रायपुर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 30 अक्टूबर। आचार्य भगवन विशुद्ध सागर महाराज ससंघ विशाल संघ (22 साधुओं) का राजधानी में पहली बार ऐतिहासिक चातुर्मास सानंद संपन्न हुवा । ससंघ ने नगर के सभी जिन मंदिरों का भ्रमण किया। सभी धर्मात्माओं को गुरुओं की अमृतमयी वाणी (प्रवचन), आहार चर्या, वैयावृत्ती, नवदा भक्ती आदि के माध्यम से पुण्यार्जन करने का अनूठा अवसर प्राप्त हुआ। रायपुर के इतिहास में प्रथम बार 22 साधुओं के मध्य 3 बाल बह्मचारी भैया जियो की दिगंबर दीक्षा होने जा रही है, जिनके दीक्षा प्रदाता आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज स्वयं अपने करकमलों से ब्रम्हाचारी सौरभ भैया( परतबाड़ा) ब्रम्हाचारी निखिल भैंया (छतरपुर) ब्रम्हाचारी विशाल भैंया (भिण्ड) को जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान करेंगे।
इस अवसर पर पत्रकारों से चर्चा में आचार्य श्रीविशुद्ध सागर महाराज ने कहा की मानव जीवन बड़ी कठिनाई से मिलता है। जीवन को सरल बनाने के लिए अध्यात्म ही सही मार्ग है। जीवन में धर्म का बड़ा महत्व है। धर्म वास्तव में बहुत बड़ा विज्ञान है दुनिया में जो भी विधाएं हैं उसे धर्म लेकर आया है। क्योंकि दुनिया में सब कुछ पहले से ही मौजूद है। जिसे हम ज्ञान के आभाव अविष्कार का नाम दे देते हैं। आचार्यश्री ने कहा कि भारत धर्म प्रधान देश है। विश्व में बुद्धि का विकास नहीं हो पाया है, इसलिए लोग हिंसा का मार्ग चुनते है। जहां ज्ञान और धर्म नहीं वहां विनाश होता है। मनुष्य में बुद्धि व पुण्य का विकास हो जाये तो ये सब नहीं हो पाएगा आचार्य श्री ने कहा कि साधु बनने के लिए व्यक्ति का विकास होना जरुरी है। सुनने की क्षमता होना चाहिए।
भारत एकमात्र देश है तीनों मौसम होता है। हमे बताया जाता है की भारत की खोज वास्कोडिगामा ने किया है।
तो क्या उसके पहले भारत नहीं था? आचार्य श्री ने कहा भारत की सारी विद्याएं दुनिया में फैली है। भारत शस्त्र नहीं शास्त्र की बात करता है ।
उन्होंने कहा कि दुनिया में हम जो भी वैज्ञानिक सिद्धांत विधाएं देखते हैं, वह सब भारत से हो फैली है। भारत में राम राम कृष्ण का जन्म हुवा वेद पुराण उपनिषद हुवे जिन्होंने हमे धर्म के मार्ग में चलना सिखाया।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव 31 से 4 तक
इसी क्रम में जैन समाज के परम सौभाग्य से आगामी विभिन्न आयोजन संपन्न किए जायेंगे। दिगम्बर जैन समुदाय में तीर्थंकर भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है, भगवान तो सिद्धत्व को प्राप्त कर चुके हैं, परन्तु उनके साक्षात प्रतिबिंब भगवान की प्रतिमा पूज्नीय है, इसलिये विभिन्न जिनालयों में तीर्थंकर जिनदेव की प्रतिमा स्थापित की जाती है, रायपुर गोल बाजार,स्थित चूड़ीलाईन में 110 वर्ष प्राचीन जिनालय को नवीन रुप दिया जा रहा है, जो कि अब श्री 1008 चन्द्रप्रभ् सदोदय तीर्थ दिगंबर जैन मंदिर के नाम से जाना जाएगा । जिसमें नवीन जिनबिंब की स्थापना की जाएगी। जिसक पंचकल्याणक महोत्सव दिनांक 31 अक्टूबर से 4 नवम्बर तक फाफाडीह स्थित श्री सन्मति नगर दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में होना सुनिश्चित हुआ है। दिगंबर मुनिजीवों के रक्षा के लिए संयम का उपकरण मयूर पिच्छी अपने साथ में रखते हैं, शास्त्रों में वर्णन है कि मोर का पंख इतना कोमल होता है कि इससेें किसी जीवका घात नहीं होता इसलिए जीवों की रक्षा एवं मार्जन के लिए दिगंबर मुनि पिच्छी का प्रयोग करते है, एक बार अपनी पिच्छी परिवर्तित कर नवीन मयूर पिच्छी ग्रहण करते हैं।