रायगढ़

कांगे्रस का बिखरा कुनबा, भाजपा डबल हैट्रिक के मूड में
29-Feb-2024 4:44 PM
कांगे्रस का बिखरा कुनबा, भाजपा डबल हैट्रिक के मूड में

बीजेपी से आरपी, भरत व सालिक साय तो कांगे्रस से जयमाला, मेनका व चक्रधर की दावेदारी मजबूत

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 29 फरवरी।
छत्तीसगढ़ राज्य के 11 लोकसभा सीटों में से एक लोकसभा सीट रायगढ़ जनजाति वर्ग के लिये आरक्षित सीट है। इस आरक्षित सीट पर वैसे तो सारंगढ़ और जशपुर राजपरिवार के सदस्यों या उनका वरदहस्त प्राप्त प्रत्याशियों का परचम लहराता रहा है। यहां पर कमोवेश कांग्रेस और भाजपा बारी-बारी से एक-दूसरे को पटखनी देते रहे हैं, मगर जशपुर कुमार दिलीप सिंह जूदेव के राजनीतिक अभ्युदय पश्चात पिछले पांच लोकसभा चुनावों में इस सीट पर भाजपा प्रत्याशियों ने अपना दबदबा स्थापित किया है। वर्तमान में लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस एक बार फिर से बिखरी-बिखरी नजर आ रही है, और भाजपा के जातिगत समीकरण साधने के कारण यह सीट एक बार फिर भाजपा की ही झोली में जाने की प्रबल संभावना बलवती होती दिख रही है।

जनजाति आदिवासी वर्ग के लिये आरक्षित छत्तीसगढ़ के रायगढ़ लोकसभा सीट पर प्रमुख रूप से कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर होती रही है। इनमें से जो भी पार्टी उस दौर में जातिगत समीकरण को साधने में सफल रही उस पार्टी के प्रत्याशी के सिर जीत का सेहरा सजता रहा है। कमोवेश पिछले पांच लोकसभा चुनावों 1999 से अब तक में यहां भाजपा जातिगत समीकरणों को साधने में सफल रही है परिणाम स्वरूप जशपुर राजपरिवार से वरदहस्त प्राप्त भाजपा प्रत्याशियों ने यहां से लगातार जीत दर्ज की है। वहीं कांग्रेस इस लोकसभा सीट पर बिखरी-बिखरी सी रही है। आसन्न लोकसभा चुनाव में भी वह बिखरी हुई ही नजर आ रही है जिसका फायदा भाजपा को ही मिलता नजर आ रहा है।  

कब किसके सिर सजा जीत का सेहरा
वैसे तो रायगढ़ लोकसभा सीट पर पिछले चार दशकों से जशपुर व सारंगढ़ राजपरिवार किंग मेकर की भूमिका में रहा है। यदि पिछले दस लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस की पुष्पा देवी सिंह ने जीत दर्ज की। वे सारंगढ़ राजपरिवार की सदस्य हैं। पुष्पा देवी ने 1984 के लोकसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की। मगर 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में जशपुर राजघराने के कुंवर दिलीप सिंह जूदेव का वरदहस्त प्राप्त नंदकुमार साय ने जीत दर्ज की। मगर 1991 के चुनाव में पुष्पा देवी सिंह एक बार फिर सांसद बनी। तो 1996 में भाजपा के नंदकुमार साय यहां से सांसद रहे। 1998 के चुनाव में कांग्रेस के अजीत जोगी ने रायगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पहली बार जीत दर्ज की और यहां के सांसद बने। मगर इसके बाद 1999 से लेकर 2014 तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा और भाजपा के विष्णुदेव साय चार बार यहां के सांसद रहे। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रत्याशी बदलकर गोमती साय को मैदान में उतारा और उन्होंने यहां से जीत दर्ज कर अपने संसदीय जीवन की शुरुआत की। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें पत्थलगांव सीट से प्रत्याशी बनाये जाने पर वे अब यहां से विधायक हैं और फिलहाल यह सीट अभी खाली है।

