राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : गाडिय़ों के पीछे दर्शनशास्त्र
18-Nov-2024 3:33 PM
राजपथ-जनपथ : गाडिय़ों के पीछे दर्शनशास्त्र

गाडिय़ों के पीछे दर्शनशास्त्र

इन दिनों देश भर में सडक़ों पर जितने हादसे थोक में मौत लाते दिख रहे हैं, उससे लगता है कि चारों तरफ जागरूकता की जरूरत है। अब रायपुर का यह ट्रैक्टर कुल पांच शब्दों में मौत के खतरे को गिना रहा है, और साथ-साथ सडक़ों पर रिश्वत लेने वाले लोगों पर तंज भी कस रहा है। अब गाडिय़ों के पीछे लिखे जिंदगी के फलसफे पता नहीं लोगों पर कितना असर डालते हैं, लेकिन इनमें से बहुत से मजेदार और असरदार रहते तो हैं, यह अलग बात है कि लोग असर से परे हो गए हैं। 

एक गाड़ी के पीछे लिखा हुआ पढऩे मिला- धीरे चलोगे तो बार-बार मिलेंगे, तेज चलोगे तो हरिद्वार मिलेंगे। एक और ने गाड़ी के पीछे लिखा हुआ है- वाहन चलाते समय सौंदर्य दर्शन न करें, वरना देव दर्शन हो सकते हैं। 

एक गाड़ी शब्दों के मामले में बड़ी किफायती थी- सावधानी हटी, सब्जी-पूड़ी बंटी। 
सावधानी से परे कुछ मजे की बातें भी गाडिय़ों पर लिखी रहती हैं। एक ने लिखा है- अगर मेहनत से लोग पैसेवाले बनते हैं, तो कोई धनवान गधा दिखाओ। 

हनुमान के मुखौटे में विभीषण 

आम आदमी पार्टी के बड़े नेता एक के बाद एक पार्टी छोड़ रहे हैं। इन्हीं में से एक दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत ने अपना पद छोड़ा, तो दिल्ली से लेकर रायपुर तक पार्टी के अंदरखाने में प्रतिक्रिया हो रही है। 

आप के बड़े नेता गहलोत ने पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को भेजे अपने इस्तीफे में यमुना की सफाई के मसले पर पार्टी की आलोचना की है। इस पूरे मामले में छत्तीसगढ़ आम आदमी पार्टी के मीडिया प्रभारी अन्यतम शुक्ला ने कैलाश गहलोत का मंत्री पद की शपथ लेने के बाद का पुराना पोस्ट फेसबुक पर साझा किया है।  जिसमें गहलोत ने लिखा था जिस तरह भगवान राम के सेवक बनकर हनुमान काम कर रहे थे। उसी तरह मैं भी अरविंद केजरीवाल का हनुमान बनकर परिवहन एवं अन्य विभाग में उनके विजन और कामों को आगे बढ़ाऊंगा। 

अब कैलाश गहलोत के पार्टी छोडऩे के बाद मीडिया प्रभारी ने फेसबुक पर कुछ इस तरह की प्रतिक्रिया दी है कि हम तुम में हनुमानजी के गुण ढूंढते रह गए, तुम राम भक्तों की सेना में विभीषण निकले! 

आरटीआई ने बदला घर का पता 

अब बात इससे थोड़ा हटकर-आरटीआई को हथियार बना अपना आशियाना बनवाने की। राजधानी की एक रिटायर्ड महिला ने अपना आशियाना बनाने हर काम के लिए आरटीआई का इस्तेमाल किया । जो काम ससुर जी के जमाने से वर्षों से तहसील, भू-रजिस्ट्री, नगर निवेश, निगम के जोन और व्हाइट हाउस में अटके, अटकाए जाते रहे। वह कहीं पर पहले ही आवेदन में तो कही दूसरी अपील में ही निपटते गए। महिला को बकायदा सील लगी एनओसी मिलती गई। 

