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महिला ने कहा – शिकायत दोस्त ने लिखी थी, याद भी नहीं
सहमति वाले संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता-जज
'छत्तीसगढ़' न्यूज़ डेस्क
कोलकाता, 3 सितम्बर। करीब पाँच साल तक मुकदमा झेलने और 51 दिन जेल में गुजारने के बाद कोलकाता की सिटी सेशंस कोर्ट ने एक युवक को बलात्कार और धोखाधड़ी के आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि मामला "ग़लतफ़हमी" और "सहमति से बने संबंध" का था, जिसमें बलात्कार का अपराध साबित नहीं होता।
क्या था मामला
महिला ने 24 नवम्बर 2020 को शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी ने शादी का वादा कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और फिर इंकार कर दिया। इसके आधार पर युवक को गिरफ्तार किया गया और उसने 51 दिन जेल में बिताए।
मार्च 2021 में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और केस की सुनवाई शुरू हुई।
महिला का पलटा बयान
इस साल मार्च में महिला ने अदालत को बताया कि उसने "ग़लतफ़हमी" में शिकायत लिखवाई थी। उसने माना कि वह युवक के साथ रिश्ते में थी और शादी की उम्मीद में उसके साथ रही। महिला ने यह भी कहा कि शिकायत "उसकी दोस्त" ने लिखी थी और उसे सही से याद भी नहीं कि उसमें क्या लिखा गया था।
महिला के बयान को उसके परिवार—माँ, नानी और एक पड़ोसी—ने भी सपोर्ट नहीं किया।
अदालत का फैसला
सेशंस जज अनिंद्य बनर्जी ने 28 अगस्त को फैसला सुनाते हुए कहा:
यह साफ है कि दोनों वयस्कों के बीच सहमति से संबंध बने थे।
बलात्कार का आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
पुलिस और अभियोजन पक्ष आरोपों को सिद्ध करने में "पूरी तरह नाकाम" रहे।
अदालत ने युवक को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
झूठे मामलों पर चिंता
कानून विशेषज्ञों का कहना है कि झूठे या कमजोर आधार वाले बलात्कार के मामले न्याय प्रणाली पर दबाव डालते हैं।
NCRB की रिपोर्ट बताती है कि बलात्कार के लगभग 8–10% मामलों में जांच के दौरान आरोप झूठे या अप्रमाणित पाए गए।
अदालतें समय-समय पर चेतावनी देती रही हैं कि "शादी के वादे पर बने सहमति वाले संबंध" को हर बार बलात्कार नहीं माना जा सकता।
समान मामले
2017 में दिल्ली में एक महिला ने शादी टूटने पर बॉयफ्रेंड पर बलात्कार का आरोप लगाया था, लेकिन सबूत न मिलने पर युवक बरी हो गया।
2022 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि ऐसे मामलों में सावधानी ज़रूरी है क्योंकि झूठे केस असली पीड़िताओं के लिए न्याय की राह और कठिन बना देते हैं।
निष्कर्ष
कोलकाता की इस घटना ने फिर से सवाल उठाए हैं कि झूठे आरोपों से निर्दोष लोगों की ज़िंदगी किस तरह प्रभावित होती है। न्यायाधीशों ने साफ कहा है कि अदालतों को ऐसे मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निष्पक्ष जांच पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए।