राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : तीन में से दो माह तो बीत चुके!
27-Oct-2025 7:47 PM
राजपथ-जनपथ : तीन में से दो माह तो बीत चुके!

तीन में से दो माह तो बीत चुके!

छत्तीसगढ़ के 1,378 व्याख्याताओं को लंबे समय से अपने प्रमोशन की प्रतीक्षा है। उनकी याचिका छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में लंबित है, जिस पर जल्दी फैसला आ जाएगा। यह खबर छत्तीसगढ़ में इस उम्मीद के साथ चल रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट्स को निर्देश दिया है कि कोई भी फैसला सुरक्षित रखने के बाद तीन महीने के भीतर सुनाया जाना अनिवार्य है।

 मगर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से संबंधित समाचार 26 अगस्त 2025 को एक न्यूज एजेंसी चला चुकी है। इस तरह से आदेश को दो महीने से अधिक बीत चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश अधिकतम तीन माह के लिए है। इस स्थिति में इस पर फैसला 26 नवंबर 2025 तक आ जाना चाहिए। इस आदेश के बाद शिक्षा विभाग में रुकी हुई प्रमोशन प्रक्रिया जल्द पूरी की जा सकेगी।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आपराधिक मामले को सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय कौल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने बेहद चौंकाने वाला बताया। इस मामले में दिसंबर 2021 में सुनवाई पूरी हो गई लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया गया और सालों तक निर्णय नहीं सुनाया गया। कोर्ट ने माना कि ऐसी देरी से लोगों का न्यायिक प्रक्रिया में भरोसा कम होता है।

छत्तीसगढ़ के व्याख्याताओं के मामले में जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस ए के प्रसाद ने जून माह में इस मामले की लगातार 5 दिनों तक सुनवाई की थी। सुनवाई पूरी होने के बाद से फैसला सुरक्षित है।

सुप्रीम कोर्ट निर्देश दिए हैं कि अगर तीन महीने में फैसला नहीं सुनाया जाता, तो हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को मामले को चीफ जस्टिस के सामने रखना होगा। चीफ जस्टिस संबंधित बेंच को दो सप्ताह में फैसला सुनाने का आदेश देंगे। अगर फैसला सुनाया गया, लेकिन लिखित आदेश अपलोड नहीं हुआ, तो उसे पांच दिनों के भीतर वेबसाइट पर डालना होगा। इसके अलावा, 31 जनवरी 2025 तक सुरक्षित सभी लंबित मामलों की विस्तृत रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट ने मांगी है। यदि हाईकोर्ट्स को यह निर्देश भी दिया जाता कि वेबसाइट पर वह सूची भी डाली जाए, जिनमें सुनवाई पूरी हो चुकी है लेकिन ऑर्डर रिजर्व करके रखे गए हैं तो यह पता चल सकता है कि छत्तीसगढ़ में व्याख्याताओं की याचिका के अलावा और कितने मामले हैं, जिन पर फैसले का इंतजार है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश को न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास बढ़ाने वाला माना जा सकता है।

बूढ़े बांध और 8 माह का समय

हालिया मानसून में देश भर में बांध और उसकी नहरों के टूटने की घटनाओं को लेकर राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एनडीएसए) ने गंभीरता से लेकर राज्यों को अलर्ट जारी कर सुधार का अल्टीमेटम दिया था। इस बीच प्राधिकरण ने बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021 के अनुपालन की सुस्त गति पर चिंता जताई है, क्योंकि दिसंबर 2026 की महत्वपूर्ण समय-सीमा में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है।  इस साल का मानसून विदा हो गया है। अगले मानसून से पहले बांध मजबूत न किए गए तो कमजोर बांध संकट ला सकता है। हाल में दिल्ली में केंद्रीय जल आयोग ने एक बैठक में राज्यों को ताकीद किया था।

