राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बिहार में छत्तीसगढ़
04-Nov-2025 6:09 PM
राजपथ-जनपथ : बिहार में छत्तीसगढ़

बांकीपुर की सडक़ों में ऑटो में सवार छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री


बिहार में छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी नितिन नबीन की विधानसभा सीट बांकीपुर में प्रचार के लिए दोनों डिप्टी सीएम अरुण साव, और विजय शर्मा गए हैं। उनके अलावा प्रचार के अंतिम दिन प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष किरण देव भी नबीन के लिए घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं। करीब आधा दर्जन निगम-मंडल के चेयरमैन, और पूर्व पदाधिकारी वहां डेरा डाले हुए हैं।

नबीन रोज रात छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं से मेल मुलाकात कर फीडबैक भी ले रहे हैं। उनके प्रचार में जुटे पार्टी के नेताओं का दावा है कि  नबीन रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीतेंगे। बताते हैं कि नबीन के चुनाव प्रबंधन से जुड़े लोगों ने छत्तीसगढ़ से आए कार्यकर्ताओं को हिदायत दे रखी है कि वो स्थानीय नेताओं के पीछे रहकर प्रचार करें। स्थानीय नेताओं को यह नहीं लगना चाहिए कि बाहर से आए कार्यकर्ता उन पर हावी हो रहे हैं। यदि ऐसा हुआ, तो नुकसान हो सकता है। दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में दूसरे राज्यों से प्रचार के लिए भाजपा नेता आते रहे हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के नेताओं को लेकर स्थानीय छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ताओं की शिकायतें रहती थी कि ये सभी गैर जरूरी मांग करते हैं, और हावी होने की कोशिश करते हैं। जबकि आम मतदाताओं के बीच प्रचार करने से कोई फायदा नहीं होता है।

विशेषकर बस्तर संभाग में स्थानीय कार्यकर्ताओं, और दूसरे राज्यों से आए कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य नहीं रहा। बिहार पिछड़ा, और गरीब राज्य जरूर है, लेकिन राजनीतिक जागरूकता यहां के मतदाताओं में काफी है। ऐसे में बिहार चुनाव में प्रचार के अनुभव से यहां के नेताओं को काफी कुछ सीखने का अवसर भी मिल रहा है।

विधायक की कुर्सी बचा रहा प्रशासन ?

सरगुजा के एसटी रिजर्व सीट प्रतापपुर से विधायक शकुंतला पोर्ते के जाति प्रमाण पत्र को लेकर विवाद गहरा गया है। नामांकन जमा करने के बाद ही पोर्ते के जाति प्रमाण पत्र को लेकर आपत्ति जताई जा रही थी। यह कहा गया कि उन्होंने अनुसूचित जनजाति का होने का मूल दस्तावेज नहीं दिखाया। इसके बावजूद उनका नामांकन वैध घोषित कर दिया गया था। आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बीते जून माह में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जिला स्तरीय, जाति छानबीन समिति को उनके दस्तावेजों को सत्यापित करने का निर्देश दिया था। मगर, चार माह बीत जाने के बावजूद समिति ने कोई निर्णय नहीं लिया है। जिला प्रशासन का दावा है कि अगस्त और सितंबर महीने में तीन बार पोर्ते को नोटिस जारी कर उपस्थित होने के लिए कहा गया था लेकिन वे नहीं पहुंचीं। अब फिर नोटिस दी जाएगी। इधर आदिवासी संगठनों का आरोप है कि पोर्ते जांच से बच रही हैं। यदि उनके पास वास्तविक दस्तावेज हैं तो उसे सामने लाने में देर क्यों कर रही हैं। यदि दस्तावेज नहीं है तो माना जाएगा कि वह असली आदिवासियों का हक छीन रही हैं। अब, आदिवासी संगठनों ने सूरजपुर कलेक्टर को एक बार फिर ज्ञापन सौंपा है, जिसमें एक सप्ताह का अल्टीमेटम भी दिया गया है। भाजपा की शकुंतला पोर्ते ने कांग्रेस के डॉ. प्रेमसाय टेकाम को हराकर जीत हासिल की थी। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद जिला प्रशासन ने अब तक तो फैसला रोक रखा है। मगर, अब आदिवासी समाज का दबाव बढ़ा है। ऐसे में उसे जल्द कोई निर्णय लेना ही पड़ेगा।

