रायपुर

रायपुर, 13 सितंबर। प्रदेश भाजपा प्रवक्ता कृष्णमूर्ति बांधी ने आबकारी मंत्री कवासी लखमा द्वारा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भगवान बताये जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि बघेल के पिता नंदकुमार बघेल अब तक भगवान राम के लिए अपशब्द कहकर भारतीय सनातन संस्कृति का घोर अपमान कर जनमानस को मर्माहत कर रहे थे और अब मंत्री ने भूपेश को भगवान बताकर आदिवासी संस्कृति, देवी देवताओं का अपमान कर दिया। मंत्री लखमा दावा कर रहे हैं कि भूपेश बघेल के कोई पूर्वज आदिवासी रहे होंगे तो इस दावे पर भाजपा का कोई सरोकार नहीं है। यह भूपेश बघेल और उनकी वंशावली का नितांत निजी मसला है और भाजपा इस पर कुछ नहीं कह रही। वैसे भी कांग्रेस में नकली आदिवासी का मुद्दा कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जिसे आदिवासी मानकर छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाया था, उसे भूपेश बघेल आदिवासी नहीं मानते। अब भूपेश बघेल के भक्त मंत्री कवासी लखमा उन्हें भगवान और आदिवासी बता रहे हैं तो भूपेश बघेल स्पष्ट करें कि वे कौन से भगवान हैं। वे यह भी बतायें कि उनके पूर्वज आदिवासी समाज को क्यों छोड़ गए? भूपेश बघेल ने अवश्य आदिवासी समाज को अपने हाल पर छोड़ दिया है। धर्मांतरण का विरोध करने वाले आदिवासियों का दमन हो रहा है। बघेल भगवान नहीं, उनका शोषण करने वाले मुख्यमंत्री है । उन्होंने छत्तीसगढ़ की जनता से वादाखिलाफी का गुनाह किया है। आदिवासियों के दमन का गुनाह किया है। युवा पीढ़ी के साथ धोखेबाजी का गुनाह किया है। छत्तीसगढ़ को लूट लूटकर कांग्रेस का घर भरने का गुनाह किया है। किसानों के साथ छल कपट करने का गुनाह किया है। कर्मचारियों से प्रति गुनाह किया है। लाखों बेघर गरीबों के प्रति गुनाह किया है। छत्तीसगढ़ की बेटियों, बहनों, माताओं के विरुद्ध गुनाह किया है इसीलिए वह भगवान नही बल्कि गुनहगार है।
प्रदेश भाजपा प्रवक्ता कृष्णमूर्ति बांधी ने कहा कि मंत्री कवासी लखमा के भगवान भूपेश ने जो गुनाह किये हैं उन्हें जनता रूपी लोकतांत्रिक देवता कभी क्षमा नहीं कर सकता। कांग्रेस में व्यक्तित्व वाद की जगह व्यक्तिवाद की संस्कृति है और कवासी कांग्रेस की इसी संस्कृति के अनुरूप चाटुकारिता की हद पार कर भूपेश बघेल की चरणवंदना कर रहे हैं। कांग्रेस इस संस्कृति के तहत किसी भी हद तक जा सकती है। कवासी चाहें तो गुनाहों के देवता का मंदिर बनवा लें और चौबीसों घंटे भूपेश भूपेश का जाप करें लेकिन उन्हें देवी देवताओं और आदिवासी संस्कृति व आस्था का अनादर करने का कोई अधिकार नहीं है। उनके अपने इलाके के आदिवासी अज्ञात बीमारी से दम तोड़ रहे हैं और निष्ठुर कवासी भूपेश धुन गा रहे हैं, यह बेहद निर्लज्ज परिदृश्य है। ऐसी सरकार से जनता को बचना ही होगा।