रायपुर

तस्वीर/‘छत्तीसगढ़’
डब्ल्यूआरएस कॉलोनी स्थित श्री सोलापुरी माता मंदिर परिसर में भव्य तैयारियां की जा रही है। कल शनिवार यानी दीवाली के बाद चतुर्थी को आंध्र मूल के लोग चतुर्थी मनाते हैं। इसका छत्तीसगढ़ शेष भारत में मनाया जाने वाला नाग पंचमी जैसा महत्व है। इस दिन भिंभौरी (बांबी) को आकर्षक तरीके से सजाया जाता है। फिर परिवार के सभी सदस्य बिलों में गाय का दूध, मक्खन, फल-फूल का चढ़ावा करते हैं। जिन सदस्यों के कान में दर्द होता है या हुआ रहता है वे मानता के स्वरूप बिल पर अंडा भी चढ़ाते हैं। साथ ही इसके लिए बिल की मिट्टी को कानों में लगाने की भी परम्परा है। इस पूजा विधान पर छोटी दीवाली की तरह आतिशबाजी भी होती है। पूजा के दौरान लोग यह प्रार्थना भी करते हैं कि आने वाले वर्षभर नाग देवता, हमारे आड़े न आए और हमसे कोई अनहोनी न हो। इस दिन घरों में हसिया, चाकू का इस्तेमाल नहीं किया जाता, और किसी भी तरह की सब्जी को काटा नहीं जाता। खासकर तरोई वर्ग की सब्जियां। इस वजह से माता-बहनें एक दिन पहले ही सब्जी काटकर रख लेती हैं।