राजपथ - जनपथ
शराब दुकानों की भीड़
छत्तीसगढ़ में 40 दिन के लॉकडाइन के बाद सोमवार से शराब की दुकानें खुलीं। राजधानी रायपुर से लेकर पूरे प्रदेश की तमाम जगहों से शराब दुकानों में भीड़ के नजारे देखने मिल रहे हैं। सुबह दुकान खुलने से पहले ही वहां मदिराप्रेमी इक_ा होने शुरु हो गए थे और थोड़ी ही देर में दुकानों पर कई सौ मीटर की लंबी लंबी कतारें दिखाई देने लगी। वॉकर के सहारे भी चलकर लोग शराब लेने पहुंचे थे, तो कोई अपने साथ परिवार के सदस्यों के साथ लाइन में खड़े थे। कोरोना युग में किसी को इस बात का ध्यान नहीं था कि पर्सनल या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है। हालांकि लोग मास्क या गमछा बांधकर जरुर आए थे, लेकिन कोरोना से ज्यादा भय इस बात का था कि कोई पहचान न लें। इस लिहाज से उनके लिए गमछा या मास्क जरुर उपयोगी साबित हुआ। शहर से दूर या गांव के इलाकों में खेत-खलिहान तक में लाइन लगी हुई थी। कुल मिलाकर शराब के लिए लोगों की तड़प का अंदाजा लाइन देखकर लगाया जा सकता था। दूसरी तरफ शराब दुकानों पर मदिराप्रेमियों की भीड़ देखने के लिए मीडिया के लोगों के साथ-साथ आम लोग भी मोबाइल कैमरे के साथ तैनात थे। लिहाजा शराब प्रेमी बचते बचाते शराब लेते दिखाई दिए। उधर, सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म शराब दुकानों के वीडियो और तस्वीरों से भरे पड़े हैं। इसके साथ लोग सरकारों को कोस भी रहे हैं कि ऐसे महामारी के समय में शराब दुकान खुलवाकर अपनी नीयत को जाहिर किया है, लेकिन लोग जानते हैं कि उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने 15 दिन पहले शराब और बीयर बनाने वाली डिस्टलरी को खोलने का आदेश दे दिया था। वहां तो बीजेपी की सरकार है और उसके मुखिया एक योगी हैं। ऐसे में कांग्रेस शासित राज्यों में बीजेपी के लोगों को तो विरोध करने का हक ही नहीं बनता। खैर राजनीति में तो आरोप-प्रत्यारोप एक आम बात है। विपक्षी दल का काम ही है कि सरकार की नीतियों और कामकाज की आलोचना करे। वही दल सत्ता में आता है तो उसका भी आचरण वैसे ही हो जाता है।
स्कूटर सवार सीएस के अफसर
कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए केन्द्र हो या राज्य, हर संभव कोशिश कर रही है। ऐसे मौके पर प्रशासन की भूमिका बेहद अहम रहती है। मगर प्रदेश में एक-दो जिलों में कलेक्टरों का रवैया गैर जिम्मेदाराना रहा है। सुनते हैं कि सीमावर्ती जिले के एक कलेक्टर के खिलाफ तकरीबन रोजाना शिकायत कमिश्नर तक पहुंच रही है। कमिश्नर ने कलेक्टर के गैरजिम्मेदाराना रूख की शिकायत प्रशासनिक मुखिया तक पहुंचाई है। मगर कलेक्टर इससे बेपरवाह हैं। वे आम लोग तो दूर, कुछ सीनियर अफसरों और जनप्रतिनिधियों का भी फोन नहीं उठाते। अक्सर उनका मोबाइल बिजी मोड में रहता है।
एक सीनियर अफसर बताते हैं कि ट्रेनिंग के दौरान आम लोगों की शिकायतें सुनने की सीख दी जाती रही है। अविभाजित मध्यप्रदेश में तो कलेक्टर सुविधाएं न होने के बावजूद आम लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए इतने तत्पर रहते थे कि वे साइकिल या अन्य दोपहिया वाहन से लोगों के बीच पहुंच जाते थे। खुद मौजूदा सीएस आरपी मंडल भी सडक़-सफाई व्यवस्था देखने के लिए अक्सर स्कूटर से निकल जाते हैं। मगर नए कलेक्टर, सीएस की कार्यप्रणाली से भी कोई प्रेरणा नहीं ले रहे हैं। सीमावर्ती जिले के इस कलेक्टर की हरकत से अब कोरोना के मामले में उनका जिला संवेदनशील होता जा रहा है।
मजदूर भी मंजूर नहीं
छत्तीसगढ़ के जिले-जिले से मनरेगा में मजदूरी देने के जो आंकड़े आ रहे हैं, वे कामयाबी पर हैरान करते हैं. यह राज्य देश में रोजगार देने में अव्वल साबित हो रहा है. जबकि गाँव में हालत यह है कि जगह-जगह लोगों ने सडक़ें काट दी हैं, बाहर के किसी को गाँव में घुसने नहीं दिया जा रहा. प्रधानमंत्री सडक़ योजना के लोगों को जाकर काम नहीं करने दिया जा रहा. किसी ने ठीक ही कहा था कि कोरोना से सावधानी में गाँव आगे हैं, वे अधिक सतर्क हैं. शहरी कॉलोनियों में तो लोग दूसरे शहर से आकर घर घुस जा रहे हैं, लेकिन गाँव में तो आये हुए लोगों को बाहर ही स्कूल जैसी किसी बिल्डिंग में ठहरा दिया जा रहा है. सरकारी रोजगार के कामों में इस वजह से भी दिक्कत आ रही है।