राजपथ - जनपथ
जिलों में राज्योत्सव, रंग में भंग
राज्य स्थापना के रजत जयंती पर उत्सव चल रहा है। राजधानी रायपुर में पांच तारीख को राज्योत्सव का समापन होगा। बाकी जिलों में रविवार को कार्यक्रम हुए। इसमें सरकार के मंत्रियों-विधायक, और सांसदों के अलावा स्थानीय प्रमुख अतिथियों ने शिरकत की। राजधानी रायपुर में तो रंगारंग कार्यक्रम चल रहा है, लेकिन कुछ जिलों में कार्यक्रम फीका रहा। बेमेतरा में तो कलेक्टर पर अभद्रता का आरोप लगाकर भाजपा विधायक ने समर्थकों के साथ कार्यक्रम का ही बहिष्कार कर दिया।अंबिकापुर में कला केंद्र मैदान में राज्योत्सव के कार्यक्रम में भाजपा के बड़े नेता ही नदारद थे। कृषि मंत्री रामविचार नेताम मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे। उनके अलावा लूंड्रा विधायक प्रबोध मिंज ने ही कार्यक्रम में शिरकत की। कुर्सियां खाली रहीं, और नेताम ने खाली कुर्सियों के बीच अपना भाषण पूरा किया। बताते हैं कि स्थानीय लोग सडक़ की बदहाली से काफी परेशान हैं। बारिश के चलते सडक़ों पर जगह-जगह गड्ढे हो गए हैं। लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं। भाजपा नेताओं ने डिप्टी सीएम अरुण साव के अलावा महामंत्री (संगठन) पवन साय तक अपनी बात पहुंचाई है, सडक़ों की मरम्मत के लिए कुछ राशि भी स्वीकृत हुई है, लेकिन इसे ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर माना जा रहा है। यही वजह है कि लोग राज्योत्सव समारोह से दूर रहे।बेमेतरा में तो कुछ अलग ही नजारा देखने को मिला। बताते हैं कि कलेक्टर रणबीर शर्मा ने किसी बात पर कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं को डपटकर वहां से चले जाने कहा। फिर क्या था, खुद विधायक दीपेश साहू कार्यकर्ताओं के समर्थन में आगे आ गए। कलेक्टर के खिलाफ नारेबाजी हुई, और वो अपने समर्थकों के साथ राज्योत्सव समारोह का बहिष्कार कर निकल गए। समारोह के मुख्य अतिथि सांसद विजय बघेल भी वहां मौजूद थे। कुल मिलाकर भाजपा नेताओं ने रंग में भंग डालने का काम किया। इसी तरह से जांजगीर में भी अतिथि सांसद कमलेश जांगड़े पांच घंटे देर से पहुंची, तो मुख्य अतिथि राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा गए ही नहीं। इस वजह से पूरा कार्यक्रम बिना जनता के शुरू करना पड़ा।
आईपीएस के लिए खबर अच्छी नहीं
डेपुटेशन पर जाने वाले आईपीएस के लिए खबर अच्छी नहीं है। हालांकि इसका छत्तीसगढ़ के अफसरों पर अधिक फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि यहां के अफसर केंद्रीय सुरक्षा बलों के बजाय जांच एजेंसियों में सेवा के पक्षधर रहे हैं। अब तक कुछ ही नाम याद आते हैं जो केंद्रीय बलों में रहे। एक राजेश मिश्रा बीएसएफ में रहे, और आरएनदास सीआरपीएफ में गए हैं।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिका को खारिज कर दी है। इसमें कोर्ट ने निर्देश दिया था कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति कम की जाए और छह महीने के भीतर कैडर समीक्षा पूरी की जाए। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने 23 मई, 25 के अपने फैसले की समीक्षा की मांग वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई की। इसी वर्ष मई में शीर्ष अदालत ने केंद्र को आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी सहित सभी केंद्रीय बलों (सीएपीएफ) में होने वाली कैडर समीक्षा करने और इसे छह महीने के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया था।आईपीएस अफसरों की पोस्टिंग कम कर बल में सीधी भर्ती के अफसरों को उच्च पदों पर नियुक्ति का अवसर देने यह याचिका लगाई गई थी। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को कैडर समीक्षा और सेवा या भर्ती नियमों में संशोधन पर गृह मंत्रालय से कार्रवाई रिपोर्ट प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर उचित निर्णय लेने का भी निर्देश दिया था। अब 28 अक्टूबर को दिए निर्देश अनुसार गृह मंत्रालय को आईपीएस के लिए प्रतिनियुक्ति के पद कम करने ही होंगे।बता दें कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के लगभग 20 हजार कैडर अधिकारी, जो पदोन्नति एवं वित्तीय फायदों के मामले में पिछड़ रहे हैं। सुनवाई में यह बात सामने आई कि केंद्र की समूह-ए सेवा में 19-20 वर्ष में सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एसएजी) मिल रहा है तो वहीं केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में 36 वर्ष तक लग रहें हैं। बीएसएफ और सीआरपीएफ की बात करें तो 2016 से इन बलों में कैडर रिव्यू नहीं हुआ है। यूपीएससी से सेवा में आए ग्राउंड कमांडर यानी सहायक कमांडेंट को 15 साल में भी पहली पदोन्नति नहीं मिल रही। डीओपीटी का नियम है कि हर पांच वर्ष में कैडर रिव्यू होना चाहिए।
कौन थे वे, जिन्हें मोदी ने याद किया?
