राजपथ - जनपथ
कितना? बता देना..
प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों कोरोना तेजी से फैल रहा है। कुछ जिलों में संक्रमण रोकथाम के लिए गंभीरता से काम हो रहे हैं, तो एक-दो जिलों में बड़े अफसर मलाई छानने में लग गए हैं। ऐसे ही एक जिले में रेत के अवैध परिवहन के नाम पर उगाही की चर्चा स्थानीय लोगों की जुबान पर है।
जिले के आला अफसर ने तो लेन-देन के लिए सारे पर्दे गिरा दिए। हुआ यूं कि जिला प्रशासन के निर्देश पर अवैध परिवहनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की गई और दस गाडिय़ों को जब्त कर लिया गया। परिवहन ठेकेदार भागे-भागे एक सीनियर विधायक के पास पहुंचे। विधायक महोदय ने आला अफसर को तत्काल फोन लगाकर प्रकरण को निपटाने के लिए कहा।
विधायक ने ठेकेदारों को अफसर से मिलने की सलाह देकर रवाना किया। दो ठेकेदार अफसर से मिलने पहुंच भी गए। मगर अफसर ने एक को ही अंदर बुलवाया। और बिना लाग-लपेट के गाड़ी छोडऩे के एवज में डिमांड कर दी। ठेकेदार ने थोड़ा संकोच करते हुए 50 हजार देने की पेशकश कर दी। इस पर अफसर ने परिवहन ठेकेदार को बुरी तरह फटकारा और यह तक कह दिया कि किसी पटवारी से बात नहीं कर रहे हो, सोच समझकर जवाब दो। बाद में अफसर ने अपना पर्सनल नंबर देकर कहा कि कितना दे सकते हो, बता देना। कोरोना महामारी के दौर में जिला प्रशासन के बड़े अफसर द्वारा जिस अंदाज में उगाही की जा रही है, इसकी काफी चर्चा है।
डेढ़ साल में किसान-गरीबों को 70 हजार करोड़ !
यह राशि सुनने में बहुत बड़ी लगती है और है भी। इतनी रकम राहत, अनुदान, बोनस, प्रोत्साहन के रूप में प्रदेश के किसानों, युवाओं, आदिवासियों, महिलाओं के खातों में पिछले डेढ़ साल के भीतर पहुंचाई जा चुकी है। इस बात का खुलासा खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज रेडियो कार्यक्रम लोकवाणी में किया। 70 हजार करोड़ का मतलब है राज्य के एक साल के बजट के बराबर की रकम। ऐसा तब हुआ है जब छत्तीसगढ़ कोरोना के प्रकोप से लगातार जूझ रहा है। आर्थिक गतिविधियों को बनाये रखना और साथ-साथ बीमारी पर काबू पाना बड़ी चुनौती है। बीते लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में राहुल गांधी ने सरकार बनने पर प्रत्येक परिवार के खाते में न्याय योजना के अंतर्गत 72 हजार रुपये देने का वादा किया था। कर्ज माफ कर, किसानों को केन्द्र की मनाही के बावजूद धान की सर्वाधिक कीमत देकर और अब तो गोबर खरीदी के जरिये भी ग्रामीणों के खाते में पैसा पहुंचाया रहा है। कांग्रेस मानती है कि गरीबों के हाथ में पैसा रहेगा तब लोग खर्च कर सकेंगे और उससे बाजार में पैसा आयेगा, उत्पादन और व्यापार को मजबूती मिलेगी। लोकवाणी में राजनीतिक बातें नहीं की जाती पर कुछ ऐसे विषयों पर, जिनका इस कोरोना काल में आम लोगों पर बेहद असर पड़ा