वीआईपी रोड स्थित माइनिंग कॉलोनी में कई वर्षों पहले महिला के ससुर ने जमीन ली थी। जब ससुर एनएमडीसी बैलाडीला में पदस्थ थे। ससुर  का निधन हुआ तो पुत्र अपने नाम नहीं चढ़वा पाए। पुत्र (पति) भी नहीं रहे। अनुकंपा नियुक्त खत्म हो रही थी तो महिला ने मकान बनाने का बीड़ा उठाया। मैदान में उतरीं तो हर दफ्तर में अफसरशाही,लालफीताशाही के अड़ंगे थे। जमीन इतने प्राइम लोकेशन पर है कि सोसाइटी वालों की भी नजरें लगीं थी। वे भी रोड़ा बनकर सरकारी अमले को मदद करते रहे,इस कोशिश में कि जमीन हस्तांतरित न हो। चूंकि महिला, स्वयं भी लिपिक वर्गीय कर्मचारी रही हैं तो आरटीआई को हथियार बनाया। पहले तो दिवंगत ससुर की जमीन पर हक हासिल किया और फिर नक्शा, निर्माण अनुज्ञा जैसी कागजी अनुमति के लिए आवेदन लगाती रही। वह भी आरटीआई के ऑनलाइन पोर्टल पर। और ठीक एक माह बाद दूसरी अपील। इस पर निगम, तहसील और जिला प्रशासन का अमला अपील की नोटिस मिलते ही एनओसी देता रहा। महिला को बस एक ही जगह वह भी जोन दफ्तर में 25 हजार रुपए घूस के लिए खर्च करने पड़े। खैर,बहुत जल्द महिला व बच्चे पॉश कॉलोनी के निवासी होने जा रहे हैं।

आरटीआई नेगोशिएशन फंड

हाल के महीनों में आरटीआई आवेदनों में कमी आई है। कुछ गंभीर  एक्टिविस्ट भी अपने में से कुछ ऐसे ही नेगोशिएशन एक्टिविस्ट की वजह से आवेदन लगाने से पीछे हट गए हैं। इस पर कुछ  एक्टिविस्ट से चर्चा की तो एक नई जानकारी मिली। 

इनका कहना था कि एक आम धारणा बन गई है कि सूचना का अधिकार केवल किसी निर्माण में गड़बड़ घोटाले को पकडऩा या उजागर करने का माध्यम हो गया है । इसके आवेदन लगाने वाले स्वयं को इसकी आड़ में ईमानदार राष्ट्र और राज्य हितैषी बताने से नहीं चूकते। जबकि ऐसे एक्टिविस्ट 40-40 लाख की महंगी कार, एसयूवी मेंटेन कर रहे हैं। ऐसे में उनके रहन सहन का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे ही ईमानदार देशहित की सोच रखने कथित एक्टिविस्टों को जानकर ही अफसर भी अपने हाथ में चल रही योजनाओं में से आरटीआई फंड का इंतजाम रखने लगे हैं। मतलब आरटीआई का आवेदन लगते ही एक्टिविस्ट से नेगोशिएशन शुरू हो जाता है। यह फंड ठीक वैसा ही है जैसे योजना के भूमि पूजन, लोकार्पण समारोह के आयोजन का व्यय।

आरटीआई का सौदा पट गया तो अफसर के पहले जवाब से ही प्रदेश और देश हित गड्ढे में गया। नहीं पटा तो दूसरी-तीसरी अपील तक तो पट ही जाएगा। वहां नहीं पटा तो अफसर का कोई बड़ा नुकसान नहीं होना। मुख्य सूचना आयोग केवल 25 हजार का अर्थदंड ही लगाएगा। वैसे तो कई अपील में आयोग ही बचाव मुद्रा में आ जाता है। क्योकिं वहां भी तो रिटायर्ड ही बैठे हैं। अपील अर्थदंड तक पहुंचने पर यह पेमेंट भी अफसर को थोड़ी करना है, सैलरी पेमेंट से कटेगा। और रि-पेमेंट ठेकेदार कर देगा। बस एक ही भय से अफसर नेगोशिएशन को सेफ साइड मानते हैं कि साबित होने पर आयोग मामले को सार्वजनिक कर घोटाले में संलिप्तता बता नाम जारी कर देता है । इससे घर परिवार कॉलोनी में नजरें घूरने लगती हैं। इससे बचने ही अफसर अब आरटीआई एक्टिविस्ट नेगोशिएशन फंड रखने लगे हैं।

