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बोलपुर, 28 जुलाई। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को बोलपुर से राज्यव्यापी ‘भाषा आंदोलन’ की शुरुआत की और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर बंगाली पहचान को मिटाने का प्रयास करने का आरोप लगाया।
बनर्जी ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का विरोध करने, प्रवासियों की रक्षा करने और ‘भाषाई आतंकवाद’ को रोकने का संकल्प लिया।
ममता ने भाजपा नीत केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग पर बांग्ला भाषी प्रवासियों को निशाना बनाकर और मतदाता सूची से वैध मतदाताओं को हटाने का प्रयास करके ‘‘पिछले दरवाजे से एनआरसी को लागू करने’’ की कोशिश करने का आरोप लगाया।
मुख्यमंत्री ने नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की धरती से अपने बहुप्रचारित ‘‘भाषा आंदोलन’’ की शुरुआत की घोषणा की। बनर्जी ने कहा कि वह ‘‘अपनी जान दे देंगी लेकिन किसी को भी अपनी भाषा नहीं छीनने देंगी।’’
ममता ने तृणमूल कांग्रेस समर्थकों और वापस लौटे बंगाली प्रवासियों की एक रैली का नेतृत्व करते हुए कहा, ‘‘हम भाषाई आतंक के नाम पर हमारे अस्तित्व को खतरे में डालने की इस साजिश और पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने के प्रयास को रोकेंगे।’’
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘जब तक मैं जिंदा हूं, बंगाल में एनआरसी लागू नहीं होने दूंगी। मैं यहां निरुद्ध शिविर नहीं बनने दूंगी। अगर बंगाल से नाम हटाने की कोशिश करोगे... तो इसके नतीजे भुगतने होंगे। क्या आप हमारी माताओं, बहनों और हमारे सांस्कृतिक समूहों के उन प्रतिकार का सामना करने के लिए तैयार हैं, जब वे अहिंसक तरीके से आपके खिलाफ उठ खड़े होंगे?’’
बनर्जी ने उत्साहित भीड़ का अभिवादन करते हुए और टैगोर का चित्र लिए हुए टूरिस्ट लॉज चौराहे से जम्बोनी बस स्टैंड तक तीन किलोमीटर लंबा विरोध मार्च निकाला। इस दौरान उनके साथ मंत्री, पार्टी के वरिष्ठ नेता और स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधि भी मौजूद थे।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘हमारी किसी भाषा से कोई शत्रुता नहीं है। मैं किसी भाषा के खिलाफ नहीं हूं। मेरा मानना है कि विविधता में एकता हमारे राष्ट्र की नींव है। लेकिन अगर आप हमारी भाषा और संस्कृति को मिटाने की कोशिश करेंगे, तो हम शांतिपूर्ण तरीके से, पूरी ताकत से और राजनीतिक रूप से इसका विरोध करेंगे।’’
बनर्जी ने पिछले सप्ताह तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं से 28 जुलाई से नए आंदोलन के लिए तैयार रहने का आह्वान किया था और इसे दूसरा ‘भाषा आंदोलन’ बताया था। उन्होंने इसकी तुलना 1952 में ढाका (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में हुए ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन से की थी, जहां छात्रों ने बांग्ला को तत्कालीन पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की मांग को लेकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
संयुक्त राष्ट्र ने बाद में उस संघर्ष की स्मृति में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया।
बनर्जी ने निर्वाचन आयोग पर केंद्र के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘ भाजपा सरकार के एक पूर्व मंत्री अब डबल इंजन सरकार में अपने दोस्त की मदद करने के लिए मतदाता सूची से मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं उन्हें मतदाता सूची संशोधन के नाम पर वैध मतदाताओं को हटाने की चुनौती देती हूं। हम उन्हें अपने ही देश में बंगालियों को बेघर नहीं करने देंगे।’’
बनर्जी ने बंगाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का उल्लेख करते हुए लोगों से आग्रह किया कि वे अपनी अस्मिता (गर्व), मातृभाषा और मातृभूमि को कभी न भूलें।
उन्होंने कहा, ‘‘आप सब कुछ भूल सकते हैं, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। अगर बंगाल आजादी ला सकता है और सामाजिक सुधारों का नेतृत्व कर सकता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ भी सकता है।’’
मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर प्रताड़ित किये जा रहे बांग्ला भाषी प्रवासियों से बंगाल लौटने की अपील की। उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी प्रताड़ित बंगाली प्रवासियों से वापस आने का अनुरोध कर रहे हैं। हमने वापस लौटने वालों को बसाने, आजीविका सुरक्षित करने और उनके बच्चों का स्कूल में दाखिला कराने में मदद के लिए पहले ही एक योजना तैयार कर ली है। हम पुलिस और प्रशासन के माध्यम से आपको पूरा सहयोग देंगे।’
बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तीखा हमला करते हुए सवाल किया, ‘‘जब आप अरब देशों की यात्रा करते हैं और शेखों को गले लगाते हैं, तो क्या आप उनसे पूछते हैं कि वे हिंदू हैं या मुसलमान? क्या आपने मालदीव के राष्ट्रपति को गले लगाने और 5,000 करोड़ रुपये दान देने से पहले उनसे उनका धर्म पूछा था, जबकि बंगाल को उनका हक नहीं दिया गया?’’
बनर्जी ने कहा, ‘‘मैं ऐसे राष्ट्र की कल्पना को स्वीकार नहीं करती जो सिर्फ बांग्ला बोलने के कारण प्रवासी की हत्या कर दे।’’
मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर जारी भेदभाव पर सवाल उठाते हुए कहा कि बांग्ला दुनिया में पांचवीं और एशिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
उन्होंने कहा, ‘‘फिर भी, बंगालियों को विभिन्न राज्यों में प्रताड़ित किया जा रहा है। यह नफरत क्यों? अगर बंगाल अन्य राज्यों से आए 1.5 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को स्वीकार कर सकता है और उन्हें आश्रय दे सकता है, तो आप अन्यत्र काम करने वाले 22 लाख बंगाली प्रवासियों को क्यों नहीं स्वीकार कर सकते?’’
बोलपुर विरोध मार्च सिर्फ राजनीतिक नहीं था बल्कि भावनाओं और प्रतीकों से ओतप्रोत था।
ममता ने अपनी जानी-पहचानी सूती साड़ी और शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती का पारंपरिक दुपट्टा पहन रखा था।
उन्होंने भारत के निर्माण में बंगाल के योगदान पर जोर देने के लिए बंगाली और राष्ट्रीय प्रतीकों, स्वामी विवेकानंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, काजी नजरूल इस्लाम, मातंगिनी हाजरा, राजा राममोहन राय और ईश्वर चंद्र विद्यासागर का उल्लेख किया। (भाषा)