राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मीडिया के दूसरे धंधों से नुकसान
11-Oct-2020 7:28 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मीडिया के दूसरे धंधों से नुकसान

मीडिया के दूसरे धंधों से नुकसान

एक वक्त था जब यह माना जाता था कि अखबार निकालने वाले लोगों का कोई और कारोबार नहीं रहना चाहिए क्योंकि दूसरी कारोबारी दिलचस्पी अखबार को ईमानदार नहीं रहने देती। लेकिन वह पुराने फैशन की बात हो गई। अब तो अखबार ही अकेले नहीं रह गए, मीडिया के नाम से टीवी चैनल भी आ गए, और समाचार-पोर्टल भी। अब अखबार शब्द के साथ जुड़ी हुई गंभीरता और ईमानदारी दोनों शब्द चल बसे हैं। अब यह समझना नामुमकिन सा हो गया है कि मीडिया कहे जाने वाले कारोबार का घाटा पूरा होता कहां से है, कैसे पूरा होता है, और उसके लिए क्या-क्या समझौते करने पड़ते हैं, कैसे-कैसे सौदे करने पड़ते हैं।

लेकिन पाठक भी जैसे पहले फुटपाथ पर हरेक माल बारह आना वाले से सामान खरीदना बेहतर समझते थे, आज भी वे उसी तरह सबसे सस्ता मिलने वाला अखबार, मुफ्त में सनसनी देने वाला टीवी चैनल बेहतर समझते हैं। जब लोग ही मनोहर कहानियां चाहते हैं, और उसे भी मुफ्त में चाहते हैं, तो दिनमान और रविवार जैसी पत्रिकाओं को तो बंद होना ही था।

मीडिया के जब दूसरे कारोबार भी रहते हैं, तब उसका क्या नुकसान होता है, यह छत्तीसगढ़ इन दिनों अच्छी तरह देख रहा है, और भुगत भी रहा है।

छुट्टी के लिये कोरोना की खरीदी

एक अफसर बीते एक माह से दफ्तर नहीं आ रहे हैं। पहले उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई, होम आइसोलेशन में रहे फिर जब ठीक होकर काम पर निकलने का दिन आया तो उसके परिवार के एक दूसरे सदस्य की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। इस अफसर के बारे में बताया जा रहा है कि रिपोर्ट पॉजिटिव बताने के लिये उन्होंने कोरोना के एक प्राइवेट जांच सेंटर से बात की थी। शिकायत मिल रही है कि कई सरकारी विभागों के अधिकारी-कर्मचारी कोरोना पॉजिटव रिपोर्ट खरीद रहे हैं ताकि उन्हें लम्बी छुट्टी मिल जाये। इसके लिये हजार, दो हजार रुपये खर्च करने के लिये वे तैयार हो जाते हैं। सरकारी जांच में नहीं, निजी जांच सेंटर्स में यह सौदा किया जा रहा है। कोरोना महामारी है। इसके बहाने दफ्तरों में वैसे भी कामकाज बंद जैसा है। सरकार ने खुद भी बड़ी रियायतें दे रखी हैं। रोटेशन में दफ्तर आने के लिये कहा गया है ताकि भीड़ न बढ़े। पर सिर्फ छुट्टी के लिये ऐसी हेराफेरी किया जाना कहीं से भी सही नहीं है।

कोरोना के चलते आंखों पर असर

अम्बेडकर हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने एक दिलचस्प और जरूरी अध्ययन किया है। उन्होंने बताया कि कोरोना के चलते घरों में कैद रहने के कारण मोबाइल फोन, डेस्कटॉप, लैपटॉप बिताये जाने वाले समय में काफी बढ़ोतरी हो गई है। इसका औसत एक से दो घंटे होता था अब 8 घंटे तक जा पहुंचा है। आंखों के सूखापन और लाल हो जाने की शिकायत लेकर अब डॉक्टरों के पास ज्यादा लोग पहुंच रहे हैं। स्कूल, कॉलेज अब तक खुले नहीं हैं और ज्यादातर पढ़ाई ऑनलाइन ही चल रही है। आंखों को ऐसी हालत में दुरुस्त रखने के लिये उनके कुछ सुझाव भी हैं जैसे 20 मिनट के अंतराल पर कम से कम 20 सेकेन्ड के लिये स्क्रीन से नजऱ हटा दी जाये। स्क्रीन को देखने के लिये दूरी 20 इंच कम से कम होनी चाहिये। गेंद खेलकर, हरियाली को देखकर आंखों को राहत पहुंचाने का काम किया जाना चाहिये।

कोरोना महामारी के बाद भी कई चीजें स्थायी हो जायेंगी, हमारी आदत में शामिल हो जायेंगी। इसमें डिजिटल गैजेट्स का इस्तेमाल भी एक होगा। ऐसी हालत में आंखों पर पडऩे वाले असर की तरफ चिंता करना जरूरी है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news