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अमरीका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने अपनी नई किताब में कहा है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने फिर से राष्ट्रपति चुने जाने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मदद लेने की कोशिश की थी.
बोल्टन की आने वाली किताब से ये जानकारी अमरीकी मीडिया में छपी है. बोल्टन ने कहा है कि ट्रंप चाहते थे कि चीन अमरीकी किसानों से कृषि उत्पाद ख़रीदे. कहा जा रहा है कि यह उन घटनाओं की याद दिलाता है जिनके कारण ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी. ट्रंप प्रशासन इस किताब को प्रकाशित होने से रोकने की कोशिश कर रही है. अमरीका के डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस का कहना है कि किताब में 'गोपनीय सूचनाएं' हैं.
इस किताब का टाइटल है- 'द रूम व्हेयर इट हैपन्ड'. यह किताब 23 जून को आने वाली है. इसी साल जनवरी महीने में व्हाइट हाउस ने कहा था कि किताब में कई अहम गोपनीय डिटेल हैं और इन्हें हटाया जाना चाहिए. हालांकि जॉन बोल्टन ने इसे ख़ारिज कर दिया था.
बोल्टन ने अपनी किताब में उन दावों को भी शामिल किया है जिनके आधार पर राष्ट्रपति ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग की जांच शुरू हुई थी. जनवरी महीने में ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी. ट्रंप पर आरोप था कि उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ीलेंस्की पर डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार जो बाइडन और उनके बेटे हंटर बाइडन को लेकर भ्रष्टाचार के मामले में जांच के लिए दबाव डाला.
दबाव बनाने के लिए यूक्रेन को अमरीका से मिलने वाली सैन्य मदद रोकने की बात कही जा रही थी. हालांकि ट्रंप ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था. दो हफ़्ते की महाभियोग जांच के बाद ट्रंप को रिपब्लिकन बहुमत वाले सीनेट में बरी कर दिया गया था.
बोल्टन ने कहा है कि महाभियोग की जाँच तब अलग होती जब ट्रंप पर यूक्रेन के अलावा भी अन्य राजनीतिक हस्तक्षेप की घटनाओं की जांच होती. बोल्टन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के तौर पर अप्रैल 2018 में व्हाइट हाउस आए थे और उसी साल सितंबर में उन्होंने इस पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. उन्होंने तब कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद से इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला किया है. हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप का कहना था कि उन्होंने बोल्टन को बर्खास्त कर दिया था क्योंकि वो बाग़ी बन गए थे.
बीबीसी उत्तरी अमरीका के रिपोर्टर एंथोनी ज़र्चर का विश्लेषण
जॉन बोल्टन ने अपनी किताब में जिन बातों को शामिल किया है वो कुछ हद तक लोगों को पता था. यह कोई पहली बार नहीं है जब ट्रंप के एक पूर्व सलाहकार या कोई अज्ञात वर्तमान सहयोगी ने राष्ट्रपति के बारे में इतना कुछ कहा हो. क़रीब साढ़े तीन साल में व्हाइट हाउस की कई कहानियां सामने आईं जिनमें निंदा और भीतर ही भीतर चल रहे सत्ता के संघर्ष की बाते हैं.
बोल्टन की किताब कुछ मामलों में बिल्कुल अलग है. हालांकि मुख्य रूप से इस बात को विस्तार बताया गया है कि एक राष्ट्रपति विदेश नीति को अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए तोड़-मरोड़ करता है. यही बातें ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग जाँच में मुख्य रूप से थीं. जॉन बोल्टन भी इस बात को कहते हैं कि राष्ट्रपति ने जो बाइडन को नुक़सान पहुंचाने के लिए यूक्रेन पर सैन्य मदद रोक दबाव बनाने की कोशिश की.
