रायपुर

क्षमा मांगने से जीवन धन्य हो जाता है-राष्ट्र संत ललित प्रभजी
05-Sep-2022 3:32 PM
क्षमा मांगने से जीवन धन्य हो जाता है-राष्ट्र संत ललित प्रभजी

रायपुर, 5  सितम्बर।  आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में रविवार प्रात: आयोजित सामूहिक क्षमापना समारोह एवं 55 दिवसीय दिव्य सत्संग महाकुंभ के समापन अवसर पर संबोधित करते हुए  राष्ट्रसंत   महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज  ने कहा कि क्षमा मांगने से जीव धन्य हो जाता है।

‘माफ कर देना रात को सोने से पहले। जरा सा मुस्कुरा देना सोने से पहले, हर गÞम को भुला देना सोने से पहले, जिसने भी दिन में दिल दुखाया है आपका, माफ कर देना रात को सोने से पहले। ’ हम अपने मनोमालिन्य को साफ करें। अगर आपने तीन को माफ कर दिया तो आपको तेले के तप का पुण्य मिल जाएगा और अगर आपने 8 को माफ कर दिया तो आपको अ_ाई तप का सौभाग्य मिल जाएगा।

जिंदगी बड़ी गज़ब की है, जब हम पैदा होते हैं तब हमारी सांस होती है पर तब हमारा नाम नहीं होता, जब हम मरते हैं तब नाम होता है पर सांस नहीं होती। ये जिंदगी नाम और सांस के बीच की जिंदगी है। जो जिंदगी को बेफिक्री से जी लेता है वह जिंदगी की बाजी जीत जाता है। तस्वीर में तो हर कोई मुस्कुराता है पर जो व्यक्ति तकलीफ में भी मुस्कुराना सीख जाए, मानलो वह जीवन की बाजी जीत गया। अपने वे नहीं होते जो तस्वीर में हमारे साथ होते हैं, असली अपने वे होते हैं जो तकलीफ में भी हमारे साथ होते हैं।
‘प्रेम हमारी साधना है, प्रेम हमारा मंत्र है, जो भी भरा है प्रेम से वो ही हमारा संत है’... इस प्रेरक भावगीत से सत्संग का शुभारंभ करते हुए संतप्रवर ने कहा कि पर्यूषण पर्व के इन पावन दिनों में पहला संकल्प हम यह करें कि मैं अपनी जिंदगी में कभी किसी से ऐसे शब्द या भाषा का उपयोग नहीं करुंगा, जिससे आपस में मनोमालिन्य हो।

उन्होंने आगे कहा- मंदिर इसके लिए नहीं बनते कि दुनिया में पाप करके मंदिर में आकर धोते रहो, मंदिर इसलिए बनते हैं कि मंदिर में जाकर संकल्प करो कि मैं बाहर जाकर पाप नहीं करुंगा।
इसीलिए तो मंदिर में जाकर माथे पर चंदन की टीकी लगाते हैं और संकल्प करते हैं कि हे भगवान मैंने आपके चंदन की टीकी ही नहीं लगाई, मैंने आपके संदेशों को सिर पर धारण किया है, मैं बाहर जाकर भी नैतिक और पवित्र जीवन जीने की कोशिश करुंगा। मंदिर में ही मंदिर को मानना बड़ी बात नहीं है लेकिन जो व्यक्ति बाजार को भी मंदिर मानकर सद्व्यवहार करता है, वही व्यक्ति जीवन की बाजी जीतता है।

