निलंबित डीजी मुकेश गुप्ता के लिए गुरुवार का दिन अच्छा नहीं रहा। जिस दफ्तर के कभी मुखिया थे वहां आरोपी की हैसियत से पूछताछ के लिए हाजिर होना पड़ा। गुप्ता रमन सरकार में बेहद ताकतवर रहे, लेकिन सरकार बदलते ही उनके दुर्दिन शुरू हो गए। उनके खिलाफ प्रकरणों की जांच वे ही अफसर कर रहे हैं जो कि उनके करीबी थे। उन्हें पूछताछ के लिए टीआई स्तर के अफसर अलबर्ट कुजूर के सामने हाजिर होना पड़ा।
पूछताछ के दौरान ईओडब्ल्यू के एसपी इंदिरा कल्याण एलेसेला की मौजूदगी पर मुकेश गुप्ता आपत्ति की, लेकिन उनकी आपत्ति अमान्य कर दी गई। चर्चा है कि उन्होंने ज्यादातर सवालों का जवाब नहीं में दिया। उन्होंने अफसर को कोर्ट में घसीटने तक की बात कह दी। इन सबके बावजूद जांच अफसरों पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। पूरे बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी हुई है। ताकि कोर्ट में यह बताया जा सके कि गुप्ता जांच में किस तरह सहयोग कर रहे हैं। खैर, जांच जैसे-जैसे बढ़ेगी, मुकेश गुप्ता की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
अब सरकार में बैठे कुछ लोगों ने यह नियम खंगालना शुरू किया है कि क्या निलंबित अफसर को सुरक्षा कर्मचारी, सरकारी गाड़ी, और पुलिस का झंडा इस्तेमाल करने की पात्रता है? लोकतंत्र में सरकार ही अगर किसी के खिलाफ हो जाए, तो उसके पास बचने की गुंजाइश कम ही बचती है। फिर भी मुकेश गुप्ता को ऐसा लड़ाकू अफसर माना जाता है जो एसपी रहते हुए भी डीजीपी से झगड़ा मोल ले चुके थे। अविभाजित मध्यप्रदेश में वे उज्जैन के एसपी थे, और वहां प्रवास पर आए डीजीपी के बेटे ने जब एक डीएसपी से बदतमीजी की, तो मुकेश गुप्ता ने एक जूनियर एसपी रहते हुए भी डीजीपी के बेटे को थप्पड़ मारी थी। और उसी का नतीजा था कि उनके खिलाफ जांच कर जो सिलसिला उसी वक्त शुरू हुआ, तो वह आज तक कभी खत्म हुआ ही नहीं। वे एसपी से बढ़ते-बढ़ते इस्पेशल डीजी हो गए, लेकिन पूरी सरकारी नौकरी में एक भी दिन बिना जांच के नहीं गुजरा। इसलिए वे कल जब ईओडब्ल्यू पहुंचे, तो मीडिया के सामने पुराने तेवरों से ही बात की।
भाजपा बड़े भरोसे में है...
प्रदेश में आखिरी चरण के मतदान के रूझानों से भाजपा के रणनीतिकार काफी खुश हैं। पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि प्रदेश की 11 सीटों में से कम से कम 6 सीटों पर जीत हासिल होगी। यह सब तब हो रहा है जब पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में काफी कम खर्च किया। कार्यकर्ताओं ने भी बहुत ज्यादा मेहनत नहीं की, बावजूद इसके मोदी फैक्टर के चलते विशेषकर शहरी इलाकों में भाजपा के पक्ष में एकतरफा माहौल रहा।
दो दिन पहले पार्टी के बड़े नेताओं ने मतदान के बाद नतीजों की संभावनाओं पर लंबी चर्चा की। बैठक में विधानसभा के पराजित प्रत्याशी भी थे। पराजित प्रत्याशियों का दर्द यह था कि विधानसभा चुनाव में जीत के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए, पैसा पानी की तरह बहाया, फिर भी चुनाव हार गए। लोकसभा चुनाव में किसी तरह का प्रबंधन नहीं किया गया। ज्यादातर प्रत्याशियों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया था। बावजूद इसके जीत के आसार दिख रहे हैं। पार्टी नेता इस बात को लेकर एकमत थे कि प्रबंधन के बूते पर चुनाव नहीं जीते जा सकते।
अच्छे दिन आ ही गए...
फेसबुक पर आम हिन्दुस्तानियों को गोरी चमड़ी की एक विदेशी महिला की तरफ से दोस्ती की गुजारिश आए, तो लोग आंखें बंद करके उसे मंजूर करते चलते हैं। इसके साथ-साथ उसकी पोस्ट की हुई एकाध फोटो पर दनादन लाईक भी करते चलते हैं। ऐसी ही एक तस्वीर एक फिरंगी नाम के साथ फेसबुक पर दिखी जिसने इस अखबारनवीस को फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेजी थी। उसने अपने आपको छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के दिशा कॉलेज में पढ़ा हुआ बताया है, कांग्रेस से जुड़ा हुआ बताया है, और एक छोटे से शहर, या कस्बे में रहना बताया है।
ऐसे तमाम फर्जी फेसबुक अकाऊंट की तरह इस पर भी महज एक फोटो पोस्ट है, और लोग कूद-कूदकर उसे लाईक कर रहे हैं, उस पर गिने-चुने दो-चार शब्दों वाली अंग्रेजी लिख रहे हैं। मजे की बात यह है कि पहली नजर में ही फर्जी दिखने वाले इस फेसबुक अकाऊंट के 487 दोस्त भी हैं, और जाहिर है कि ये सारे के सारे पुरूष ही हैं। हिन्दुस्तानी आदमियों के बीच विदेशी गोरी महिला बनकर उनको रूझाना, फंसाना सबसे ही आसान है। एक अच्छा चेहरा अगर दोस्ती की गुजारिश भेजे, तो हर किस्म के लोग मान बैठते हैं कि उनके अच्छे दिन आ ही गए हैं...।