राजपथ - जनपथ
स्थानीय और बाहरी का मुद्दा
प्रदेश के सबसे बड़े निजी अस्पताल रामकृष्ण केयर में डॉक्टरों और प्रबंधन के बीच झगड़ा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। कभी अस्पताल के सर्वेसर्वा रहे सर्जन डॉ. संदीप दवे की हिस्सेदारी बहुत कम रह गई है। अस्पताल प्रबंधन पूरी तरह टैक्सास की कंपनी के हाथों में हैं।
सुनते हैं कि विवाद के लिए कंपनी प्रबंधन के साथ-साथ स्थानीय डॉक्टर भी जिम्मेदार हैं। अस्पताल में मरीजों के साथ भारी भरकम राशि वसूलने और अव्यवस्था की शिकायत के चलते कंपनी ने दिल्ली से एक सीईओ बिठा दिया था। महिला सीईओ अस्पताल में गतिविधियों पर बारीक नजर रखे हुए थी। अस्पताल में वीआईपी मरीजों की देखरेख पर पूरी ताकत झोंक दी जाती थी, और बाकी मरीज भीड़ की शक्ल में बैठे रहते थे, महंगा बिल चुकाने के बावजूद।
अस्पताल में कई नामी डॉक्टर हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि वे कभी अस्पताल में समय पर नहीं आते थे। दूर-दराज से आए मरीजों को काफी इंतजार करना पड़ रहा था। एक प्रतिष्ठित डॉक्टर ने तो यह तक कह दिया था कि ओपीडी में वे 15 मरीज से ज्यादा नहीं देखेंगे। प्रबंधन ने उनकी बात तुरंत मान ली और बाकी मरीजों के देखने के लिए उन्हीं के बराबर योग्यता वाले चिकित्सक को बाहर से बुलाकर नियुक्ति दे दी। कई और चिकित्सकों की नियुक्ति की गई। यही नहीं, अस्पताल में कई बीएएमएस डॉक्टर काम कर रहे थे, जिन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। कुल मिलाकर अब तक अस्पताल में एकाधिकार खत्म होने से स्थानीय और बाहरी डॉक्टरों का विवाद खड़ा करने की कोशिश भी हो रही है। मरीजों के लिए राहत की बात यह है कि कई बेहतर डॉक्टर आए हैं और इलाज भी समय पर हो रहा है। दूसरी तरफ जानकार गैरडॉक्टरों का कहना है कि यह पूरी तरह से एक कारोबारी झगड़ा है, जिसमें क्या स्थानीय और क्या बाहरी? बाबा रामदेव ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामानों के खिलाफ बवाल खड़ा किया था, और अपने सामानों को देशपे्रम से जोड़ दिया था, लेकिन भावनाओं के ठंडे होने के साथ-साथ अब रामदेव के सामानों का बाजार भी ठंडा हो चला है, और उनके इश्तहार टीवी से तकरीबन गायब ही हो चुके हैं। कुछ स्थानीय डॉक्टरों का कहना है कि राज्य के सबसे महंगे अस्पतालों के मालिक स्थानीय रहें, या बाहरी, इससे मरीज के बिल पर कोई फर्क पड़ता है क्या?
तबादला लिस्ट में नामी अफसर
सरकार बदलने के बाद सोमवार को 68 राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के तबादले की सूची जारी की गई। सूची में पहला नाम तीर्थराज अग्रवाल का है जिनके खिलाफ लारा एनटीपीसी मुआवजा घोटाले में अपराधिक प्रकरण दर्ज है और उन्हें निलंबित भी किया गया था। अग्रवाल एक बड़े भाजपा नेता के भांजे हैं। मामाजी बड़े पद पर थे, तो घोटाले पर पर्दा डाल तीर्थराज को जल्द बहाल कर अहम जिम्मेदारी भी दे दी गई। उन्हें भाटापारा-बलौदाबाजार जिले में पोस्टिंग मिल गई।
सरकार बदलते ही स्थानीय कांग्रेस नेताओं की शिकायत पर तुरंत उन्हें हटाकर बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में पदस्थ किया गया। इसके बाद तीर्थराज को वहां से हटाकर जांजगीर-चांपा जिला पंचायत का सीईओ बना दिया गया। जो कि हर लिहाज से यह अहम पोस्टिंग मानी जाती है। सूची देखकर कांग्रेस नेता भी हैरान हैं कि आखिर ऐसे विवादित-दागदार अफसर को इतना अहम दायित्व कैसे मिल गया?
दूसरी तरफ रायपुर के तहसीलदार रहते हुए कई आरोप झेलने वाले पुलक भट्टाचार्य पिछली सरकार के परिवहन मंत्री राजेश मूणत की आंखों के तारे थे, वे पहले दुर्ग के आरटीओ रहे, फिर रायपुर के आरटीओ रहे। नई कांगे्रस सरकार ने भी पुलक भट्टाचार्य को आरटीओ तो बनाए ही रखा, उसके साथ-साथ स्टेट गैरेज का अतिरिक्त प्रभार भी दे दिया था। अब पुलक को आरटीओ से हटाया भी गया है तो राजधानी की म्युनिसिपल ने अपर आयुक्त बना दिया गया है। राज किसी का भी रहे, कुछ अफसरों का राज जारी रहता ही है। गांधी की कृपा सब पर बनी रहे।
विपक्षी से दरियादिली
सरकार के कई मंत्री विरोधी नेताओं का उदारतापूर्वक सहयोग कर रहे हैं। ऐसे ही एक भाजपा नेता, कुछ समय पहले एक मंत्री के पास पहुंचे और उन्हें अपनी जमीन से जुड़ी समस्याएं बताई। भाजपा नेता का दर्द यह था कि उनका काम, उन्हीं के सरकार के मंत्री राजेश मूणत ने रोक दिया था। नेताजी, अपने बेटे को लेकर साथ गए थे। और मंत्रीजी को बताया कि बेटे का बिजनेस खड़ा करना चाहते हैं। उन्होंने इसके लिए मंत्रीजी से मदद मांगी। मंत्रीजी ने यह जानते हुए कि भाजपा नेता ने उनके खिलाफ चुनाव संचालन किया था, बड़ा दिल दिखाते हुए उनका काम कर दिया।
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