कोण्डागांव

भारत की आध्यात्मिक विरासत जन-जन तक पहुंचनी चाहिए- अतुल कृष्ण
20-Nov-2023 9:40 PM
भारत की आध्यात्मिक विरासत जन-जन तक पहुंचनी चाहिए- अतुल कृष्ण

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोंडागांव, 20 नवंबर।
भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर अतुल कृष्ण जी भारद्वाज ने श्रृष्टि की उत्पत्ति का आध्यात्मिक सार वैज्ञानिक आधार पर रखा। मनु और सत्यवती की कथा के माध्यम से भारतीय संस्कृति और शास्त्रों की वैज्ञानिक आधार पर व्याख्या की। श्रृष्टि की उत्पत्ति से लेकर अब तक भारत की महान् ऋषि परम्परा की व्याख्या करते हुए उन्होंने भारत की अध्यात्मिक विरासत की व्याख्या की।
 
आज कथा स्थल पर कृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। संतों की महत्ता निरूपित करते हुए कथावाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज बताया कि संतों का संग दुर्लभ और अमोघ होता है। जिस प्रकार दाहकता अग्नि का स्वाभाविक गुण है, उसी प्रकार संतों का सान्निध्य प्राप्त होने से शीतलता, सुख, शांति, समृद्धि विनम्रता और सज्जनता बिना प्रयास किए ही आ जाते हैं। संतत्व से देवत्व के गुणों का विकास होता है। जैसे चंदन के सम्पर्क में आने वाली कुल्हाड़ी भी चंदन की सुगंध से सुवासित हो जाती है, वैसे ही संत अपने परिवेश को अपनी सुगंधी को सुवासित कर देते हैं। शास्त्र कहते हैं- संत मिलन को जाईये तजि ममता अभिमान, ज्यों ज्यों पग आगे बढ़े कोटिन्ह यज्ञ समान संतो का संग कोटि कोटि यज्ञों का फल देने वाला होता है।  उन्होंने भक्तों से आह्वान किया कि प्रति दिन धार्मिक सद्ग्रंथों का अध्ययन और श्रवण एक मात्र वो उपाय है जिससे आप सुख

शांति और समृद्धि का जीवन प्राप्त कर सकते हैं। समाज और परिवार को सुव्यवस्थित रूप से संचालित करने में स्त्री और पुरूष की समान सहभागिता पर जोर देते हुए उन्होंने भारत में सदा से ही स्त्री को देवी के रूप में पूजे जाने की परम्परा की व्याख्या अनेकों उद्धरणों के माध्यम से की। कथा में उपस्थित माताओं से उन्होंने बच्चों को संस्कारित करने की जिम्मेदारी निभाने की दिशा में नियमित कार्य किए जाने की अपील की।


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