अब बैंकों में बढ़ता वीआरएस

कभी बैंक की नौकरी मतलब 35- 40 वर्ष के जीवन के लिए बेफिक्री मानी जाती रही है। हालांकि अभी भी बैंक में नौकरी का बड़ा क्रेज बना हुआ है। लेकिन हालिया वर्षों में इसके प्रति बेरुखी बढ़ी है खासकर सेवारत अफसर- कर्मियों में। आरटीआई से मिली जानकारी अनुसार बीते ढाई साल में देश भर से 1600 से अधिक अफसरों ने वीआरएस लिया है। ये सभी अफसर असिस्टेंट मैनेजर से एजीएम स्तर के हैं। जो बैंकिंग सेक्टर के लिए चिंतनीय विषय है। इस पर बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी का कहना था कि यह केवल एक बैंक का हो सकता, सभी सार्वजनिक बैंकों के आंकड़े तो इससे कहीं अधिक है।  इसके पीछे कारण पूछा तो कहने लगे बिजनेस का टारगेट पूरा करने के दबाव से स्ट्रेस लेवल काफी बढ़ गया है। वह भी अनरियलिस्टिक टारगेट। उसमें भी सरकार प्रवर्तित  योजनाओं के। इस वजह छुट्टियां न मिलना, मौखिक सूचना पर कभी भी बैंक बुला लेना आदि आदि। उसकी तुलना में कम वेतनमान। वीआरएस लेकर अब सभी कंसल्टेंसी सर्विसेज या बड़े कॉरपोरेट ग्रुप में काम कर रहे हैं। कुछ ही दिनों पहले हमने बताया था कि बीते 10 वर्षों में आयकर विभाग में भी  भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के 853 अफसरों ने वीआरएस लिया है।

सामाजिक टकराव कहां तक

छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के प्रमुख अमित बघेल के खिलाफ देश-प्रदेश के अलग-अलग जिलों में प्रदर्शन हुआ है। अमित ने अग्रवाल समाज, और सिंधी समाज के विभूतियों के खिलाफ टिप्पणी की थी। इस पर महाराष्ट्र में अमित बघेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुका है। राजस्थान, और मध्यप्रदेश में भी अमित पर एफआईआर दर्ज कराने के लिए अभियान चल रहा है।

छत्तीसगढ़ में धमतरी में अमित बघेल के खिलाफ सिंधी समाज के लोगों ने रैली भी निकाली। आज रायगढ़ बंद भी रखा गया है। जहां तक अमित बघेल का सवाल है, तो वो माफी मांगने के लिए तैयार नहीं हैं। यही नहीं, सोशल मीडिया पर अमित समर्थकों के तेवर गरम हैं। इन सबके बीच राजधानी रायपुर में सिंधी समाज के बड़े नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी अपने 10-12 समर्थकों के साथ अमित बघेल के खिलाफ देवेन्द्र नगर थाने में जाकर रिपोर्ट लिखाई, लेकिन आगे वो खामोश हो गए। सिंधी काउंसिल से जुड़ी महिलाओं ने रायपुर के कटोरा तालाब इलाके में सोमवार को कुछ देर प्रदर्शन के नाम पर एकत्र जरूर हुए, लेकिन धीरे-धीरे वो निकल गए। सिंधी समाज के प्रमुख खामोश हैं। वजह यह है कि बड़े पैमाने पर मोवा और अन्य इलाकों में पाकिस्तान से आए सिंधी समाज के लोग बसे हैं। कई को तो नागरिकता भी मिल चुकी है। कुछ लोग अभी भी नागरिकता की कोशिश में हैं।

नहीं चाहिए ऐसा सम्मान

सेवा कार्यों के लिए सम्मानित होने वालों से अतिथि शिष्टाचारवश ही सही, उनकी उपलब्धियों की सराहना करते हैं, बधाई और शाबाशी देते हैं। अतिथि के मुंह से सम्मान में निकले दो शब्द, प्रशस्ति पत्र और पदक की तरह ही कीमती होते हैं। पर यदि अतिथि मजाक उड़ाए, तंज कस दे तब? स्थिति सम्मान पत्र लौटा देने तक पहुंच जाती है। अंबिकापुर के जिला स्तरीय राज्योत्सव में स्वैच्छिक रक्तदान के लिए शहर के युवा कारोबारी ऋषि अग्रवाल को मुख्य अतिथि रामविचार नेताम ने प्रशस्ति पत्र सौंपा। ऋषि का कहना है कि नेताम ने उनसे पूछा कि आपने क्या किया है? इस पर ऋषि ने जवाब दिया कि उन्होंने अब तक 49 बार रक्तदान किया है। इसके बाद नेताम ने जो कहा, वह अप्रत्याशित था। कथित रूप से उन्होंने कहा- अभी भी तुम्हारा खून बहुत फडफ़ड़ा रहा है। यह सुनकर ऋषि को बुरा लगा। उन्हें समझ नहीं आया कि मंत्री जी ने उनका सम्मान किया है या अपमान। युवक से रहा नहीं गया और उन्होंने अगले दिन कलेक्टर के पास जाकर सम्मान पत्र वापस कर दिया। सरगुजा कलेक्टर को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि मंत्री की टिप्पणी से उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है इसलिए प्रशस्ति पत्र लौटा रहा हूं।

यदि नेताम से बोलने में कोई चूक हो गई तो शायद उन्हें सुधार लेना चाहिए था। युवक को बुलाकर अपनी टिप्पणी वापस लेने की बात कह सकते थे। पर हो सकता है कि उन्हें एहसास ही नहीं हुआ हो कि वे क्या बोल गए। कबीर ने शायद ऐसे मौके के लिए ही लिखा था- शब्द सम्हारि बोलिए, शब्द के हाथ न पांव। एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।


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