रायपुर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 1 नवम्बर। सन्मति नगर फाफाडीह में 4 नवंबर तक पंचकल्याणक महामहोत्सव शुरू हो गया। सुबह भगवान से आज्ञा लेकर आचार्य से पंचकल्याणक प्रारंभ करने की अनुमति प्राप्त की गई। इसके बाद 81 कलशों में जल भरकर घटयात्रा निकाली गई। जो परिभ्रमण करते हुए कार्यक्रम स्थल तक पहुंची। यहां भगवान का अभिषेक, ध्वजारोहण, मंडप शुद्धि, इंद्रो की प्रतिष्ठा संपन्न हुई। पंचकल्याणक महोत्सव के ध्वजारोहण का सौभाग्य विनोद कुमार, संजना जैन बडज़ात्या परिवार को प्राप्त हुआ। इसके बाद मंडल की शुद्धि पूर्वक कलश आदि की स्थापना की गई।
आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने अपने प्रवचन के कहा कि ज्ञानियों को जीवन में मुस्कुराते रहना चाहिए, क्योंकि होता वही है जो होता है,जीव व्यर्थ में रोता है। यह सूत्र अपने-अपने घर में टांग लेना चाहिए। दुख कहीं नहीं हैं और सुख की सोच नहीं है,यदि सुख की सोच बन जाए तो दुख कहीं नहीं है और सोच को भी तोडऩा चाहिए दुख कहीं भी नहीं है। संयोग भी सत्य है और वियोग भी सत्य है, अब दुख किस बात का है ? सोच समझ में आना चाहिए,व्यवस्थित विचार आना चाहिए,विचार पवित्र है तो ज्ञानी संपूर्ण दुख का समापन है। कुछ समय आंख बंद करके भी सत्य को जानने के लिए देना चाहिए और कुछ समय आंख खोलकर सत्य को जानना चाहिए। जगत में कितने जीव अच्छे लोगों का चेहरा ही देख कर खुश होते हैं, कुछ वे लोग होते हैं जो बन कर आते हैं तब भी लोग देखने नहीं आते, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बन कर नहीं आते हैं दुनिया देखने जाती है। जो नाटक का पात्र है वह बनके आता है लेकिन तीर्थंकर प्रभु बनकर आते हैं तो सौधर्म इंद्र हजार नेत्रों से देखने आता है।
आचार्यश्री ने कहा कि आप उत्पत्ति को मानते हो या विनाश को ? आप कहेंगे उत्पत्ति ही श्रेष्ठ है,राग से,स्नेह से ,प्रेम से, वात्सल्य से, तीव्र श्रद्धा से सत्य को नहीं जाना जा सकता है। आप उत्पत्ति श्रेष्ठ मनोगे, विनाश को नहीं मानते हो, क्योंकि विनाश आपको अशुभ लगता है। सत्य कहने वाला स्नेह रखता है, राग रखता है,वात्सल्य रखता है लेकिन विवेक को लेकर चलता है। यदि विनाश नहीं होगा तो उत्पत्ति कैसे होगी। अरे विनाश को अशुभ मत मानिए, यदि यह नियम सृष्टि में लागू हो जाए कि अब किसी की मृत्यु नहीं होगी तो जिनकी नई-नई शादियां हुई हैं, वे कभी बच्चे नहीं देख पाएंगे।