राजपथ - जनपथ
सरोज पांडेय की बारी आएगी?
चर्चा है कि बिहार चुनाव के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल हो सकता है। इसमें छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय का नंबर लग सकता है। वैसे अभी छत्तीसगढ़ से रेणुका सिंह अकेली मंत्री हैं । वे भी यहां कोई प्रभाव छोडऩे में सफल नहीं रही हैं। ऐसे में सरोज को भी मंत्रिमंडल में जगह मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सरोज, अमित शाह की टीम में राष्ट्रीय महामंत्री के पद पर थीं। मगर टीम नड्डा में उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य तक नहीं बनाया गया।
ऐसे में पार्टी के भीतर रमन सिंह की ताकत बढऩे और सरोज की हैसियत कम होने के भी कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि सरोज को करीब से जानने वाले लोग इससे इंकार कर रहे हैं। हल्ला है कि पिछले दिनों सरोज के लिए तगड़ी लॉबिंग भी हुई है। इसके बाद से उन्हें मंत्री बनाने की अटकलें लगाई जा रही है। वैसे भी कुछ लोगों का कहना है कि पार्टी हाईकमान रमन सिंह को अकेले फ्री हैंड देने के पक्ष में नहीं है। इसलिए सरोज को अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। देखना है कि आगे-आगे होता है क्या।
भाजपा बूथ प्रबंधन अमित देख रहे हैं ?
जोगी परिवार मरवाही के चुनाव मैदान से भले ही बाहर है, लेकिन अमित जोगी, परिवार का दबदबा बरकरार रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। रेणु जोगी और अमित मरवाही में ही डटे हैं। रेणु जोगी न्याय यात्रा निकालने की अनुमति मांगी थी, मगर आयोग ने अनुमति देने से मना कर दिया। अमित जोगी खुले तौर पर कांग्रेस का विरोध कर रहे हैं, इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलने की उम्मीद है।
कांग्रेस के खेमे से खबर छनकर आई है, उसके मुताबिक अमित जोगी भाजपा प्रत्याशी का चुनाव संचालन कर रहे हैं। भाजपा का बूथ प्रबंधन खुद अमित देख रहे हैं। चुनाव प्रबंधन और खर्च भी कुछ हद तक अमित की राय के अनुसार हो रहा है। अमित के चुनाव प्रबंधन की कुशलता किसी से छिपी नहीं है। पिछले चुनाव में अजीत जोगी को 70 हजार वोट मिले थे।
अगर अमित अपनी पार्टी के आधे वोटों को भी भाजपा के पक्ष में मोडऩे में कामयाब होते हैं, तो चुनाव नतीजे बदल सकते हैं। हालांकि कांग्रेस के लोगों का मानना है कि ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि लोगों ने अजीत जोगी को देखकर ही वोट दिया था। अमित के कहने पर वोट ट्रांसफर नहीं होंगे। मगर अमित की सक्रियता ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है।
आपदा में अवसर...
कोरोना के खतरे के चलते आपदा में एक अवसर भी है। छोटे बच्चों को अभी से सावधानी सिखाने का एक बड़ा मौका आया है। उन्हें लेकर कहीं बाहर जाना हो, तो उन्हें मास्क पहनाकर ले जाएं, घर पर बार-बार हाथ धोना हो तो उनके सामने हाथ धोएं, और उसकी चर्चा भी करें। खुद ऑक्सीमीटर से अपनी जांच कर रहे हों तो बच्चों को भी सिखाएं क्योंकि इसमें कोई खतरा नहीं है। ऐसे ही एक बच्चे ने बाहर जाते हुए जब उसे मास्क पहनाया गया, तो उसने अपने खिलौने के भालू को भी मास्क पहना दिया।
आज की जवान, अधेड़, और बूढ़ी पीढ़ी को अगर अपने-अपने बचपन से ऐसी सावधानियां सिखाई गई होतीं, तो आज भारत में संक्रमण इतना नहीं फैला होता। हिन्दुस्तानी मिजाज से लापरवाह हैं, गंदगीपसंद हैं, और इस वजह से कोरोना अधिक फैला, यह एक अलग बात है कि लोग कोरोना से जल्दी उबर भी गए क्योंकि हिन्दुस्तानियों को बीसीजी जैसे टीके लगते आए हैं, और यहां के लोगों की प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है।
मोहल्लों में गूंजतीं नई-नई आवाजें!
लॉकडाऊन के बाद कारोबार बंद हुआ, तो सबसे छोटे लोग सबसे बुरी तरह बेरोजगार हुए। उनका काम तो वैसे भी रोज की मजदूरी या रोज की कमाई का रहता था, और वे बड़े दुकानदारों की तरह कुछ महीने जिंदा रहने की ताकत नहीं रखते थे। नतीजा यह हुआ कि फल-सब्जी से लेकर झाड़ू और वाइपर जैसे सामान लेकर लोग कॉलोनियों में सुबह 7 बजे के भी पहले से निकल पड़ते हैं। उनमें से अधिकतर ऐसे हैं जिनकी आवाज पहले कभी इन सडक़ों पर गूंजी नहीं थी। लेकिन पापी पेट का सवाल है तो हर मुंह जोर-जोर से आवाज लगाने लगा है। बहुत से ऐसे छोकरे ठेलों पर सामान लिए घूमते हैं जिस उम्र के लडक़े पहले कभी काम करते नहीं दिखते थे। कुछ छोटे बच्चे भी हैं जो अपने मां-बाप के साथ, या किसी और के साथ ठेले या ऑटोरिक्शा पर सामान लिए चलते हैं, और जाहिर है कि घूम-घूमकर बेचने के काम में कुछ पैसा उनको भी बचता होगा, या उनके घर के काम में कुछ मदद मिलती होगी।
कुछ बहुत बुजुर्ग आदमी-औरत भी सामानों की फेरी लिए भटकते हैं, और सोशल मीडिया पर कई लोग यह लिखने लगे हैं कि बड़े सब्जीवालों के मुकाबले इन लोगों से खरीदना चाहिए, और मोलभाव भी नहीं करना चाहिए।