राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : जीत और हार का सेहरा
24-Nov-2024 3:53 PM
राजपथ-जनपथ : जीत और हार का सेहरा

जीत और हार का सेहरा 

छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं ने झारखंड चुनाव में दम लगाया था, लेकिन पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा। झारखंड की एक दर्जन विधानसभा सीटें, छत्तीसगढ़ की सीमा से सटी है। इसलिए छत्तीसगढ़ के नेताओं को विशेष रूप से प्रचार में लगाया गया था। 

प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन, केंद्रीय राज्यमंत्री तोखन साहू, डिप्टी सीएम अरुण साव, और विजय शर्मा व ओपी चौधरी, लोकसभावार विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। इसमें से ओपी चौधरी को हजारीबाग की जिम्मेदारी दी गई थी। भाजपा भले ही बहुमत के आसपास नहीं पहुंच पाई, लेकिन हजारीबाग की सात में से छह सीट जीतने में कामयाब रही। ऐसे में हार के बावजूद चौधरी की वाहवाही हो रही है।  

झारखंड में भाजपा को बड़ा नुकसान यह हुआ कि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 27 में से सिर्फ एक ही सीट जीत पाई। सरगुजा इलाके के तमाम प्रमुख आदिवासी नेताओं को वहां प्रचार के लिए भेजा गया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अलबत्ता, महाराष्ट्र में जरूर छत्तीसगढ़ के नेताओं ने बेहतर काम किया है। महाराष्ट्र में चुनाव से पहले ही छत्तीसगढ़ भाजपा के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल ने पुणे के आसपास के 18 सीटों के संगठन को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी संभाली थी, और उसमें वो कामयाब भी रहे। 

त्रिपुरा के सीएम माणिक साहा निजी चर्चा में जामवाल की तारीफ करते नहीं थकते हैं। जामवाल लंबे समय तक पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी के संगठन का काम संभालते रहे हैं, और त्रिपुरा जैसे कठिन राज्य में भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में महाराष्ट्र में बड़ी जीत में जामवाल के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। 

बस्तर और महिला कलेक्टर 

बस्तर के सुकमा, बीजापुर, और नारायणपुर जिले ऐसे हैं जहां अब तक कोई महिला कलेक्टर नहीं रही हैं। जबकि यहां आश्रम-छात्रावासों  में छात्राओं की सुरक्षा से जुड़े विषयों, और महिला स्व सहायता समूहों के कार्यों को देखते हुए जिले में महिला अफसरों की जरूरत महसूस की जाती रही हैं। इससे परे बस्तर के बाकी जिले दंतेवाड़ा, बस्तर, कांकेर, और कोंडागांव में महिला कलेक्टर रही हैं, और उन्होंने अपनी अलग ही छाप छोड़ी है। 

दंतेवाड़ा में रीना बाबा साहेब कंगाले का काम बड़ा उम्दा रहा है। इसी तरह बस्तर में भी रिचा शर्मा, रितु सेन ने भी थोड़े समय में अपने काम से अलग ही पहचान बनाई है। कांकेर में पहले अलरमेल मंगाई डी और फिर डॉ. प्रियंका शुक्ला ने स्वास्थ्य और शिक्षा व महिला सुरक्षा की क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। 

डॉ. प्रियंका शुक्ला के कामकाज की सार्वजनिक तौर पर तारीफ होती रही है। कोंडागांव में शिखा राजपूत तिवारी कलेक्टर रह चुकी हैं। मगर नक्सल प्रभावित तीनों जिले सुकमा, बीजापुर, और नारायणपुर में अब तक महिला कलेक्टरों की पोस्टिंग नहीं होना कई मायनों में चौंकाता भी है। 

साहू के हिस्से में फिफ्टी-फिफ्टी

केंद्रीय राज्य मंत्री और बिलासपुर के सांसद तोखन साहू को झारखंड विधानसभा चुनाव में चार सीटों का प्रभारी बनाया गया था। इनमें से दो पर भाजपा को कामयाबी हासिल हुई है। लातेहार सीट पर बीजेपी के प्रकाश राम जीते। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के बैद्यनाथ राम को 98000 से अधिक वोटों से हराया। सिमरिया सीट  पर भाजपा के उज्ज्वल दास ने एक लाख 11 हजार वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की। इस सीट पर पिछली बार बीजेपी चौथे स्थान पर थी। चतरा और मनिका सीट पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। मनिका सीट पर कांग्रेस से बीजेपी का मुकाबला था। बाकी सीटों पर जेएमएम से टक्कर थी। दोनों सीटों पर हार का मार्जिन कम रहा। 

प्रभार मिलने के बाद तोखन साहू ने धुंआधार प्रचार अभियान चलाया था। अंतिम दिन तक उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। भाजपा झारखंड में बहुमत जरूर नहीं ला पाई पर साहू का अपना प्रदर्शन बुरा भी नहीं रहा।

किसान हर जगह सडक़ पर

विकासशील और  कृषि प्रधान भारत में ही किसान समस्याओं का सामना नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्नत देशों में भी यह देखने को मिल जाता है। लंदन के व्हाइट हॉल के सामने हजारों किसानों ने प्रदर्शन किया। वे वहां की संसद द्वारा पारित उस  कानून का विरोध कर रहे थे, जिसमें प्रावधान किया गया है कि एक मिलियन पाउंड से अधिक की उत्तराधिकार से प्राप्त संपत्ति पर 20 प्रतिशत विरासत टैक्स लगाया जाएगा। किसानों का कहना था कि ऐसा होगा तो वे खेती से दूर होते जाएंगे, जिससे खाद्यान्न संकट पैदा होगा। 

याद होगा, बीते लोकसभा चुनाव में विरासत टैक्स का मुद्दा हमारे यहां भी उछला था। चुनाव अभियान के बीच में ही कांग्रेस को अपने ओवरसीज अध्यक्ष सैम पित्रोदा से इस्तीफा लेना पड़ा था। 

लंदन में किसानों के प्रदर्शन पर वहां के प्रधानमंत्री चुप नहीं रहे। पहले दिन ही प्रतिक्रिया आ गई। उन्होंने  कहा कि वे किसानों की चिंताओं को समझते हैं और उनका समर्थन करना चाहते हैं,  लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अधिकांश किसानों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा..। हर एक देश में सत्ता के पास आंदोलनकारियों के लिए ऐसा ही घुमावदार जवाब होता है। मगर यह चुप्पी से बेहतर होता है। 

(rajpathjanpath@gmail.com)


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