अब कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि कारख़ाने और खदान की जनसुनवाई में मीडिया-मैनेजमेंट के लिए भी फण्ड रखा जाता है, अकेले आरटीआई एक्टिविस्ट को क्यों कोसें। 

बद्दुआ की चर्चा 

रायपुर दक्षिण विधानसभा का चुनाव निपट गया। अब नतीजे की प्रतीक्षा हो रही है। इन सबके बीच कांग्रेस टिकट के एक मजबूत दावेदार नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे के फेसबुक पोस्ट की खूब चर्चा हो रही है। 
प्रमोद दुबे ने लिखा कि बद्दुआ ऐसी गोली है जो जीवन को छिन्न-भिन्न कर देती है। थोड़ा संभलकर जिएँ...। 

उन्होंने यह पोस्ट किसके लिए लिखा है, यह साफ नहीं है। मगर पार्टी के कई लोग रायपुर दक्षिण से उनकी दावेदारी को नजरअंदाज करने से जोडक़र देख रहे हैं। प्रमोद दुबे रायपुर दक्षिण से टिकट के मजबूत दावेदार थे। कई प्रमुख नेताओं ने उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने की सिफारिश की थी, लेकिन अंतत: युवक कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। इससे प्रमोद दुबे, और उनके समर्थक नाराज रहे। ये अलग बात है कि चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी नाराजगी का इजहार नहीं किया, और यथासंभव आकाश शर्मा के लिए मेहनत करते नजर आए। चर्चा है कि प्रमोद एक-दो प्रमुख नेता से नाराज बताए जा रहे हैं, और फेसबुक के जरिए अपनी नाराजगी का इजहार किया है। चाहे कुछ भी हो, प्रमोद दुबे के पोस्ट की राजनीतिक हलकों में जमकर चर्चा है। 

आदिवासी विकास बैठक या पिकनिक?

बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण की बैठक आज चित्रकोट जलप्रपात के पास हो रही है। इसके लिए दो विशाल वाटरप्रूफ डोम तैयार किए गए हैं। एक डोम मंत्रियों और सदस्यों के चिंतन-मनन के लिए, दूसरे में भोजन-पानी। करीब 20 एसी की अस्थायी व्यवस्था और सैकड़ों जवानों की तैनाती ने इस कार्यक्रम को अलग भव्यता प्रदान कर दी है। जलप्रपात को आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है ताकि माननीय निर्विघ्न इसका आनंद उठा सकें।

लेकिन अगर हम आदिवासियों और बस्तर के दूसरे पहलू पर बात करें, तो तस्वीर कुछ और ही है। वामपंथी उग्रवाद और पुलिस कार्रवाई के कारण हजारों आदिवासी ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र पलायन कर चुके हैं। फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए निर्दोष आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिए कई आंदोलन जारी हैं।

आदिवासी बाहुल्य गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा और सडक़ जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। कई रिपोर्टें बताती हैं कि आदिवासियों की गिरफ्तारी और जेल उनकी जनसंख्या के अनुपात में अधिक है। दंतेवाड़ा जेल इसका गवाह है, जहां प्रदेश के सबसे ज्यादा कैदी निरुद्ध हैं। बेरोजगारी और आर्थिक तंगी आदिवासी समाज की प्रमुख समस्याओं में शामिल हैं।
विडंबना के बीच भी कुछ अच्छा सोच लेने में हर्ज क्या है? मान लें कि इस भव्य आयोजन में भी आदिवासियों की वास्तविक समस्याओं पर गहरी चर्चा होगी।

(rajpathjanpath@gmail.com)

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