राजपथ - जनपथ
कांग्रेस की नई प्रतिभाएं
कुरूद की लिली श्रीवास को युवक कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव बनाया गया, तो प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता चौंक गए। लिली की किसी बड़े नेता ने सिफारिश नहीं की थी। वो अपनी योग्यता, और कार्यक्षमता के बूते पर राष्ट्रीय इकाई में जगह बनाने में कामयाब रही हैं।
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की टीम राज्यों में युवा प्रतिभाओं को टैलेंट हंट से आगे लाने की कोशिश कर रही है। लिली भी इसी टीम की खोज है। लिली श्रीवास, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल हुई थीं। उन्होंने चुनावी राजनीति में भी अपना दमखम दिखाया है। कुरूद जनपद से कांग्रेस समर्थित मात्र दो जनपद सदस्य चुने गए। इनमें एक लिली श्रीवास है।
लिली से पहले सरगुजा की शशि सिंह, जशपुर की आशिका कुजूर, और डोंगरगढ़ की कांति बंजारे भी राहुल गांधी की टीम की खोज है। दिलचस्प बात ये है कि लिली की तरह बाकी तीनों नेत्रियां भी जमीनी पकड़ भी रखती हैं। यही नहीं, इन सबको अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रदेश के किसी बड़े नेता के माध्यम की जरूरत नहीं है। कुल मिलाकर युवा नेत्रियों की दिल्ली में पकड़ को देखकर स्थानीय बड़े नेता भी चकित हैं। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि ये महिला नेत्रियां आने वाले समय में पार्टी के प्रत्याशी चयन में भी भूमिका निभाएंगी। देखना है आगे क्या होता है।
दिल्ली में जगह बनेगी?
केन्द्र सरकार के सचिव पद के लिए सूचीबद्ध होने वाले अफसरों की लिस्ट संभवत: अगले हफ्ते जारी होगी। इसमें वर्ष-92 से 94 बैच तक के अफसर सचिव पद के लिए सूचीबद्ध होंगे। इसके बाद जनवरी से केंद्रीय सचिव अथवा समकक्ष पद के लिए पोस्टिंग की प्रक्रिया शुरू होगी। इस सूची पर राज्य सरकार के आला अफसरों की नजरें टिकी हैं।
दरअसल, सीएस बनने की दौड़ में रहे 94 बैच के अफसर रिचा शर्मा, और मनोज पिंगुआ भी केन्द्रीय सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हो सकते हैं। रिचा शर्मा पहले केन्द्र सरकार में अतिरिक्त सचिव के पद पर काम कर चुकी हैं। मनोज पिंगुआ भी संयुक्त सचिव रहे हैं। वैसे तो सीएस विकासशील, और उनकी पत्नी निधि छिब्बर का नाम होना तय है, लेकिन रिचा और मनोज पिंगुआ को लेकर उत्सुकता ज्यादा है।
चर्चा है कि सीएस बनने से रह गए दोनों अफसर सचिव पद पर सूचीबद्ध होने की दशा में केन्द्र सरकार की तरफ रुख कर सकते हैं। राज्य सरकार में सचिव पद पर पदस्थ एक अफसर भी केन्द्र सरकार में जाने के लिए प्रयासरत हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बिहार चुनाव से पहले वेतन आयोग

फरवरी 2025 में, दिल्ली विधानसभा चुनाव के ठीक पहले केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग की घोषणा की थी। उसके बाद यह विषय लगभग ठंडे बस्ते में चला गया था। अब, जब बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, तो आयोग के गठन का अपडेट अचानक सामने आया है। मंत्रिमंडल ने 28 अक्टूबर को इसके गठन को औपचारिक मंजूरी दे दी।
