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आरपीएन सिंह बीजेपी में शामिल होकर बोले- 'दुरुस्त आए', सपा-कांग्रेस पर क्या असर?
25-Jan-2022 8:35 PM
आरपीएन सिंह बीजेपी में शामिल होकर बोले- 'दुरुस्त आए', सपा-कांग्रेस पर क्या असर?

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-वात्सल्य राय

कांग्रेस से करीब '32 साल पुराना' नाता तोड़कर मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री रतनजीत प्रताप नारायण (आरपीएन) सिंह ने अपने फ़ैसले को लेकर कहा, "देर आए, दुरुस्त आए."

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसके पहले आरपीएन सिंह का स्वागत करते हुए एक पुरानी मुलाक़ात का ज़िक्र किया और बताया कि उन्होंने आरपीएन सिंह से कहा था, " आप जैसे व्यक्ति को नरेंद्र मोदी जी के साथ होना चाहिए."

धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि सिंह की "प्रधानमंत्री के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश को नंबर 1 बनाने के लिए ज्वाइनिंग हुई है."

आरपीएन सिंह ने अपने फ़ैसले की जानकारी ट्विटर पर पहले ही दे दी थी. आरपीएन सिंह ने ट्विटर पर लिखा कि वो, "राजनैतिक जीवन में नया अध्याय आरंभ कर" रहे हैं.

कुछ घंटे बाद वो बीजेपी में औपचारिक तौर पर शामिल हुए और कहा, "32 साल तक मैं एक पार्टी में रहा. ईमानदारी से. लगन से. परंतु जिस पार्टी में इतने साल रहा (वो) अब वो पार्टी नहीं रह गई."

बीजेपी में शामिल होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उनकी मुलाक़ात की तस्वीरें भी सामने आईं.

समर्थकों के बीच 'पडरौना के राजा' के नाम से चर्चित आरपीएन सिंह साल 1996 से लेकर 2009 तक उत्तर प्रदेश की पडरौना सीट से कांग्रेस के विधायक थे.

साल 2009 में वो कुशीनगर सीट से लोकसभा के लिए चुने गए और यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने. उनके पास कई मंत्रालयों का प्रभार रहा.

साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वो जीत हासिल नहीं कर सके लेकिन उनकी गिनती उत्तर प्रदेश के प्रमुख कांग्रेस नेताओं में होती रही है.

उन्हें राहुल गांधी समेत पूरे गांधी परिवार का करीबी माना जाता था. वो कांग्रेस के झारखंड प्रभारी और चुनाव में स्टार प्रचारक थे.

आरपीएन सिंह कांग्रेस से दलबदल करते हुए बीजेपी में गए हैं लेकिन इस कदम का असर तमाम दलों और उत्तर प्रदेश के पूरे राजनीतिक परिदृश्य पर दिख रहा है.

कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों के नेता आरपीएन सिंह के फ़ैसले को लेकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं. समाजवादी पार्टी में हाल में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने आरपीएन सिंह के असर को 'मामूली' बताया तो कांग्रेस के कई नेताओं ने तीखा हमला बोला है.

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह लल्लू ने कहा, " चले गए. कोई बात नहीं. जो लड़ने वाले होंगे, वो रुकेंगे, जिनको ईडी, सीबीआई का डर होगा वो चले जाएंगे. जिनको संपत्ति बनानी होगी, वो चले जाएंगे. "

आरपीएन सिंह ने तो अभी तक कांग्रेस की ओर से किए जा रहे तीखे हमलों का कोई जवाब नहीं दिया है लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इस पर राय ज़रूर दे रहे हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति पर लंबे समय से करीबी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "इतने दिन ये कांग्रेस में टिके रहे, यही बड़ी बात है."

उनके मुताबिक बिजनेस, प्रतिष्ठान या फिर महत्वाकांक्षा रखने वाले नेता अब कांग्रेस को अपने लिए सही पार्टी नहीं मानते हैं. रामदत्त त्रिपाठी की राय में, "जिनकी महत्वाकांक्षा है, उन सबको ये लगता है कि कांग्रेस के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता है."

उनके मुताबिक ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद भी अपना भविष्य देखते हुए ही बीजेपी के साथ गए और आरपीएन सिंह ने भविष्य के बारे में सोचते हुए ही ये फैसला लिया होगा.

कितना है असर?
आरपीएन सिंह कुर्मी समुदाय से आते हैं. भारतीय जनता पार्टी के नेता आरपीएन सिंह को पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभावी नेता की तरह पेश कर रही है. हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान इसे थोड़ा 'अतिश्योक्ति भरा' बता रहे हैं.

वो कहते हैं, "आरपीएन सिंह अच्छे नेता हैं लेकिन उनकी बहुत हैसियत होती तो आसपास की 50 और सीट जीत लेते ना. लेकिन ऐसा तो कुछ नहीं हुआ (कभी) .उनकी एक दो सीट पर अच्छी पकड़ है, पूरे यूपी का कुर्मी इनके पीछे भागे, ऐसा तो कभी नहीं हुआ है. "

रामदत्त त्रिपाठी की राय भी कुछ ऐसी ही है.

