सारंगढ़-बिलाईगढ़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
सारंगढ़, 26 अक्टूबर। गोपाल जी मंदिर छोटेमठ में श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ विधिवत पूजा-अर्चना और मंगलाचरण के साथ किया गया। मंदिर के महंत बंशीधर दास मिश्रा ने व्यासपीठ पर आसीन होकर कथा का श्रीगणेश किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
कथा के प्रथम दिवस पर भागवताचार्य बंशीधर दास मिश्रा ने कहा कि भागवत भगवान से तात्पर्य है वह स्वरूप, जो कथा के माध्यम से भक्तों के हृदय में प्रकट होता है। उन्होंने बताया कि ‘भागवत’ शब्द स्वयं ‘भगवान’ से निकला है, जिसका अर्थ है-भगवान से संबंधित कथा, भगवान का स्वरूप और उनका ज्ञान।
आचार्य ने कहा, जो व्यक्ति श्रद्धा से भागवत कथा का श्रवण करता है, उसमें स्वयं भगवान प्रकट होकर उसे पवित्रता और मोक्ष प्रदान करते हैं। उन्होंने श्लोक उद्धृत करते हुए कहा—‘श्रवणं भागवतात् पुण्यं नराणां शुद्धिहेतव:।’ अर्थात्-भागवत कथा का श्रवण मनुष्य के पापों का नाश करता है और आत्मा को शुद्ध करता है।
धुंधकारी कथा से मिला ज्ञान का संदेश
कथाविन्यास को आगे बढ़ाते हुए भागवताचार्य ने गोकर्ण-धुंधकारी प्रसंग का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि यह कथा अत्यंत प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक है। उन्होंने कहा —गोकर्ण ज्ञान और भक्ति का प्रतीक है, धुंधकारी अंधकारमय जीवन का, और श्रीमद्भागवत कथा वह प्रकाश है जो जीव को मोह, पाप और अज्ञान से मुक्त कर मुक्ति के मार्ग पर ले जाती है।
कथा के दौरान आचार्य मिश्रा ने कबीरदास की वाणी का उल्लेख करते हुए कहा-माया मुई ना मन मुवा, मरी मरी गया शरीर, आशा तृषा ना मुई, कह गए दास कबीर। उन्होंने समझाया कि मनुष्य को सांसारिक मोह और तृष्णा से मुक्त होकर भक्ति और सत्कर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।
कथा आरंभ के साथ ही मंदिर परिसर में भक्ति का वातावरण व्याप्त हो गया। श्रद्धालुओं ने आचार्य के प्रवचनों को सुना और भगवान श्रीकृष्ण के भजन गाकर भावविभोर हो उठे।
कथा का आयोजन सात दिनों तक चलेगा, जिसके समापन दिवस पर पूर्णाहुति और भंडारा का आयोजन किया जाएगा।


