रायपुर

जीवन में क्षमा और प्रेम की ज्योति जलाएं-राष्ट्र संत ललित प्रभजी
30-Aug-2022 1:00 PM
जीवन में क्षमा और प्रेम की ज्योति जलाएं-राष्ट्र संत ललित प्रभजी

रायपुर, 28 अगस्त। क्षमा रूपी अमृत के स्वाद को वही व्यक्ति जानता है जो इसको जीवन में जीता है। क्रोध करने वाला व्यक्ति कभी महान नहीं होता, क्षमा को धारण करने वाला ही महान होता है। विपरीत वातावरण होने पर भी जब आदमी प्रेम और क्षमा को बनाए रखता है वही महान है।

एक बात हमेशा याद रखें कि आलोचना में कभी उबलना मत और सफलता में कभी पिघलना मत। क्योंकि ये तो वक्त-बेवक्त बदलते रहते हैं। आज कोई व्यक्ति तुम्हारा अपना बना है तो वह तुम्हारी प्रशंसा कर रहा है और कल किसी बात को लेकर उसी व्यक्ति से तुम्हारी अनबन हो गई तो वह तुम्हारी प्रशंसा नहीं आलोचना करने लग जाएगा।

इसका मतलब प्रशंसा और आलोचना की स्थितियां बदलती रहती हैं। पर एक बात हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि हमें इन बदलती परिस्थितियों में अपनी क्षमा भावना सदा बनाए रखना चाहिए।

ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत श्रीललितप्रभजी ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में शनिवार को दिव्य सत्संग के अंतर्गत पर्युषण पर्व के चतुर्थ दिवस सूत्र शिरोमणि कल्पसूत्र पर आधारित ‘प्रभु महावीर की भव-यात्रा’ विषय पर व्यक्त किए।

संतप्रवर ने आगे कहा कि पर्युषण पर्व के आज चौथे दिन हमें अपने जीवन से चार चीजों को हटाना है। वे हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ। पर्युषण पर्व का यह चौथा दिन हमें कहता है- ये चार हमारे जिंदगी में जहर हैं, इनको जिंदगी से निकालो। जब जहर को निकाला है तो जीवन में अमृत को ग्रहण करना होगा।

क्रोध अगर पहला जहर है तो प्रेम और क्षमा जिंदगी का पहला अमृत है। अहंकार अगर जहर है तो विनम्रता यह हमारे भीतर का अमृत है। माया अगर जहर है तो मैत्री हमारे जीवन का अमृत है। लोभ अगर जहर है तो संतोष हमारे जीवन का अमृत है। क्षमा-प्रेम, विनम्रता, मैत्री भावना और संतोष को हमें अपने जीवन से जोडऩा है। और ऐसे ही चार संकल्प हम और करेंगे। वे हैं- दान, शील, तप और भाव।

संतश्री ने आगे कहा कि खौलते-उबलते पानी में जब आपका चेहरा भी नजर नहीं आता तब आप उबलते गुस्से में होंगे तो दूसरे लोग आपको कहां से पसंद करेंगे। सम्राट के क्रोध से भी ज्यादा महान एक भिखारी की क्षमा होती है। मिठास हो जहां, वहां पर चीटियां भी आती हैं और जहां खटास हो वहां चींटियां भी आना पसंद नहीं करतीं।

जिंदगी में कभी भी आदमी अपने रंग से महान नहीं होता है, आदमी जब भी महान होता है तो अपने जीवन जीने के ढंग से महान होता है। आदमी सूरत से नहीं सीरत से महान होता है। भगवान महावीर मंदिरों में इसीलिए पूजे जा रहे हैं कि उनका चरित्र सुंदर था। यह पयुर्षण पर्व हमें प्रेरणा देता है कि जीवन में क्षमा और प्रेम की ज्योति जलाइए। जो क्षमाशील होता है सभी उसे पसंद करते हैं। दंड देने वाले को दुनिया में कोई याद नहीं करता, माफी देने वाले को दुनिया में सब याद किया करते हैं। जिंदगी कितनी गजब की है कि लोग वर्षों पुराने कैलेण्डर घर में नहीं रखते लेकिन वर्षों पुराने बैर-विरोध को अपने मन में पाल कर रखते हैं। आदमी को मन में बैर-विरोध, कलुषता की गांठें बांधकर नहीं रखनी चाहिए।


अन्य पोस्ट