है, केन्द्र सरकार की मुख्यमंत्री ने आलोचना की। उन्होंने जीडीपी के 24 फीसदी तक गिरने, 10 फीसदी विकास दर के लक्ष्य की जगह 3 प्रतिशत से भी नीचे चले जाने का जिक्र किया। अमेरिका का उदाहरण भी दिया कि कोरोना का संकट वहां भी है पर विकास दर 10 फीसदी ही नीचे गया। उन्होंने समावेशी विकास का मतलब बताया-सबको साथ लेकर किया जाने वाला विकास। यह बात सही है कि जो 70 हजार करोड़ रुपये गरीबों के हाथ में पहुंचे हैं उसे किस तरह से खर्च करेंगे उनकी अपनी समझ है पर यह तो देखा जाना ही चाहिये कि ये राशि अनुत्पादक कार्यों में तो खर्च नहीं की जा रही, क्योंकि लक्ष्य उनकी आर्थिक मदद ही नहीं, सामाजिक स्थिति को भी ऊपर उठाने का है। यह राशि सिर्फ जरूरतमंदों को ही मिल रही है या सक्षम लोगों को भी मिलती जा रही है, यह भी सवाल भी करदाता आम करदाताओं के मन में है।
हिन्दी दिवस और सरकारी अंग्रेजी स्कूल
कल हिन्दी दिवस है। बहुत से निजी स्कूलों में अंग्रेजी-हिन्दी दोनों ही माध्यमों में शिक्षा दी जाती है। अंग्रेजी में प्रवेश के लिये ज्यादा मारामारी रहती है। प्रदेश के सरकारी स्कूल से अभिभावकों का मोहभंग होता जा रहा था इसकी एक वजह यह भी मानी जा रही थी कि इनमें अंग्रेजी माध्यम ने पढ़ाई नहीं होती। सरकार ने इस शिक्षण सत्र से प्रदेश में 40 उत्कृष्ट अंग्रेजी स्कूल खोलने का निर्णय लिया। ज्यादातर स्कूलों का सेटअप तैयार है और जैसे ही कोरोना प्रकोप घटेगा उनमें नियमित कक्षायें शुरू हो जायेंगीं। सेटअप इस अवधारणा के साथ किया गया है कि वह निजी स्कूलों को टक्कर दे सके। रायपुर में शुरूआती दिनों में ही जिन अंग्रेजी स्कूलों में प्रवेश के लिये आवेदन मंगाये गये 17-18 सौ आवेदन पहुंच गये। उपलब्ध सीटों से कई गुना ज्यादा। प्रदेश में कमोबेश हर स्कूल में यही स्थिति है। इसके चलते प्रवेश देने के लिये 2-3 किलोमीटर का दायरा तो कहीं पहले आओ-पहले पाओ तो कहीं-कहीं लॉटरी सिस्टम का भी फार्मूला रखा गया है। वैसे एक मापदंड और रखा जाना चाहिये कि प्रथम श्रेणी व प्रशासनिक सेवा के बच्चों को जरूर दाखिला मिले। इससे जिस उत्कृष्ट स्कूल की कल्पना की गई है उसे बचाये रखने के लिये ये अधिकारी ध्यान देंगे। इधर, निजी स्कूलों में, खासकर बड़े ब्रांड वाले अंग्रेजी स्कूलों में हिन्दी बोलने पर जो सलूक बच्चों के साथ किया जाता है वह बहुत विवादों में रहता है। परिसर में बोलचाल भी उन्हें अंग्रेजी में ही करनी होती है, कई जगह तो फाइन करने की शिकायत भी मिलती रहती है। छत्तीसगढ़ का माहौल देखें तो स्कूल से निकलने के बाद बच्चों को व्यवहार में जगह-जगह हिन्दी से ही वास्ता पड़ता है। वे हिन्दी अंकों, शब्दों को तो समझ पाते नहीं, अंग्रेजी भी ठीक तरह से नहीं बोल पाते। उम्मीद की जानी चाहिये कि सरकारी स्कूलों में हिन्दी बोलने वालों को ऐसी हीनता से बचाकर रखा जायेगा।