भारत भर में 6,500 से ज़्यादा निर्दिष्ट बांधों को अनिवार्य सुरक्षा प्रोटोकॉल पूरे करने होंगे, और यह धीमी प्रगति जन सुरक्षा और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे, दोनों को खतरे में डाल रही है। इनमें छत्तीसगढ़ के भी 11 बांध शामिल हैं। राज्य के सिंचाई विभाग में इसे लेकर अब तक कोई अहम कदम नहीं उठाया गया है। छत्तीसगढ़ में 28 बांधों की उम्र 50 वर्ष से अधिक हैं, जबकि 7 बांध 100 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। इनमें भी  11 बड़े बांध खतरनाक स्थिति में हैं,इनमें मिनीमाता बांगो बांध, रविशंकर सागर,(गंगरेल), पेंडरावन, आमाबेड़ा केदारनाला, सिकासार, अमाहगांव, बृजेश्वर साह (कोईनारी) कुर्रीडी, फरसपाल और गौरी बांध शामिल हैं।

बांध सुरक्षा अधिनियम के अनुसार, प्रत्येक बांध  के तीन प्रमुख सुरक्षा गतिविधियाँ पूरी करनी होंगी: एक विस्तृत जोखिम मूल्यांकन अध्ययन, एक आपातकालीन कार्य योजना  की तैयारी, और एक व्यापक बांध सुरक्षा मूल्यांकन। एनडीएसए, जिसके पास कानूनी अधिकार है।

स्पष्ट कानूनी अनिवार्यता के बावजूद, बांध मालिक जमीनी स्तर पर महत्वपूर्ण बाधाओं का हवाला देते हैं। चिन्हित की गई मुख्य बाधाएं अधिनियम द्वारा अनिवार्य बड़े पैमाने पर, विशिष्ट अध्ययनों को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता और वित्तीय संसाधनों का भारी अभाव हैं। कथित तौर पर, एनडीएसए इस उदासीन रवैये और संसाधनों की कमी को बांध सुरक्षा प्रोटोकॉल के आधुनिकीकरण के राष्ट्रीय प्रयास के लिए एक गंभीर खतरा मानता है। प्राधिकरण इस बात पर जोर देता है कि नौकरशाही की देरी सार्वजनिक सुरक्षा की सर्वोपरि अनिवार्यता और डीएसए की स्पष्ट कानूनी जरूरतों का अतिक्रमण नहीं कर सकती।

एक दिन के आईजी

अगले महीने के आखिरी में डीजीपी कॉन्फ्रेंस के बाद आईपीएस अफसरों के प्रमोशन होंगे। आईपीएस के वर्ष-2008 बैच के आधा दर्जन अफसर आईजी के पद पर पदोन्नत होंगे। इसके लिए प्रमोशन के प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं। 

वर्ष-2008 बैच के जो आईपीएस अफसर आईजी के पद पर प्रमोट होंगे, उनमें पारूल माथुर, प्रशांत कुमार अग्रवाल, सुश्री नीथू कमल, डी श्रवण, मिलना कुर्रे, कमलोचन कश्यप हैं। इनमें से नीथू कमल, और डी श्रवण केन्द्रीय एजेंसियों में प्रतिनियुक्ति पर हैं। कमलोचन कश्यप आईजी के पद पर प्रमोट होते ही रिटायर हो जाएंगे।

कुछ साल पहले 87 बैच के आईपीएस अफसर राजीव श्रीवास्तव डीजी के पद पर प्रमोट होते ही रिटायर हो गए थे। वो पहले स्टेट सर्विस के अफसर थे, जो आईपीएस होकर डीजी के पद तक पहुंचे थे। कुछ इसी तरह कमलोचन कश्यप 31 दिसंबर को रिटायर हो रहे हैं। अंदाजा लगाया जा रहा है कि एक दिन पहले उन्हें पदोन्नति मिल सकती है। यानी एक दिन के आईजी बन सकते हैं। देखना है क्या होता है।


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