बारातियों जैसे मजे
नगरीय निकायों में प्रत्याशियों का प्रचार अब रफ्तार पकड़ रहा है। रायपुर नगर निगम में तो कई निर्दलीय प्रत्याशी प्रचार के मामले में भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों से आगे नजर आ रहे हैं। शहर के बीचों-बीच एक वार्ड में निर्दलीय प्रत्याशी को फूलगोभी चुनाव चिन्ह मिला है।
पिछले दो दिनों में निर्दलीय प्रत्याशी ने अपने वार्ड के हर घर में दो-दो फूलगोभी भिजवा दी है। वो अब तक दो टन फूलगोभी बांट चुके हैं। सब्जी के बहाने प्रचार भी हो गया है। आखिरी के दो तीन दिनों में कुछ इसी तरह फूलगोभी बंटवाने का प्लान है।
प्रत्याशी की सोच है कि मतदाताओं को चुनाव चिन्ह याद रहेगा, और वो चुनाव जीत जाएंगे। इससे परे वार्ड के एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी को चुनाव चिन्ह गुब्बारा मिला हुआ है, और वो चुनाव चिन्ह हर घर तक पहुंचाने के लिए गली मोहल्लों में गुब्बारे उड़वा रहे हैं।
इसी तरह रायपुर दक्षिण की हाईप्रोफाइल वार्ड में एक दिग्गज प्रत्याशी की तरफ से बस्तियों में सुबह नाश्ते से लेकर लंच, और डिनर तक की व्यवस्था की गई है। प्रत्याशी की तरफ से सारी सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है, और बस्ती के लोग रोज पार्टी कर रहे हैं। चुनाव के चलते हर गली मोहल्ले में कुछ नया हो रहा है। प्रत्याशियों को इसका कितना फायदा मिलता है, यह चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
वोटर लिस्ट की उलझन
निगम चुनाव इस बार वार्डों के नए परिसीमन के तहत हो रहे है। इससे वार्डों का पूरा एरिया बदल गया है। उदाहरण स्वरूप पिछले चुनाव में जिसने टिकरापारा में वोट डाला था अब वो भाठागांव में डालेगा। और बहुतों को अब तक पता भी नहीं है कि उनका नाम किस वार्ड के वोटर लिस्ट में है। ऐसे में किसी बूथ में वार्ड का कौन कौन सा इलाका शामिल है उसकी सूचना देने यह सही उपाय हो सकता है। इसके बाद भी वोटर लिस्ट की गड़बड़ी से परेशानी तय है।
वोटिंग के दिन 11 फरवरी को मतदाताओं का भटकना और इसकी खीझ, झल्लाहट में वोट न डालकर घर लौटना भी तय है। वैसे भी बहुतायत वोटर मानते हैं कि चुनाव जीतने के बाद पार्षद काम करते नहीं, चक्कर कटवाते हैं और बिना पैसे के काम करते नहीं। निगम का अमला मल्टी पोस्ट ईवीएम के प्रचार में उलझा हुआ है तो पार्टियों के बूथ एजेंट, प्रत्याशियों के प्रचार में। देखना होगा कि वोटर की समस्या कैसे दूर होगी।
कोचिंग संस्थानों की बाढ़
बिलासपुर शहर का गांधी चौक इलाका छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए एक खास केंद्र बन गया है। इसे छत्तीसगढ़ का छोटा- मोटा नई दिल्ली स्थित मुखर्जी नगर समझ सकते हैं। यहां कोचिंग संस्थानों, पुस्तकालयों, किराए के मकानों और छात्रों का नेटवर्क विकसित हो रहा है। यहां लगभग 30-35 कोचिंग संस्थान, उतने ही पुस्तकालय और किताब दुकानें हैं, जो आगे बढ़ते हुए दयालबंद इलाके से शहर की सीमा तक पहुंच गया है। शायद यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा कोचिंग हब है। यहां आने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हजारों छात्र किराये के कमरों, हॉस्टलों, कोचिंग संस्थानों और लाइब्रेरियों के सहारे अपने भविष्य की दिशा तय कर रहे हैं। कोचिंग उद्योग के साथ ही इस इलाके में सहायक व्यवसायों की भी बाढ़ आ चुकी है।