वो कहते हैं, " ये उतने हार्ड वर्किंग नहीं रहे है. आज राजनीति बहुत डिमांडिंग है. ये अपना क्षेत्र नहीं संभाल पाए. शायद वहां से जीत की उम्मीद नहीं थी. उन्होंने ये फ़ैसला भविष्य को देखते हुए लिया होगा."

लेकिन अगर ऐसा है तो फिर बीजेपी आरपीएन सिंह को लेकर इतनी उत्साहित क्यों है?

इस सवाल पर रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "बीजेपी बड़ा माइक्रो मैनेजमेंट करती है. बीजेपी का जो काम करने का तरीका है, उसमें उनकी हर सीट पर उनकी नज़र होती है, कार्यकर्ता पर भी विरोधी पर भी. स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने का जो झटका है, उसके डैमेज कंट्रोल के लिए इन्हें लिया होगा."

वो आगे कहते हैं, " बीजेपी नॉन यादव ओबीसी को जुटाने में लगी है. इनकी कुर्मी बिरादरी भी ओबीसी में है. इनका सैंथवार गोत्र है. अपने इलाक़े में इनकी प्रतिष्ठा ठीक-ठाक है."

स्वामी प्रसाद मौर्य हाल में बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं और उन्होंने बीजेपी को चुनावी समर में 'चित करने की चुनौती' दी हुई है.

मौर्य का पिछड़ा समुदाय पर अच्छा असर माना जाता है और मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पड़रौना में सिंह से मुक़ाबले के सवाल पर उन्होंने दावा किया है कि समाजवादी पार्टी का भी कोई कार्यकर्ता उन्हें हरा सकता है.

रामदत्त त्रिपाठी इनके बीच संभावित मुक़ाबले पर कहते हैं, "स्वामी प्रसाद मौर्य ने डिप्लोमैटिक जवाब दिया है, मैं कोई छोटा कार्यकर्ता खड़ाकर इन्हें हरा सकता हूं. इसलिए तय नहीं है कि क्या वो वहां से चुनाव लड़ेंगे और आरपीएन सिंह का मुक़ाबला करेंगे."

उधर, शरत प्रधान कहते हैं कि सिंह और मौर्य की अगर टक्कर होती भी है तो बीजेपी को कोई नुक़सान नहीं होगा.

वो कहते हैं, "शायद ऐसा लगता है कि बीजेपी के पास स्वामी प्रसाद मौर्य से टक्कर लेने वाला कोई नहीं था तो उन्होंने सोचा कि एक (नेता) इंपोर्ट कर लो बाहर से. अगर ये हारते भी है तो कम से कम ये नहीं होगा कि बीजेपी वाला हारा है, कहने को ये हो जाएगा कि साहब ये तो बाहर से आए थे."

वो कहते हैं, " आज इनकी कितनी राजनीति हैसियत है ये अभी पता नहीं है. वो कितने वोट हासिल कर पाएंगे ये आगे पता चलेगा."

कांग्रेस को नुक़सान होने के सवाल पर प्रधान कहते हैं, "कांग्रेस के पास अब कुछ बचा ही नहीं है खोने के लिए. हालांकि, उनका जाना जितिन प्रसाद से बड़ा लॉस (नुकसान) है. जितिन प्रसाद की बतौर नेता कोई हैसियत नहीं थी. आरपीएन सिंह को लोग ज़्यादा बेहतर नेता मानते हैं. आरपीएन सिंह की अच्छी पकड़ रही है. "

रामदत्त त्रिपाठी भी मानते हैं कि आरपीएन सिंह के आने से बीजेपी को ज़्यादा फ़ायदा नहीं होगा लेकिन ये कांग्रेस का बड़ा नुक़सान है.

वो कहते हैं, "कांग्रेस के लिए बड़ा लॉस है. बीजेपी के लिए बड़ा हासिल नहीं है. बीजेपी के पास इस समुदाय के कई नेता हैं. विनय कटियार से लेकर अपना दल की अनुप्रिया पटेल तक. महाराजगंज, गोरखपुर से लेकर बरेली तक पूरे तराई बेल्ट में, जहां कुर्मी हैं, बीजेपी का पहले से ही असर है. ये परसेप्शन की लड़ाई है, जिनमें बीजेपी का फ़ायदा है. "

त्रिपाठी आगे कहते हैं, "कांग्रेस, जितिन प्रसाद के मुक़ाबले आरपीएन के जाने से बड़ा झटका महसूस करेगी."

वो कहते हैं, "आरपीएन सिंह खानदानी लीडर हैं. कांग्रेस के युवा नेता रहे. यूपी में युवक कांग्रेस के प्रमुख रहे. पार्टी के प्रवक्ता भी थे. दून स्कूल के पढ़े हैं. उनके पिता (कुंवर चंद्र प्रताप नारायण सिंह) इंदिरा गांधी की कैबिनेट में थे. वो अपने क्षेत्र में राजा कहलाते थे."

वहीं शरत प्रधान कहते हैं, "इनके पिता सीपीएन सिंह पडरौना के राजा थे. उनकी अच्छी पकड़ थी. राजीव गांधी से अच्छे संबंध थे. वो रक्षा राज्यमंत्री भी रहे. संजय गांधी के ज़माने से (राजनीति में ऊपर) उठे थे."

वो ये भी जोड़ते हैं कि अब आरपीएन सिंह और उनके परिवार का इलाक़े पर कितना असर ये है चुनाव में पता चलेगा. (bbc.com)


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