राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : उपेक्षा की पराकाष्ठा, अनसुनी पुकार
27-Feb-2025 4:43 PM
राजपथ-जनपथ : उपेक्षा की पराकाष्ठा, अनसुनी पुकार

उपेक्षा की पराकाष्ठा, अनसुनी पुकार

रायगढ़ स्थित किरोड़ीमल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी (केआईटी) कभी क्षेत्र के तकनीकी शिक्षा के विकास का प्रतीक माना जाता था। आज वह इसलिये चर्चा में है क्योंकि वेतन नहीं मिलने से परेशान कर्मचारियों ने राष्ट्रपति के नाम प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है और इच्छामृत्यु की मांग की है।

शासन ने इस संस्थान को समुचित अधोसंरचना, अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं और पर्याप्त भूमि उपलब्ध कराई है, लेकिन शासकीय मान्यता नहीं दी। वेतन और संचालन की व्यवस्था स्वयं उठाने के लिए कहा। अब 25 साल बाद यह संस्थान आज अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। विडंबना यह है कि छात्र, शिक्षक और कर्मचारी लगातार आंदोलन ही करते आ रहे हैं।

जनवरी 2002 में छात्रों ने पहली बार कॉलेज को सरकारी मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें पुलिस की लाठियां झेलनी पड़ीं और उनके विरुद्ध मामले दर्ज किए गए। 2003 में फिर आंदोलन हुआ, 2006 में धमकियों के बीच विरोध प्रदर्शन किया गया, 2009 में छात्रों ने भीख मांगकर अपनी आवाज बुलंद की, 2010 में प्राचार्य की गाड़ी में तोडफ़ोड़ तक हुई, लेकिन हर बार उन्हें अपने भविष्य की चिंता में दोबारा पढ़ाई की ओर लौटना पड़ा।

आज स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि 33 महीनों से केआईटी के प्रोफेसरों, कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है। यहां कार्यरत 12 कर्मचारियों और प्राध्यापकों ने सरकार की उपेक्षा से तंग आकर इच्छा मृत्यु की मांग कर डाली है। यह बेहद शर्मनाक स्थिति है।

यह स्थिति तब बनी हुई है जब पिछली सरकार में पांच वर्ष तक तकनीकी शिक्षा मंत्री रायगढ़ से थे और वर्तमान में भी वित्त मंत्री इसी जिले से हैं। बावजूद इसके, कॉलेज को सरकारी मदद से चलाने की पहल नहीं हुई। जबकि पश्चिम बंगाल, दिल्ली और केरल में इसी तर्ज पर खुले संस्थानों को शासकीय अनुदान देकर संरक्षित किया जा चुका है। केरल में सरकार ने कई स्वशासी कॉलेजों को शासकीय दर्जा देकर छात्रों और कर्मचारियों का भविष्य सुरक्षित कर दिया, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने केआईटी के साथ ऐसा कोई प्रयास नहीं किया।

दूसरी ओर औद्योगिकीकरण के केंद्र के रूप में विकसित रायगढ़ में बड़े उद्योगपतियों, कोल ब्लॉकों और एनटीपीसी जैसी संस्थाओं की भरमार है। गीदम में डीएवी पॉलिटेक्निक को एनएमडीसी सीएसआर फंड से संचालित कर सकता है, तो केआईटी को भी इस तरह का सहयोग क्यों नहीं मिल सकता? पर इसके लिए भी दबाव सरकार को ही बनाना पड़ेगा। आज यह संस्थान पूरी तरह से आर्थिक संकट में डूब चुका है।

केआईटी का पतन सरकार की बहुप्रचारित नई शिक्षा नीति का आईना है। यह प्रशासनिक अनदेखी का भी कड़वा सच उजागर करता है। शासन ने ठोस कदम नहीं उठाया तो यह संस्थान एक ऐतिहासिक भूल बनकर रह जाएगा।

मंत्रियों का हिंदी ज्ञान

बिहार के एक मंत्री ( शायद इस्तीफा दे चुके) डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल का यह पत्र सोशल मीडिया पर खूब फैला हुआ है। चार लाइन के इस्तीफे में हिंदी व्याकरण की इतनी अशुद्धियां हैं, कि मजाक बन गया है। इसी हफ्ते उत्तरप्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह का एक वीडियो वायरल हो रहा था। हिंदी राज्य के शिक्षा मंत्री हैं, मगर विधानसभा में हिंदी का पर्चा पढऩे में बार-बार गलतियां कर रहे थे। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि दक्षिण भारत में यदि हिंदी का विरोध हो रहा है तो उसकी वजह यह भी है कि यहां के नेता-मंत्री ठीक से अपनी भाषा लिख-पढ़ नहीं सकते और हमें सिखा रहे हैं।

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