दरअसल, यह गठन जनवरी 2024 में ही हो जाना चाहिए था ताकि तय समय-सीमा के अनुसार आयोग अपनी सिफारिशें जनवरी 2026 तक प्रस्तुत कर सके और उसी समय से वेतनवृद्धि लागू की जा सके। परंपरागत रूप से अब तक यही प्रक्रिया रही है। सातवां वेतन आयोग वर्ष 2014 में गठित किया गया था और उसकी सिफारिशें 2015 में लागू भी हो गई थीं। लेकिन इस बार गठन में उल्लेखनीय देरी हुई है।
केंद्रीय कर्मचारियों के बीच यह आशंका गहराने लगी थी कि कहीं कड़े फैसले लेने वाली सरकार वेतन आयोग गठित करने की परंपरा ही खत्म न कर दे। हालांकि, दिल्ली चुनाव से पहले हुई घोषणा से उन्हें राहत मिली। मगर इसके बाद से प्रक्रिया ठहरी रही, और अब जब बिहार में नवंबर में चुनाव हैं, तभी इसे आगे बढ़ाया गया है।
यह भी गौर करने योग्य है कि अभी आयोग के टर्म्स ऑफ रिफरेंस घोषित किए गए हैं। आगे की प्रक्रिया लंबी है। आयोग को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए 18 माह का समय दिया गया है। इस हिसाब से सिफारिशें अप्रैल 2027 तक आएंगी। इसके बाद सरकार वित्तीय स्थिति और अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए समीक्षा करेगी, जिसमें लगभग छह माह लग सकते हैं। व्यवहारिक रूप से आयोग की सिफारिशों का क्रियान्वयन 2027 के अंतिम महीनों में या जनवरी 2028 तक संभव होगा।
सरकार ने यह भी घोषणा की है कि जनवरी 2026 से बढ़ा हुआ वेतन प्रभावी माना जाएगा। यानी सिफारिशें लागू होने के बाद जनवरी 2026 से एरियर की राशि दी जाएगी। यह एरियर 18 से 24 महीनों का हो सकता है। इससे केंद्र सरकार के प्रत्येक कर्मचारी और पेंशनभोगी के खाते में एक बड़ी रकम के रूप में पहुंचेगा।
कर्मचारी न केवल सरकारी तंत्र की रीढ़ हैं बल्कि एक बड़ा वोट बैंक भी। शायद यही कारण है कि दिल्ली चुनाव से पहले आठवें वेतन आयोग की घोषणा की गई और अब बिहार चुनाव से पहले उसका औपचारिक गठन कर दिया गया। आने वाले समय में आयोग की अंतरिम रिपोर्ट, अंतिम सिफारिशें, सरकार की समीक्षा और एरियर भुगतान की प्रक्रिया इन सभी चरणों के दौरान कई राज्यों में चुनाव होने हैं। 2029 में छत्तीसगढ़ में चुनाव होंगे। उसके पहले आठवें वेतन आयोग की सिफारिशें केंद्र में लागू हो चुका रहेगा राज्यों के कर्मचारी केंद्र के समान वेतन लागू करने की मांग उठाते हैं, प्राय: थोड़े संशोधनों के बाद वह लागू भी हो जाता है। इसलिये राज्य सरकारों को भी विधानसभा चुनाव के पहले पूरा या आंशिक संशोधन अपने कर्मचारियों के वेतनमान में करना जरूरी हो जाएगा।
अंबिकापुर की सडक़ें, तालाब बन गईं

यह तस्वीर प्रशासन की लापरवाही की कहानी कह रही है। अंबिकापुर में टूटी सडक़ों और गड्ढों से परेशान लोगों ने अलग-अलग तरह के प्रदर्शन कर सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश की है। वे खुद ही सडक़ के बीच बने कीचड़ भरे गड्ढे में बैठ गए। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिखाई दे रहा है कि वे सरकार और अफसरों को नारे लगा-लगाकर कोस रहे हैं। महीनों से सडक़ों की यही हालत है। हर दिन गाडिय़ां फंसती हैं, पलट जाती हैं, दुर्घटनाएं हो रही हैं- कारोबार ठप हो गया है, पर प्रशासन मौन है। सरकार के दावे और जमीनी हालात के बीच की दूरी यहां साफ दिखाई देती है। गुस्से में भले लोग हों, पर उन्होंने विरोध का अहिंसक रास्ता ही चुना है।


