होने के कारण खरीदी रुक रही है। सरकारी तौर पर इसे घोषित तो नहीं किया गया है पर सोसाइटी में धान पहले ही से इतना जाम है कि अघोषित रूप से खरीदी बंद कर दी गई है। अकेले बिलासपुर जिले में 10 लाख क्विंटल धान जाम होने की खबर है।

राज्य सरकार का कहना है कि हर साल एफसीआई नवंबर महीने में ही धान का उठाव करने का पत्र जारी कर देती है पर इस बार जनवरी महीना आ गया, उठाव न तो शुरू हुआ है न ही इस बारे में कोई आश्वासन दिया गया है। राज्य सरकार का यह भी कहना है कि केन्द्र सरकार ने आश्वासन के मुताबिक बारदाने नहीं दिये। राइस मिलर्स को पुराने बारदाने लौटाने कहा गया पर वे फटे हुए हैं, समिति प्रबंधकों को इनकी मरम्मत करने में पसीना बहाना पड़ रहा है। किसान अपने खर्च से बारदाने की व्यवस्था कर रहे हैं।

बताया जा रहा है, राजीव न्याय योजना के अंतर्गत धान पर समर्थन मूल्य के अतिरिक्त दी जाने वाली राशि को लेकर केन्द्र को आपत्ति है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे केन्द्र की योजना किसान सम्मान निधि की तरह बताया है। प्रदेश में 2500 रुपये क्विंटल से हो रही धान खरीदी ने बाकी फसलों के प्रति किसानों की रुचि कम कर दी है। जबकि बस्तर, सरगुजा और दूसरे इलाकों में गन्ना, आलू जैसी ज्यादा लाभकारी फसलें भी ली जा रही हैं। हो सकता है कि धान के उठाव का संकट दो चार दिनों में खत्म हो जाये पर वह स्थायी समाधान नहीं है। समस्या हर साल खड़ी होने वाली है।

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने फसल चक्र परिवर्तन का अभियान चलाया था। उनकी सरकार के जाने के बाद इस पर आगे काम नहीं हुआ। अब वक्त है कि धान के अलावा दूसरी फसलें लेने पर विचार किया जाये। और सरकार इन फसलों को धान की तरह ही अच्छी कीमत देकर प्रोत्साहित करे। 

कोरोना के अलग हुई मौतें

जब कोई बड़ी चोट लगती है तो लोग पहले की तकलीफ भूल जाते हैं। साल 2020 में कोरोना ने इतना दर्द दिया कि लोग बाकी बीमारियों, मौतों को मामूली समझने लगे। पर दरअसल ऐसा हुआ नहीं। सरगुजा जिले से एक रपट है कि वहां बीते सालभर में हुए हादसों में 650 से ज्यादा लोगों की जान गई। ये वे मौतें हैं जिनमें पोस्टमार्टम कराने की नौबत आई। ज्यादातर सडक़ हादसे हैं। अम्बिकापुर में ही सामान्य मौतों की संख्या तो करीब 2300 है जो श्मशान गृह और नगर निकाय के दस्तावेजों में दर्ज हैं। और इन सबके बीच कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या बहुत कम केवल 90 है।

इससे मिलता-जुलता आंकड़ा दूसरे जिलों का भी हो सकता है। कोरोना से बचाव के लिये हर जिले में करोड़ों रुपये की नई स्वास्थ्य सुविधायें, संसाधन उपलब्ध कराये गये। अभियान चला अर्जेंट और इमरजेंसी मोड पर। शुक्र है, अब कोविड अस्पतालों के बिस्तर दूसरी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये काम आयेंगे क्योंकि हर जिले में प्राय: 75 प्रतिशत बेड खाली हो चुके हैं। बात ये है कि कोरोना से भी ज्यादा लील लेने वाले सडक़ हादसों को रोकने के लिये भी ऐसी ही कोई मुहिम क्यों नहीं चलाई जाती?  सडक़ों में सही संकेतक हों, लोग हेलमेट पहने, ओवरस्पीड न चलें, शराब पीकर न चलें, वैध ड्राइविंग लाइसेंस रखें, गड्ढ़ों को ठीक करें। शायद यह बंदोबस्त कोरोना पर किये गये खर्च से भी कम बजट में हो जायेगा।

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