यह संकल्प कर लो कि मैं कभी किसी के साथ लेशमात्र भी बैर-विरोध की गांठ नहीं बाधुंगा।
मैं ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करुंगा जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे। शब्दों में बड़ी जान होती है, इनसे आरती-अरदास और अजान होती है, ये समंदर के वे मोती हैं जिनसे एक अच्छे आदमी की पहचान होती है।
संतश्री ने कहा कि प्लीज, थैंक्यू और सॉरी ये तीन शब्द आपकी जिंदगी को हमेशा मीठा रखेंगे। जब भी किसी से काम कराना हो, आदेश की भाषा मत बोलो हमेशा सम्मान की भाषा बोलो। जब भी सामने वाले ने आपका काम कर दिया है तो उसे धन्यवाद-थैंक्यू जरूर बोलो। और अगर आपसे किसी को जरा सी भी असहजता हुई है तो उसे सॉरी जरूर बोलो। उन्होंने आगे कहा कि जिंदगी ऐसी जियो कि जहां तुम रहो वहां सब तुम्हें प्यार करें। जहां से तुम चले जाओ, पीछे सब तुम्हें याद करें और जहां तुम जाने वाले हो वहां सब तुम्हारा इंतजार करें। तुलसीदासजी ने कहा था- ईश्वर अंश जीव अविनाशी। जीव ईश्वर का अंश है। भगवान महावीर ने कहा है- अप्पा सो परमप्पा। अर्थात् आत्मा का विकास ही परमात्मा है। सिद्ध कोई अलग नहीं होता, हममें से कोई सिद्ध होता है। श्रद्धालुओं को बैर-विरोध को समाप्त करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए संतश्री ने कहा कि कब तक किसी की कही बात को लेकर चलोगे, जो बीत गई सो बीत गई, कब तक बैर-विरोध की गांठ साथ लेकर चलोगे। तुम भी मर जाओगे, वह भी मर जाएगा पर बैर-विरोध की गांठें अगर जन्म-जन्मान्तर तक साथ चलती रही तो हर गति आपकी बिगड़ती चली जाएगी। लोग कहते हैं- सात फेरे-सात जनम तक। शादी का रिश्ता सात जनम तक चलता है या नहीं चलता मुझे नहीं पता पर बैर-विरोध का रिश्ता 70 जनम तक पीछा करता है। परमाणु बम से भी ज्यादा ताकत प्रेम में होती है। जिससे आदमी पूरी दुनिया को जीत सकता है। प्रेम का दामन कभी मत छोडऩा।  हाथ उठाकर आदमी दस लोगों के दिलों को नहीं जीत सकता, पर हाथ जोडक़र आदमी लाखों लोगों के दिलों को जीत सकता है। तीसरा संकल्प आज यह कर लो कि मैं अपने जीवन में हमेशा प्रेम की गंगा-यमुना को बहाने की कोशिश करुंगा। जो व्यक्ति प्रेम की गंगा में नहाता है वो कभी दूसरों के दिलों से नहीं हटता। टेढ़ा आदमी लोगों के दिल से उतरता है और मधुर आदमी दिल में उतरता है। हम ऐसा जीवन जिएं की सामने वाले के दिल में उतर जाएं। भगवान महावीर हमें अहिंसा, प्रेम और शांति को जो संदेश देते हैं उसका मूल राज यही है।

जैन किसी धर्म या पंथ का नाम ही नहीं यह जीवन जीने का एक सन्मार्ग है, यह सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा- किसे कहें हम जैन और किसे कहें भगवान महावीर का अनुयायी। जिसके जीवन में सदाचार का संचार है, अहिंसा जिसका अलंकार है। जिसे जीवमात्र से प्यार है, जो गुणों का भंडार है। जिसमें नम्रता और सरलता है, जो बुराई से टलता है और सच्चाई पर चलता है। जो खुद भी नेक है, जिसमें विनय और विवेक है, जो जनता है-जो मानता है कि मुक्ति के मार्ग अनेक हैं फिर भी हम सब एक हैं। जो मानवता में विश्वास रखता है, शांतिदूत बनकर जीता है, जो आतंकवादी नहीं अनेकांतवादी है। जो अन्यायी नहीं, अहिंसा और प्रेम का अनुयायी है। जो महावीर का फैन है, सच तो यही है दुनिया में वही सच्चा जैन है।  
 


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