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छत्तीसगढ़ विधानसभा के नए भवन के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में संविधान सभा के उन कुछ विभूतियों को याद किया, जिनका देश और राज्य को योगदान रहा। कई नाम ऐसे थे जिन्हें नई पीढ़ी ने शायद पहली बार सुना हो।
मोदी ने पंडित रविशंकर शुक्ल को याद किया। शुक्ल (2 अगस्त 1877- 31 दिसंबर 1956) आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रहने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। वे सेंट्रल प्रोविंसेस एंड बरार के प्रीमियर (1946-1950) और बाद में 1956 में बने मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। वे छत्तीसगढ़ के उस विद्वान परिवार से थे जिसने प्रदेश के विकास में अहम योगदान दिया। उनके बेटे श्यामाचरण शुक्ल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, जबकि विद्याचरण शुक्ल केंद्र में मंत्री थे।
अकलतरा (जिला जांजगीर-चांपा) में 1887 में जन्मे बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वकील, स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, पत्रकार और संगीतकार। उन्होंने लंदन के लिंकन इन से बैरिस्टर की डिग्री ली और ऑक्सफोर्ड से इतिहास में एम.ए. किया। वे 1946 से 1952 तक संविधान सभा के सदस्य रहे। गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने जेल भी काटी। उनका घर आज भी बिलासपुर के गांधी चौक के पास है, जहां उनकी बेटी रत्ना सिंह (90 वर्ष) रहती हैं।
इसी तरह घनश्याम सिंह गुप्ता छत्तीसगढ़ क्षेत्र (तत्कालीन सेंट्रल प्रोविन्सेस) से संविधान सभा के महत्वपूर्ण सदस्य थे। उन्होंने क्षेत्र की सीमित सुविधाओं के बावजूद दिल्ली पहुंचकर डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान निर्माण में हिस्सा लिया। बाद में वे मध्यप्रांत से विधायक भी बने।
किशोरी मोहन त्रिपाठी (8 नवंबर 1912-1994) सारंगढ़ रियासत, रायगढ़ के निवासी थे। वे युवा स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और राजनेता रहे। 1947 से 1950 तक संविधान सभा में सेंट्रल प्रोविंस का प्रतिनिधित्व किया और 37 साल की उम्र में 1950-52 तक सांसद बने। उनके पोते कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने उनके देशभक्ति के आदर्शों से प्रेरणा लेकर सेना में भर्ती ली, जो आतंकवादी हमले में शहीद हो गए थे। रायगढ़ में दोनों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। पिछले साल शहीद विप्लव की प्रतिमा का अनावरण मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने किया था।
रामप्रसाद पोटाई (1923- 6 अक्टूबर 1962) कांकेर से हैं। वे छत्तीसगढ़ के पहले आदिवासी वकील थे। वे बस्तर क्षेत्र से विधायी राजनीति में आए और संविधान सभा में आदिवासी हितों की आवाज उठाई। वे मालगुजार घनश्याम सिंह पोटाई के पुत्र थे, जो खुद भी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे। रामप्रसाद पोटाई भानुप्रतापपुर के पहले विधायक बने। उन्हें बस्तर का गांधी भी कहा जाता है। उनकी स्मृतियों को संजोने के लिए छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार ने कुछ प्रयास किए थे और उनके परिवार के लोगों को सम्मानित किया था।
दीवान बहादुर रघुराज सिंह ने सरगुजा रियासत की ओर से संविधान सभा में प्रतिनिधित्व किया। आजादी के बाद उन्हें प्रशासनिक सेवा में भी शामिल किया गया। वे बिलासपुर के कमिश्नर बनाए गए। रायपुर के राजकुमार कॉलेज की स्थापना में उनका बड़ा योगदान रहा। बिलासपुर का एक विशाल स्टेडियम उनके नाम पर है।
बचकर रहें

जालसाज और धोखेबाज औसत लोगों के मुकाबले बहुत अधिक होशियार रहते हैं। माइक्रोसॉफ्ट के लोगो के साथ एक फज़ऱ्ी वेबसाइट ऐसी बनाई है, जो दिखने में तो माइक्रोसॉफ्टडॉटकॉम है, लेकिन उसके हिज्जों में द्व की जगह ह्म्ठ्ठ है। पहली नजर में ही धोखे में फँस जाने के लिए यह काफ़ी है। बचकर रहें।


