रायपुर

जल प्रदूषण से निपटने के लिए नया मटेरियल तैयार
20-Jun-2025 5:19 PM
 जल प्रदूषण से निपटने के लिए नया मटेरियल तैयार

रविवि शोधार्थी की खोज 

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 20 जून।
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के रसायन विभाग की शोधार्थी शुभ्रा सिन्हा ने जल प्रदूषण को दूर करने के लिए एक ऐसा मटेरियल तैयार किया है, जिससे प्रदूषित तत्व 15 मिनट के भीतर अलग हो जाते हैं। सुश्री शुभ्रा सिन्हा ने अपने शोध सुपरवाइजर प्रो. मानस कान्ति देब, और डॉ. इंद्रपाल करभाल के निर्देशन में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। 
‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में सुश्री सिन्हा ने बताया कि प्रदूषित पानी में मटेरियल डाले जाने पर प्रदूषित तत्व मटेरियल के साथ चिपककर अलग हो जाते हैं। अभी लैब में इसका परीक्षण किया गया है, और बड़े पैमाने पर तालाब जैसे जल प्रदूषित जगहों पर उतना ही प्रभावी होगा। 

उन्होंने नाइट्रोजन एवं सल्फर डोप्ड ग्राफीन का उपयोग करते हुए ऐसे बहुकार्यात्मक कंपोजिट तैयार किए हैं, जो मैथलीन ब्लू जैसे प्रदूषक डाई को मात्र 15 मिनट के अंतराल में 93 प्रतिशत की क्षमता से पानी में से निकाल कर जल प्रदूषण की समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है। साथ ही यह मटेरियल डिसॉप्र्शन प्रापर्टी (विशोषण)प्रदर्शित करता है, जो इसे रियुसेबल (दोबारा उपयोग के लायक) बनाती है। यह प्रक्रिया न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि कम लागत पर अधिक प्रभावी समाधान प्रदान करती है। 

यही नहीं, ये कंपोजिट हानिकारक पैरासाइटिक बैक्टेरियाके विरुद्ध एंटीबायोटिक गुण प्रदर्शित करता है, जिसकी वजह से इसे निकट भविष्य में नए युग के एंटीबायोटिक के रूप में नियोजित किया जा सकता है। इसी कंपोजिट का प्रयोग करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों के चने के सैंपल्स में एल-सिस्टीन नामक अमीनो एसिड की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए तकनीक विकसित की है। एल-सिस्टीन  मानव शरीर का एक सेमी-एसेस्नल अमीनो एसिड होता है, जिसके असमान स्तर किडनी, हृदय एवं अन्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं। अत: इस शोध के द्वारा यूवी- विसिबल इस्पेक्ट्रोकॉपी का प्रयोग करते हुए एल-सिस्टीन के डिटेक्शन के लिए एक लागत प्रभावी तकनीक विकसित की गई है।

साथ ही उन्होंने ग्राफीन एवं पॉलीएनिलिन के कंपोजिट से एक ऐसा सुपरकैपेसिटर मटेरियल विकसित किया है, जिसकी क्षमता 408 एफ/जी (फैराड प्रति ग्राम) है। यदि इसकी बैटरी उपयोग करते है, तो 1000 साइकल तक इसकी स्टेबिलिटी 90 प्रतिशत रहती है। यह पर्यावरण के लिए भी हानिकारक नहीं है। यह शोध ऊर्जा भंडारण के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है।

यह सुपरकैपेसिटर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, इलेक्ट्रिक वाहनों और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इस शोध का उद्देश्य भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को सुलभ और स्थायी रूप से पूरा करना है। शुभ्रा इस पर 2019 से रिसर्च कर रही हैं। इस शोध में पर्यावरण-अनुकूल और किफायती तकनीकों का विकास किया गया है।


अन्य पोस्ट