रायपुर

प्रथम मिशनरी पादरी लोर की स्मृति में प्रभात रैली
30-May-2025 9:46 PM
प्रथम मिशनरी पादरी लोर की स्मृति में प्रभात रैली

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 30 मई। छत्तीसगढ़ की सबसे पुरानी कलीसिया इम्मानुएल चर्च विश्रामपुर की स्थापना करने वाले प्रथम मिशनरी पादरी ऑस्कर टी. लोर  की स्मृति में 31 मई को  सुबह 4.40 बजे प्रभात रैली निकाली जाएगी। इसमें विश्रामपुर, गनेशपुर और झनकपुर के ग्रामवासी शामिल होंगे। पादरी लोर 31 मई 1868 को नागपुर से बैलगाड़ी पर महीनेभर का सफर कर पहले दरचुरा फिर विश्रामपुर पहुंचे थे। 

 जनजागरण प्रभात रैली के बाद सुबह 11 बजे इम्मानुएल चर्च में विशेष स्मरण आराधना होगी।

प्रभात रैली बस स्टैंड से प्रार्थना के साथ प्रारंभ होगी। गणेशपुर चर्च के प्रांगण में पादरी लोर के जीवन वृतांत का पठन किया जाएगा। इस रैली में छत्तीसगढ़ डायसिस के पदाधिकारी, पादरीगण और चर्चों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।

पादरी शमशेर शामुएल ने बताया कि प्रथम मिशनरी लोर साहब का जन्म लोहान साईलीसिया जर्मनी में एक मसीही परिवार में 28 मार्च 1824 में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर थे। अपने  बेटे को भी डॉक्टर बनाने रूस में शिक्षा हेतु भेजा था। वे रूस से डॉक्टर उपाधि प्राप्त कर घर लौटे। तब बेजल मिशनरी सोसाइटी के सम्पर्क में आए। उन्होंने मिशनरी बनने के दर्शन को आत्मसात कर भारत जाने का फैसला लिया। पहले उन्होंने गोसनर इवेंजलिकल मिशनरी के रूप में छोटा नागपुर के रांची में कार्य किया। वहां सन 1844 में कार्य प्रारंभ किया।

 एक एतिहासिक मोड़: भारत के इतिहास में 1857 में स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम चिंगारी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उठी थी।

इस विद्रोह की आग की चिनगारी का असर मिशन पर भी हुआ। परिणाम स्वरूप पादरी लोर को अमेरिका जाना पड़ा। मिशन की सम्पत्ति नष्ट कर दी गई, किन्तु विश्वास जीवित रहा। सन 1858 में वे बोस्टन पहुचें। वहां वे जर्मन भाषा के चर्च में सेवा देने लगे। भारत जाने की अपनी इच्छा की चर्चा करते रहते थे। तब अमेरिकन इवेंजलिकल मिशनरी सोसाइटी ने उन्हें भारत के लिए अपना मिशनरी नियुक्त कराना चाहा।

1 अक्टूबर 1867 को लोर को भारत के लिए कमिशन किया, किंतु जगह और स्थान का चुनाव  लोर पर छोड़ दिया था। 24 अक्टूबर को च्च्सागामोरज्ज् नामक मालवाहक जहाज मे यह छोटा कारवां निकल पड़ा। इस यात्रा के विषय शिक्षाविद पादरी टीसी सायबोल्ड अपनी पुस्तक में कहा है कि च्च्वह न जानता था कि किधर जा रहा हूं तो भी निकल पड़ा। (इब्रानियों 11:08)। इस कठिन लंबी यात्रा को लोर साहब ने कहा च्च्हमने पाच महीने की कैद काटी। पहली मई 1868 को लोर परिवार सहित मुंबई पहुंचे। लोर छोटा नागपुर जाना चाहते थे, किन्तु विधाता को कुछ और ही मंजूर था। मुंबई में एक मिशनरी सभा हो रही थी। लोर वहां पहुंचे। वहां एक मिशनरी कूपर साहब का पत्र पढ़ा जा रहा था, जो चर्च ऑफ स्कॉटलैंड के मिशनरी थे। उन्होंने अपील की कि छत्तीसगढ़ मे मिशनरी कार्य की बड़ी आवश्यकता है, किंतु अब तक वहां कोई जाने वाला नहीं है। लोर ने इस अपील के उत्तर में अपने को प्रस्तुत किया। सभी ने खुशी जाहिर की। लोर को नागपुर के मिशनरी कूपर से मिलने नागपुर भेज दिया गया। नागपुर में लोर परिवार सहित कुछ दिनों के बाद सारी तैयारियां के साथ बैलगाडिय़ों में रायपुर के लिए रवाना हुए। इस तरह लोर परिवार तपती धूप में 31 मई आज ही के दिन रायपुर में पदार्पण किए।

 रायपुर से विश्रामपुर :

लोर रायपुर में रहकर एक अंग्रेज जिलाधीश (डिप्टी कमिश्नर) कर्नल बालमेन से मिले। वे ब्रिटिश शासन के कर्मचारी थे। उन्होंने ने सलाह दी रायपुर से 65 किलोमीटर बिलासपुर की तरफ दरचुरा ग्राम के पास अपना कार्य प्रारम्भ करें। बालमेन ने उन्हें 358 एकड़ जमीन नीलामी में के द्वारा दी। वे पहले मिशनरी मालिक बन गए। लोर परिश्रमी और आशावादी थे। उन्होंने आरंग, धमतरी, राजिम, गिरोदपूरी का दौरा किया। लोग मसीही धर्म में आस्था रखकर शामिल होते गए। विश्रामपुर एक आदर्श गांव बन गया। इसके बाद रायपुर, महासमुंद, भाटापारा, परसाभदेर, तिल्दा और ओडिशा में कलीसियाएं स्थापित की गईं।


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