राजपथ - जनपथ
मैट्रिकुलेट बाबू और आईएएस
मंत्रालय संवर्ग के 150 अधिकारी कर्मचारी पदोन्नत होने हैं। पिछले माह के अंतिम दिनों में पदोन्नति समिति की बैठक भी हो गई। लेकिन इस बीच आदेश से पहले एक पेंच आ गया है। वह यह कि कुछ कर्मचारी जो अधिकारी बनने वाले हैं उनकी शैक्षणिक योग्यता साबित करने का पेंच है। पिछली सरकार ने तय किया था कि अब कर्मचारी को तभी पदोन्नति मिलेगी जब वह स्नातक हो। वह इसलिए कि मप्र से विभाजन में आए अधिकांश कर्मचारी उस समय मैट्रिकुलेट ही रहे हैं। हर तीन पांच वर्ष बाद पदोन्नत होकर उप सचिव तक बनते गए। कुछ तो बीते 20-23 वर्ष में रिटायर भी हो गए। यह भी प्रचारित होता रहा कि एमबीबीएस जैसे उपाधिधारी आईएएस अफसरों को 11 वीं पास बाबू चला रहे हैं ।
इसे देखते हुए बघेल सरकार ने पदोन्नति के लिए कम से कम स्नातक उपाधि की योग्यता फिक्स की। और पुराने 11 वीं पास को डिग्री करने की अनुमति दी। जीएडी ने डिग्री करने समय भी दिया था पढ़ाई का। लेकिन कुछ लोगों ने शार्ट कट अपनाया और नगद देकर प्रदेश के कुछ निजी विवि से एक वर्ष में तीन वर्षीय डिग्री लेकर जीएडी में जमा कर दिया। अब ऐसे ही लोगों की पदोन्नति अटक गई है। जीएडी ने जांच का फैसला किया है। जीएडी में पहले की तरह पुराने आईएएस तो हैं नहीं, अब तो एमफिल, एमबीए (इन इंटरनेशनल बिजनेस)उत्तीर्ण सचिव हैं।
जीएडी को राजधानी और न्यायधानी के दो विवि की डिग्री पर संदेह है। अब देखना है कि कितने रूकते हैं। वैसे बता दें कि पृथक छत्तीसगढ़ में वर्ष 2007 बैच की पहली भर्ती के साथ ही अब तक की चार भर्तियों में स्नातक, स्नातकोत्तर बाबू मिले हैं।
एक का इंतज़ार लंबा हो गया
विधानसभा चुनाव के बीच चुनाव आयोग ने जिन कलेक्टर्स, और एसपी को हटाया था उनमें से तत्कालीन राजनांदगांव एसपी अभिषेक मीणा को छोडक़र बाकी सभी मुख्यधारा में आ गए हैं। यानी सभी की कहीं न कहीं पोस्टिंग हो चुकी है। अकेले मीणा ही रह गए हैं जिन्हें पीएचक्यू में अटैच तो कर दिया गया लेकिन उन्हें अब तक कोई प्रभार नहीं मिला है।
मीणा को कांग्रेस सरकार में अच्छी पोस्टिंग मिलती रही है। वो रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर, और राजनांदगांव एसपी रहे हैं। मगर सरकार बदलने के बाद से खाली हैं। मीणा के साथ ही दुर्ग के तत्कालीन एसपी शलभ सिन्हा और कोरबा एसपी उदय किरण को भी हटाया गया था, लेकिन शलभ जल्द ही जगदलपुर एसपी बना दिए गए। उदय किरण की भी बटालियन में पोस्टिंग हो चुकी है।
यही नहीं, भूपेश सरकार में ताकतवर रहे एडीजी दीपांशु काबरा, आनंद छाबड़ा को भी दस महीने बाद पीएचक्यू में प्रभार मिल गया है लेकिन मीणा का इंतजार थोड़ा लम्बा हो गया है।
कर्मचारियों के वोट कम?
