रायपुर

नक्सल खात्मे के बाद अगले 25 वर्ष के बस्तर की योजना है बोधघाट
07-Jun-2025 7:07 PM
नक्सल खात्मे के बाद अगले 25 वर्ष के बस्तर की योजना है बोधघाट

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 7 जून। बस्तर की बोधघाट परियोजना एक बहुउद्देशीय जलविद्युत परियोजना है जो पिछले 40 वर्षों से पाइपलाइन में थी। छत्तीसगढ़ सरकार ने एक बार फिर इस परियोजना की  शुरू करने की  तैयारी  में है। अब तक यह इलाका नक्सलियो के प्रभाव में होने से परियोजना का काम आगे नहीं बढ़ पा रहा था। अब चूंकि माओवादी आंदोलन अंतिम कगार पर है तो राज्य की भाजपा सरकार ने बोधघाट परियोजना को बस्तर के लिए अपनी प्राथमिकता वाली सूची में रखा है। इस सिलसिले में सीएम विष्णु देव साय ने कल पीएम नरेंद्र मोदी को अगले 25 वर्ष के लिए छत्तीसगढ़ की विकास योजनाओं पर एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट दी है। इसमें में बोधघाट और रिवर लिंकिंग भी शामिल है।

बोधघाट परियोजना के बारे में बताया गया कि छत्तीसगढ़ में एक बहुउद्देशीय जलविद्युत परियोजना है। पांच वर्ष पूर्व  मई 2020 में, केंद्र सरकार ने इस परियोजना के पहले चरण यानी सर्वेक्षण को शुरू करने के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी थी। उस वक्त इस परियोजना की अनुमानित लागत 29,000 करोड़ रुपये है। इससे 125 मेगावाट  जल विद्युत उत्पादन होने की संभावना है। सीएम साय के नए प्रस्ताव के अनुसार 125 मेगावाट होगा। इस परियोजना के लिए दंतेवाड़ा के बारसूर गांव के पास एक बांध का निर्माण किया जाना है, जिससे 378475 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई में मदद मिलेगी। नए प्रस्ताव में 4 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य है। दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिले के 269 गांव को फायदा मिलेगा।

पिछली सरकारों के समय वाप्कोस लिमिटेड को सर्वेक्षण, अनुसंधान और परियोजना से संबंधित मंत्रालयों से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। परियोजना के विरुद्ध आपत्तियाँ: पर्यावरण संबंधी चिंताएँ

पिछली कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में पर्यावरणविदों ने छत्तीसगढ़ सरकार के सर्वेक्षण और इंद्रावती नदी पर बहुउद्देशीय बोधघाट परियोजना के निर्माण पर आपत्ति जताई है।  यह बांध दंतेवाड़ा जिले के गीदम विकासखंड के बारसूर गांव के पास इंद्रावती नदी पर बनाया जाना है, जो जगदलपुर जिला मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर है।  कार्यकर्ता आदिवासी समुदायों के विस्थापन के मुद्दे उठाते रहे हैं। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन जैसी कई गतिविधियों ने परियोजना की व्यवहार्यता पर सवाल उठाए हैं।

बस्तर भी पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध है और संविधान के तहत विशेष संरक्षण में है। विचार यह है कि आदिवासी लोगों को अपनी जमीन न खोनी पड़े और विस्थापन की स्थिति में उन्हें पुनर्वास भूमि भी मिलनी चाहिए। परियोजना के क्रियान्वयन से 43 गांव और 5704 हेक्टेयर वन क्षेत्र जलमग्न हो जाएंगे इसके अलावा 5010 हेक्टेयर निजी भूमि और 3068 हेक्टेयर सरकारी भूमि भी जलमग्न हो जाएगी। वनों को अर्थव्यवस्था का नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि कृषि, मछली पालन और पशुपालन नष्ट हो जाएंगे।


अन्य पोस्ट