जातिगत समीकरण साधने में भी भाजपा आगे
रायगढ़ लोकसभा सीट के जातियों पर नजर डालें तो छत्तीसगढ़ की भांति रायगढ़ लोकसभा सीट में भी प्रमुख रूप से कंवर, उरांव और गोंड जनजाति के लोग बहुलता से निवास करते हैं। इनमें से गोंड जनजाति को इस सीट से चार बार प्रतिनिधित्व मिला है जबकि कंवर जनजाति के प्रत्याशियों को यहां से सात बार प्रतिनिधित्व मिला है। मगर तीसरे उरांव जनजाति को यहां से एक बार भी प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकता है। इसका कारण यह माना जाता है कि इस समाज में धर्म परिवर्तन के कारण इस लोकसभा सीट में उनकी संख्या काफी कम होने के कारण उन्हें अपेक्षित महत्व नहीं मिला है। 

रायगढ़ लोकसभा सीट से जीत की बेहतर संभावनाओं के बावजूद भाजपा यहां जातिगत समीकरण बिठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इस लोकसभा सीट से चार बार सांसद रह चुके हैं, जो कंवर जनजाति से आते हैं। तो दूसरी ओर गोंड जनजाति से रायगढ़ राजघराने के कुंवर देवेन्द्र प्रताप सिंह को थाली में सजाकर राज्य सभा सांसद का पद नवाजा जा चुका है। इन समीकरणों के चलते तथा सांगठनिक मजबूती के कारण इस सीट पर एक बार फिर भाजपा का प्रभुत्व जमता दिख रहा है। तो वहीं भाजपा के ही युवा और ऊर्जावान नेता, यूथ आईकॉन ओपी चौधरी पर भी इस लोकसभा सीट को भाजपा की झोली में डालने पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई है। देखना यह है कि भाजपा इस बार इस सीट पर किस जनजाति के नेता को तरजीह देती है।

पहली बार इस लोकसभा में तीन जिले शामिल
वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति पर नजर डालें तो रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 8 विधानसभाओं में चार पर भाजपा व चार पर कांग्रेस काबिज है। यह लोकसभा तीन जिलों रायगढ़, जशपुर व सारंगढ़ तक फैली हुई है।

कांग्रेस का बिखरा-बिखरा कुनबा
वर्ष 1999 से इस लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस लगभग अपना वजूद खोती गई है। वर्तमान में इस लोकसभा से भाजपा की चुनावी संभावनाएं बेहद मजबूत मानी जा रही है। तो दूसरी ओर कांग्रेस का संगठन बिखरा-बिखरा नजर आता है।

इस लोकसभा सीट के लिये कांग्रेस के पास कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं होने के कारण तथा राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के मुकाबले कांग्रेस की अपेक्षाकृत कमजोर स्थिति के चलते यह लोकसभा सीट पिछले पांच चुनाव में भाजपा के ही कब्जे में रही है।

इस बार के संभावित उम्मीदवार
रायगढ़ लोकसभा सीट से इस बार भी कई लोगों ने अपने दावेदारी ठोंकी है। इनमें पूर्व आईजी आरपी साय, तपकरा के पूर्व विधायक भरत साय, जशपुर जिले के कांसाबेल से जिला पंचायत सदस्य सालिकसाय, भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश प्रतिनिधि सुषमा खलखो, जशपुर के जिला पंचायत सदस्य राधेश्याम राठिया तथा लैलूंगा क्षेत्र के युवा नेता और भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रवि भगत वका नाम भाजपा की ओर से सामने आ रहा है। वहीं कांग्रेस की ओर से सारंगढ़ राजघराने की पूर्व सांसद पुष्पा देवी की बहन मेनका सिंह, रायगढ़ राजघराने से देवेन्द्र प्रताप सिंह की बहन जयमाला सिंह, लैलूंगा के पूर्व विधायक चक्रधर सिदार, पूर्व विधायक हृदयराम राठिया का भी नाम शामिल है।

हमेशा से किंग मेकर की भूमिका में जशपुर-सारंगढ़ राजघराने
रायगढ़ लोकसभा के 1962 से लेकर 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो इस सीट पर सारंगढ़ राजघराने तथा जशपुर राजघराने का प्रभुत्व नजर आता है। जहां एक तरफ कुंवर दिलीप सिंह जूदेव की छत्रछाया में भाजपा यहां परचम फहराती रही है वहीं सारंगढ़ राजघराने से राजकुमारी रजनीगंधा देवी पुष्पा देवी  ने इस सीट पर अलग-अलग समय में कब्जा जमाया है। एक दो बार के अप्रत्याशित परिणाम को छोड़ दें तो इस सीट पर दोनों राजघराने के कर्णधार किंग मेकर की भूमिका में रहे हैं।
 


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