राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : वोटिंग और डिस्काउंट
11-Nov-2024 4:17 PM
राजपथ-जनपथ : वोटिंग और डिस्काउंट

वोटिंग और डिस्काउंट

रायपुर दक्षिण में चुनाव आयोग ने मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए यथासंभव कोशिश की है। आम तौर पर रायपुर की चारों सीटों पर आम चुनाव में 60 फीसदी के आसपास मतदान हुआ था। जबकि इससे सटे अभनपुर, और धरसींवा में भारी मतदान हुआ था।  आयोग की पहल पर मतदाताओं को प्रोत्साहित करने के लिए कई होटल-रेस्टॉरेंट ने विशेष छूट का ऐलान किया है। इसमें मतदाताओं को बिल में पांच से 30 फीसदी तक डिस्काउंट देने का ऐलान किया है। इस डिस्काउंट ऑफर का लाभ लेने के लिए मतदाताओं को अपनी उंगली पर लगी स्याही दिखानी होगी। यह ऑफर 19 नवंबर तक रहेगा।

दिलचस्प बात यह है कि इस तरह का ऑफर विधानसभा आम चुनाव में भी दिया गया था, तब रायपुर दक्षिण में 61 फीसदी के आसपास ही मतदान हो पाया। इस बार दोनों ही प्रमुख पार्टी कांग्रेस, और भाजपा हर मतदाता तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। अकेले उपचुनाव की वजह से दोनों ही पार्टी की पूरी ताकत यहां लगी हुई है। ऐसी स्थिति में मतदान का प्रतिशत बढ़ता है या नहीं, यह तो 13 तारीख को पता चलेगा।

साहू वोट, बड़ा मुद्दा

रायपुर दक्षिण में साहू समाज के वोटरों को कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू, और कसडोल विधायक संदीप साहू लगे हुए हैं। इन सबके बीच भाजपा ने साजा विधायक ईश्वर साहू को प्रचार में उतारा है।

भुवनेश्वर साहू हत्याकांड के बाद विधानसभा आम चुनाव में साहू वोटर भाजपा की तरफ शिफ्ट हुए थे। भाजपा ने भुवनेश्वर के पिता ईश्वर को प्रत्याशी बनाया था, जिन्होंने दिग्गज नेता रविन्द्र चौबे को हराया। ईश्वर लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए स्टार प्रचारक साबित हुए।

इस बार उपचुनाव में भी पार्टी ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है। मगर कांग्रेस ने कवर्धा के लोहारीडीह में सरपंच कचरू साहू की हत्या, और साहू समाज के लोगों को प्रताडि़त करने का मुद्दा बनाया है। ऐसे में ईश्वर उपचुनाव में कितना कारगर साबित होते हैं, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।

निजी प्रैक्टिस पर बढ़ती रार

 

प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक के विरोध में डॉक्टरों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। स्वास्थ्य मंत्री ने इस दिशा में कुछ राहत देने के लिए सीमित छूट की घोषणा की है, लेकिन मामला अभी भी गरमाया हुआ है। इसका प्रभाव अब उन निजी अस्पतालों तक भी पहुंच गया है, जहां आयुष्मान कार्ड और अन्य सरकारी योजनाओं के तहत मरीजों का इलाज होता है। स्वास्थ्य विभाग ने इन अस्पतालों से शपथ-पत्र लेने का आदेश दिया है, जिसमें यह प्रमाणित करना होगा कि उनके यहाँ कोई भी सरकारी डॉक्टर, चाहे अंशकालिक हो या ऑन-काल, सेवाएं नहीं देता है।

इस कदम ने अस्पताल संचालकों और सरकारी डॉक्टरों दोनों को नाराज कर दिया है। सवाल यह उठता है कि सरकारी डॉक्टरों से लिखित घोषणा करवाने के बावजूद निजी अस्पतालों से भी शपथ-पत्र क्यों लिया जा रहा है? संचालकों में तो असंतोष है ही, साथ ही डॉक्टर भी नाखुश हैं। खासतौर से विशेषज्ञ डॉक्टरों की नाराजगी अधिक है। उन्हें भी सिर्फ घर से ही प्रैक्टिस करने को कहा जा रहा है। उनका सवाल है कि अगर कोई गंभीर मरीज आता है तो घर में अस्पताल जैसी सुविधाओं के अभाव में उसका इलाज कैसे हो सकेगा?

इसके अलावा, डॉक्टरों को मिलने वाला 'नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस' भी 25 से 30 हजार रुपये के बीच है। चिकित्सकों का एक वर्ग चाहता है कि उन्हें यह भत्ता तो मिलता रहे, पर सरकार उनकी प्राइवेट प्रैक्टिस में हस्तक्षेप न करे। इस मुद्दे पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भी सरकार के खिलाफ खड़ा है।

प्राइवेट प्रैक्टिस और अस्पतालों में सेवाएं देने पर रोक का मुद्दा अब राजनीतिक रंग भी लेता जा रहा है। चर्चा है कि भाजपा के भीतर ही कुछ लोग, जो वर्तमान सरकार और मंत्रियों से नाखुश हैं, डॉक्टरों को इस मामले में भडक़ाने का प्रयास कर रहे हैं। कुल मिलाकर, इस पेचीदा मसले का हल ढूंढना स्वास्थ्य मंत्री और सरकार के लिए आसान नहीं दिख रहा है।

स्मार्ट सिटी का कबाड़ होता सिग्नल

चौक-चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरे सिग्नल तोडऩे, रॉन्ग साइड चलने और ओवरस्पीड वाहनों का रिकॉर्ड दर्ज करते हैं। नियम उल्लंघन करने पर आपके मोबाइल पर चालान आ जाता है। बीते कुछ वर्षों में जुर्माने की रकम भी बढ़ा दी गई है। पहली बार सिग्नल तोडऩे या ओवरस्पीड गाड़ी चलाने पर 1000 रुपये, रॉन्ग साइड जाने पर 2000 रुपये का जुर्माना। हर बार यह जुर्माना बढ़ता जाएगा। इसके बाद वाहन का रजिस्ट्रेशन और ड्राइविंग लाइसेंस भी रद्द हो सकता है। इस ऑटोमैटिक प्रणाली को तैयार करने में 100 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आया है।

लेकिन यह सब क्यों? अगर इसका उद्देश्य लोगों को यातायात नियमों का पालन करवाकर सडक़ दुर्घटनाएं रोकना है तो राजधानी रायपुर के कई चौक-चौराहों पर सिग्नल बंद क्यों हैं? यहां नियम तोडऩे पर भले ही चालान न हो, लेकिन अगर दुर्घटनाएं होती हैं तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? यह तस्वीर सरोना के एक चौक की है। ([email protected])

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