हालांकि, इस तरह के कोचिंग हब में छात्रों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ उनकी सुरक्षा और सुविधाओं की बात भी उठती है। पिछले वर्ष दिल्ली के कोचिंग संस्थानों में बदइंतजामी के कारण तीन छात्रों की मौत हो गई थी। छात्रों की सुरक्षा, उनके रहने की स्थिति, और कोचिंग संस्थानों में सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करना प्रशासन और संस्थान संचालकों की प्राथमिकता होनी चाहिए। गांधी चौक जैसे इलाकों में भीड़भाड़ और असुरक्षित परिस्थितियों के कारण छात्रों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि कमरों की कमी, असुरक्षित और अपंजीकृत हॉस्टल और कोचिंग सेंटर की कम जगह पर ज्यादा से ज्यादा युवाओं की क्लास लेना। जिस तरह से मोटी फीस प्रतियोगी छात्रों से ली जा रही है, अधिकांश में उसके अनुरूप सुविधाएं भी नहीं हैं। यहां पर कोरबा, जांजगीर ही नहीं, रायपुर, भिलाई-दुर्ग तथा दूसरे राज्यों के ग्रामीण इलाकों के छात्र भी मिल जाएंगे। कोटा, नागपुर के कई नामी कोचिंग इंस्टीट्यूट ने भी बिलासपुर में अपने स्टडी सेंटर खोल दिए हैं। शहर के अलग-अलग छोर पर प्राइवेट लाइब्रेरी भी चल रही हैं। गांधी चौक का तेजी से उभरना शिक्षा क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत हो सकता है, लेकिन सवाल बना हुआ है कि इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के लिए जरूरी व्यवस्थाएं और सुरक्षा इंतज़ाम कितने पुख्ता हैं? यहां के हॉस्टल और कोचिंग संस्थान अग्नि सुरक्षा, ट्रैफिक व्यवस्था आदि मानकों का पालन कर रहे हैं या नहीं? क्या मकान मालिक छात्रों को उचित रहने की सुविधा दे रहे हैं?
घूस देने वाला भी नपेगा!
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में हाईकोर्ट में ही नौकरी लगाने के नाम पर 7.5 लाख रुपये की धोखाधड़ी के आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने निर्देश दिया कि रिश्वत देने वाले के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। अब कोरबा पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए रिश्वत देने की शिकायत करने वाले संजय दास के खिलाफ भी अपराध दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 172, 173 और 174 के तहत रिश्वत देना और लेना दोनों गंभीर अपराध हैं, जिनमें अधिकतम सात साल तक की सजा का प्रावधान है। कोरबा के इस मामले में रिश्वत देने वाले आरोपी ने रकम सीधे बैंक खाते में जमा कराई और कुछ धनराशि मोबाइल वॉलेट के माध्यम से ट्रांसफर की। संभवत: उसने यह सावधानी इसलिए बरती ताकि रिश्वत का पुख्ता सबूत उसके पास मौजूद रहे और नौकरी का झांसा देने वाला व्यक्ति रकम लेने से इनकार न कर सके। लेकिन यही सबूत अब उसी के गले की फांस बन गया है।
छत्तीसगढ़ में नौकरी के नाम पर धोखाधड़ी के मामले लगातार सामने आते हैं। हालांकि कानून में स्पष्ट प्रावधान हैं, फिर भी अधिकांश मामलों में पुलिस केवल रिश्वत लेने वालों पर ही कार्रवाई करती है, देने वालों को नजरअंदाज कर देती है। कोरबा पुलिस ने हाईकोर्ट के निर्देश पर इस चिन्हित मामले में तो कार्रवाई कर दी, लेकिन अन्य मामलों का क्या? आमतौर पर लोग स्वेच्छा से रिश्वत देते हैं और जब काम नहीं बनता, तो पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुंच जाते हैं। अगर हाईकोर्ट के आदेश का हर मामले में सख्ती से पालन हो, तो पुलिस का ही बोझ हल्का होगा। लोग भी रिश्वत देने से पहले कई बार सोचेंगे कि कानून का शिकंजा उन पर भी कस सकता है।