राजनांदगांव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 15 जनवरी। जैन मुनि सम्यक रतन सागर जी ने कहा कि उत्तम से उत्तम मानव जीवन को प्राप्त करने के बाद भी अंत में कुछ हाथ नहीं आता। छल प्रपंच कर यदि कोई सत्ता प्राप्त कर भी ले तो अंत में उसके पास कुछ नहीं बचता। जीवन का अंत आने के बाद एक ही जवाब बचता है और वह है राख। भारतीय संस्कृति के हिसाब से अंत में सभी को श्मशान घाट जाना पड़ता है। यह नाम भी सोच समझ कर दिया गया है इसके पीछे में लॉजिक यह है कि जहां जाकर सबकी शान समान हो जाए वह है शमशान। उन्होंने कहा कि जब तक शरीर है तब तक आत्मा को उन्नत मार्ग पर ले जाएं।
मुनि श्री ने कहा कि सुख का अभाव मनुष्य तो क्या पशुओं को भी डिस्टर्ब करता है। मनुष्य को तो गुणों का अभाव खटकना चाहिए। मनुष्य के जीवन में प्रभाव पैसों का नहीं बल्कि परमात्मा का होना चाहिए। लाचारी, लोभ और लालच यह तीनों पाप के मार्ग हैं। इनमें सबसे भयंकर कोई है तो वह है लोभ। लोभ का पाप कभी खत्म नहीं होता, बल्कि वह बढ़ता ही जाता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति की लाचारी चली जाती है तो उसका पाप भी बंद हो जाता है। इसी तरह लालच खत्म होने पर पाप भी खत्म हो जाता है किंतु लोभ का पाप कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। उन्होंने कहा जैसे जैसे लाभ बढ़ता जाता है वैसे वैसे उसका लोभ भी बढ़ता जाता है।
मुनि श्री ने कहा कि पैसा यदि आपके जीवन में ज्यादा समय दे रहा है तो समझ लीजिए कि आपका पुण्य कमजोर है। संसार में जो भी सफलता मिलती है, वह पुण्य के बल पर ही मिलती है। उन्होंने कहा कि जिस पुरुषार्थ के पीछे पुण्य का बल है, उसमें तेजी आती है और जिसके पीछे पुण्य बल नहीं है उसमें मंदी आती है।