राजपथ - जनपथ

शाम की पदयात्रा!
दुर्ग शहर में मासूम से रेप, और फिर जघन्य हत्या के मामले पर कांग्रेस हमलावर है। पार्टी ने दुर्ग से रायपुर तक न्याय यात्रा निकालने का फैसला लिया है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज की अगुवाई में 18 तारीख से यात्रा निकलेगी, और 21 अप्रैल को समापन होगा।
बताते हैं कि न्याय यात्रा की तैयारियों पर दीपक बैज ने प्रदेश और स्थानीय नेताओं के साथ लंबी चर्चा की है। यह तय हुआ है कि यात्रा सुबह के बजाय शाम को निकलेगी, और रात तक चलेगी। रोज रात्रि 8-9 बजे यात्रा का समापन होगा। चूंकि दिन में तेज गर्मी पड़ रही है, इसलिए यात्रा शाम को निकालने का फैसला लिया गया है।
यह संभवत: पहली पदयात्रा है जो शाम को निकल रही है। आमतौर पर आजादी से पहले महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से लेकर अब तक जितनी भी यात्रा निकली है, वो सुबह निकलती रही है, और शाम-रात को समापन होता रहा है। मगर यात्रा में कार्यकर्ताओं की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए भी समय बदला गया है। देखना है यात्रा किस तरह निकलती है।
कांग्रेस के कुछ लोगों का कहना है कि शाम का वक्त वैसे पदयात्रा का रहता नहीं है।
एकला चलता विधायक
दुर्ग शहर में मासूम से बलात्कार-हत्या प्रकरण को लेकर प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है। कांग्रेस इसके खिलाफ न्याय यात्रा तो निकालने जा रही है, लेकिन पार्टी के अंदरखाने में खींचतान भी दिख रही है। मसलन, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज पीडि़त परिवार के लोगों से मिलने दुर्ग गए, तो स्थानीय नेता साथ थे। लेकिन पड़ोस के कांग्रेस विधायक देवेन्द्र यादव नजर नहीं आए।
देवेन्द्र यादव प्रदेश अध्यक्ष बैज के बजाय अपने साथियों के साथ अलग से पीडि़त परिवार के लोगों से मिलने पहुंचे। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के हटने की चर्चा भी चल रही है। ऐसे में देवेन्द्र यादव के एकला चलो की पॉलिसी की काफी चर्चा हो रही है। बलौदाबाजार कांड में छह महीने जेल में रहने के बाद पार्टी के भीतर देवेन्द्र यादव का कद काफी बढ़ा है। उन्हें बिहार का प्रभारी सचिव बनाया गया है।
देवेन्द्र पिछले दिनों बिहार में कन्हैया कुमार के साथ बेगुसराय में नजर आए। जेल से छूटने के बाद अगले दिन उन्हें राहुल गांधी से मुलाकात का समय मिल गया। वे सपरिवार राहुल से मिले। पार्टी के कई उत्साही कांग्रेसी उन्हें दीपक बैज का उत्तराधिकारी बता रहे हैं। देखना है कांग्रेस में क्या कुछ बदलाव होता है।
नई नियुक्तियाँ, और अड़चनें
सरकार ने 36 निगम मंडलों के अध्यक्षों की नियुक्ति तो कर दी है लेकिन कई कोर्ट-कचहरी के झमेले में फंसा हुए हंै। मसलन, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के रूप में अमरजीत सिंह छाबड़ा की नियुक्ति कर दी है। छाबड़ा की नियुक्ति का आदेश जारी नहीं हो पाया है। कहा जा रहा है कि अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष महेन्द्र छाबड़ा थे जिन्हें हटाया गया है, और वो इसके खिलाफ कोर्ट चले गए हैं। प्रकरण पर 15 अप्रैल को सुनवाई है। सुनवाई के बाद ही आदेश को लेकर स्थिति स्पष्ट होगी।
दूसरी तरफ, वित्त आयोग के अध्यक्ष श्रीनिवास मद्दी का भी आदेश नहीं निकल पाया है। इसको लेकर भी कुछ तकनीकी अड़चनें हैं। एक-दो निगमों में भी यही स्थिति बनी हुई है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
पंचायत प्रगति सूचकांक में पीछे छत्तीसगढ़