बोल्टन ने अपनी किताब में कहा है कि ट्रंप चीन के साथ भी फिर से राष्ट्रपति चुने जाने की संभावना को बढ़ाने के हिसाब से डील कर रहे थे. रिपब्लिकन्स का कहना है कि यह एक असंतुष्ट अधिकारी की वो कोशिश है जो अपनी किताब को ज़्यादा से ज़्यादा बेचने में लगा है जबकि डेमोक्रेट्स का कहना है कि बोल्टन को महाभियोग की जांच के दौरान ये बातें कहनी चाहिए थीं. लेकिन बोल्टन की किताब राष्ट्रपति ट्रंप के चुनावी कैंपेन को प्रभावित कर सकती है जो अब भी तेज़ी पाने की कोशिश कर रहा है. अमरीका में पाँच महीने के भीतर ही राष्ट्रपति चुनाव होना है.
शी जिनपिंग को लेकर ट्रंप पर बोल्टन ने क्या आरोप लगाए हैं?
पिछले साल जून महीने में जापान के ओसाका में जी20 समिट में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ट्रंप की मुलाक़ात हुई थी. न्यूयॉर्क टाइम्स में जॉन बोल्टन की किताब का एक उद्धरण छपा है. इसके मुताबिक़ चीनी राष्ट्रपति ने शिकायत की कि चीन के कुछ अमरीकी आलोचक नए शीत युद्ध की बात कर रहे हैं. बोल्टन कहा, ''ट्रंप को लगा कि शी जिनपिंग उनके डेमोक्रेटिक विरोधियों की बात कर रहे हैं. ट्रंप ने आश्चर्यजनक रूप से बातचीत को 2020 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव की तरफ़ मोड़ दिया और चीन की आर्थिक क्षमता का हवाला देते हुए शी जिनपिंग से चुनाव में जीत दिलाने के लिए मदद करने को कहा.''
बोल्टन ने कहा है, ''ट्रंप ने किसानों की अहमियत पर ज़ोर देते हुए चीन से सोयोबीन और गेहूं की ख़रीदारी बढ़ाने को कहा ताकि चुनावी नतीजे उनके पक्ष में आए. जब शी जिनपिंग कारोबारी बातचीत में कृषि उत्पादों को प्राथमिकता देने पर सहमत हो गए तो ट्रंप ने उन्हें चीन के इतिहास का सबसे महान नेता क़रार दिया था.''
अमरीकी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव रॉबर्ट लाइटहाइज़र ने बुधवार को बोल्टन के इन दावों पर कहा कि फिर से चुनाव जीतने में मदद करने को लेकर कभी कोई बात नहीं हुई थी. बोल्टन ने समिट में पश्चिमी चीन के शिन्जियांग प्रांत में निगरानी कैंप बनाने लेकर हुई बात का भी हवाला दिया है. बोल्टन के अनुसार ट्रंप ने कंस्ट्रक्शन का समर्थन किया था. मानवाधिकार समूह चीन के इन निगरानी कैंपों की आलोचना करते हैं. यहां क़रीब 10 लाख वीगर मुसलमानों को और दूसरे अल्पसंख्यकों को रखा गया है.
किताब और क्या कहती है?
ट्रंप के क़रीबी सलाहाकार जिनमें विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो और ख़ुद बोल्टन शामिल हैं, जो असंतोष और निराशा के कारण इस्तीफ़ा देना चाहते थे. बोल्टन ने कहा है कि उन्होंने लोगों की मंशा देखी, पर्दे के पीछे की साज़िशें देखीं और ये भी देखा कि कैसे बेतरतीब तरीक़े से व्हाइट हाउस चल रहा है.
बोल्टन ने इसमें कई निजी बातचीत को भी शामिल किया है. किताब में दावा किया गया है कि ट्रंप को ये पता नहीं था कि ब्रिटेन परमाणु शक्ति संपन्न देश है और फ़िनलैंड नाम का कोई देश है. बोल्टन ने कहा है कि एक मौक़े पर ट्रंप ने कहा कि अगर सहयोगी देशों ने रक्षा खर्च नहीं बढ़ाया तो वो नेटो से निकल जाने की धमकी देंगे. (bbc.com/hindi)