रायपुर की चारों विधानसभा में सबसे ज्यादा कर्मचारी दक्षिण में रहते हैं लेकिन उपचुनाव में पोलिंग कम हुई है। आम चुनाव की तुलना में 11 फीसदी कम यानी 50.50 फीसदी ही वोटिंग हुई है। राजनीतिक दल, कम मतदान के पीछे कर्मचारियों द्वारा वोटिंग नहीं करने को एक कारण मान रहे हैं।
रायपुर दक्षिण में सबसे ज्यादा कर्मचारी पेंशनबाड़ा, विजेता कॉम्पलेक्स, कांशीराम नगर, पुरानी बस्ती आदि इलाकों में रहते हैं। मगर इन इलाकों में कई बूथों पर 30 फीसदी के आसपास ही मतदान हो पाया। यद्यपि राज्य सरकार ने रायपुर दक्षिण के मतदाता कर्मचारियों के लिए संवैतनिक अवकाश घोषित किया था, बावजूद इसके ज्यादातर कर्मचारी-परिवार वोट डालने नहीं गए।
कई लोग मान रहे थे कि कर्मचारी नेता प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण को लेकर जिस तरह कर्मचारी आंदोलित थे उससे ज्यादा वोटिंग होने की उम्मीद लगा रहे थे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। भाजपा के लोग कर्मचारियों की कम वोटिंग को अपने फायदे के रूप में देख रहे हैं। अब किसको कितना फायदा होता है यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
सच का सामना करें
छत्तीसगढ़ में शराब की खपत को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। हाल ही में मनपसंद शराब उपलब्ध कराने के लिए लाई गई ऐप ने सोशल मीडिया पर कांग्रेस और भाजपा के बीच जंग छेड़ दी है। राजनीतिक खींचतान आम लोगों को भरमाने के लिए है। शराब से राजस्व आय पिछले 20 सालों में दो गुनी से अधिक हो चुकी है। इसे कोई सरकार नहीं छोडऩा चाहती। शराब को बुरा भी मानेगी और इसकी खपत बढ़े इसकी कोशिश भी करेगी।
जून में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में देश में सबसे ज्यादा शराब पी जाती है। यहां कुल आबादी का 35.6 प्रतिशत हिस्सा शराब का सेवन करता है। यह आंकड़ा देश के किसी भी अन्य राज्य से ज्यादा है। खास बात यह है कि इस संख्या में महिलाओं को भी शामिल किया गया है, हालांकि पीने वालों में अधिकांश पुरुष ही हैं। महिलाओं को अलग करके गिनें और पीने वालों का असली प्रतिशत निकाल लें।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि जून तक छत्तीसगढ़ की सरकारी दुकानों में अच्छे ब्रांड की शराब की कमी थी। इसके बावजूद, यहां की जनता घटिया शराब पीकर भी पहले स्थान का दर्जा नहीं छीनने दिया। इसके मुकाबले त्रिपुरा 34.7 प्रतिशत के साथ दूसरे और आंध्र प्रदेश 34.5 प्रतिशत के साथ तीसरे नंबर पर हैं।
पंजाब, जिसे अक्सर नशे के लिए बदनाम किया जाता है, इस सूची में चौथे स्थान पर है। वहां कुल आबादी का सिर्फ 28.5 प्रतिशत शराब पीता है। वहीं, मौज-मस्ती और पार्टीबाजी के लिए मशहूर गोवा छठवें नंबर पर है, जहां केवल 26.4 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं।
अरुणाचल प्रदेश 28 प्रतिशत के साथ पांचवें स्थान पर है, जबकि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से भी कम है।
इस पर विचार मत करें कि अधिकांश अपराध नशे की वजह से होते हैं। हत्या, लूट, बलात्कार, चाकूबाजी सब। हमारी पुलिस इन नशेडिय़ों के क्राइम को ही निपटाने में ज्यादा वक्त गुजारती है। कभी-कभी हिसाब किया जाना चाहिए कि शराब के कारण होने वाले अपराध के एवज में बांटी जाने वाली तनख्वाह ज्यादा है या शराब बेचने से होने वाली आमदनी।
गुरु पूर्णिमा के मौके पर
अचानकमार अभयारण्य में दिल्ली वाले प्रोफेसर साहब प्रभुदत्त खेड़ा ने अपना जीवन आदिवासियों की बेहतरी के लिए गुजार दिया। वे अपने पीछे अनेक शुभचिंतक छोड़ गए। उनका खोला गया एक स्कूल अचानकमार में स्थापित है। गुरु पूर्णिमा के दिन उनके शिष्य ये सारा सामान बच्चों के लिए छोड़ आए।