पंचायती राज मंत्रालय ने स्थानीय स्तर पर सतत विकास लक्ष्यों को लागू करने और ग्रामीण शासन को मजबूत करने के लिए पंचायत प्रगति सूचकांक, पीएआई हाल ही में जारी किया है। यह सूचकांक देशभर की 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों की प्रगति को मापता है। पीएआई में नौ थीम शामिल हैं, जैसे गरीबी मुक्त पंचायत, स्वस्थ पंचायत, बच्चों के अनुकूल पंचायत, जल-संपन्न पंचायत, स्वच्छ और हरियाली से भरपूर पंचायत, आत्मनिर्भर बुनियादी ढांचा, सामाजिक न्याय और सुरक्षा, अच्छा शासन और महिलाओं के अनुकूल पंचायत। ये थीम ग्रामीण विकास के लिए नीतियां बनाने में मदद करती हैं।
इसमें छत्तीसगढ़ की स्थिति अन्य राज्यों के मुकाबले चिंताजनक है। तालिका के अनुसार, छत्तीसगढ़ में कुल 1,163 ग्राम पंचायतों ने डेटा जमा किया। इनमें से केवल 1 पंचायत ए प्लस ग्रेड लेकर आया। 53 ए ग्रेड में, 76 बी ग्रेड, 104 सी ग्रेड और 929 डी ग्रेड में हैं। जो एक पंचायत ए प्लस ग्रेड वाला है वह सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लॉक का शिवपुर है।
तालिका से पता चलता है कि 929 पंचायतें, यानी लगभग 80 फीसदी से अधिक, 'डी' ग्रेड में हैं, जो सबसे ज्यादा है। मतलब, छत्तीसगढ़ को विकास के मामले में बहुत मेहनत करने की जरूरत है। पीआईबी द्वारा जारी आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में गरीबी मुक्त और बेहतर आजीविका सुनिश्चित करने के लिए रोजगार और आय स्रोत बढ़ाने की जरूरत है। स्वस्थ और बच्चों के अनुकूल पंचायतों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं और स्कूलों की सुविधाएं बेहतर करनी होंगी पंचायतों के लिए पानी की आपूर्ति और कचरा प्रबंधन पर ध्यान देना जरूरी है।आत्मनिर्भर बुनियादी ढांचे के लिए सडक़, बिजली और अन्य सुविधाओं का विकास करना होगा। साथ ही, महिलाओं और कमजोर वर्गों के लिए सुरक्षा और भागीदारी बढ़ाने के लिए जागरूकता और प्रशिक्षण की जरूरत है।
'डी' ग्रेड की सर्वाधिक पंचायतें होना दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ के गांवों में बुनियादी सुविधाएं कम है, प्रशासन कमजोर हैं। इसके पीछे संसाधनों की कमी, प्रशिक्षण का अभाव, या नीतियों का सही क्रियान्वयन न होना भी कारण हो सकता है। पीएआई छत्तीसगढ़ के लिए एक आईना है। अन्य राज्यों जैसे गुजरात और तेलंगाना से तुलना करने पर छत्तीसगढ़ बहुत पीछे है। अपने राज्य को ग्रामीण विकास में तेजी लाने की जरूरत है। अभी जारी यह अध्ययन सन् 2022-23 का है, उसके बाद सरकार बदल भी गई है। ताजा आंकड़े आने वर्षों में मालूम होंगे। सन् 2030 तक सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करना है।
रचनात्मकता मिट्टी से शुरू होती है...
महंगे पब्लिक स्कूलों में बच्चों को यदि कभी अपनी कल्पना को आकार देने का अवसर मिलता भी है, तो वह अक्सर रंग-बिरंगे कृत्रिम क्ले या गाइडेड आर्ट सेशन्स तक सीमित होता है। मिट्टी से खेलना अनुशासनहीनता फटकार मिल सकती है। मगर इस तस्वीर में जो दृश्य है, वह इस दिखावे की शिक्षा से बिल्कुल मानी जा सकती है, और उलट है। ये बच्चे स्कूल प्रांगण के बाहर पेड़ों की छांव में बैठे हैं। सामने है मिट्टी, कल्पना को आकार देते हाथ। मिट्टी को गूंथ कर उसमें अपनी दुनिया, अपने अनुभव और अपनी सोच को ढाल रहे हैं। झोपड़ी, देव, दानव, जानवर, जंगल को आकार दे रहे हैं।
इन्हें मिट्टी में सन जाने की चिंता नहीं है, क्योंकि ये उससे कभी अलग हुए ही नहीं। इनका हर पहलू- खेत, जंगल, झोपड़ी, मवेशी, सब मिट्टी से जुड़ा है। यही मिट्टी इनके संस्कारों की भी गवाह है और इनके सपनों की भी जमीन। प्रकृति के सबसे सरल साधनों के साथ रचनात्मकता को जीना इनसे सीख सकते हैं। तस्वीर कोरबा जिले के आदिवासी अंचल में स्थित एक सरकारी स्कूल की है। (rajpathjanpath@gmail.com)