संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पाकिस्तान पर फौजी हमले की एडवांस जानकारी इस हद तक अर्नब गोस्वामी को !
17-Jan-2021 5:23 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पाकिस्तान पर फौजी हमले  की एडवांस जानकारी इस हद तक अर्नब गोस्वामी को !

मुम्बई में एक महीने पहले पकड़ाया एक टीआरपी घोटाला एक नए नाटकीय मोड़ पर पहुंचा है। इस घोटाले में पुलिस को ऐसे सुबूत मिले थे जो बताते थे कि कुछ टीवी समाचार चैनल दर्शक संख्या बताने वाली एक संस्था, बार्क (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल), के साथ मिलकर साजिश करके, रिश्वत देकर अपनी दर्शक संख्या बढ़वा लेते थे, और उसी आधार पर उन्हें सरकारी-गैरसरकारी इश्तहार अधिक मिलते थे, अधिक रेट पर मिलते थे। इस मामले में एक-दो कम चर्चित चैनलों के अलावा देश में सबसे ज्यादा चीखने वाले समाचार चैनल, रिपब्लिक, को भी इस साजिश में  शामिल बताया गया था, यह एक और बात है कि इसके मुखिया अर्नब गोस्वामी को जब गिरफ्तारी से बचने की जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट जज ने रात बंगले पर उसका केस सुना, और अगली सुबह अदालत में उसे राहत मिल गई। इसी वक्त देश के दर्जन भर जलते-सुलगते गरीब-मुद्दे अदालत का दरवाजा खटखटा रहे थे जिनमें से किसी के लिए वह नहीं खुला था। खैर, इस बारे में अधिक लिखने से आज का मुद्दा किनारे धरे रह जाएगा जो एक अलग महत्व का है। 

अब मुम्बई पुलिस ने टीआरपी घोटाले में एक और चार्जशीट पेश की है जिसमें 50 से अधिक पेज अर्नब गोस्वामी की वॉट्सऐप चैट के हैं। यह बातचीत मोटेतौर पर टीवी दर्शक संख्या तय करने वाली संस्था, बार्क, के मुखिया के साथ है और यह बातचीत दर्शक संख्या तोडऩे-मरोडऩे, गढऩे से कहीं आगे जाकर देश की सुरक्षा के बारे में कुछ नाजुक बातों वाली है। 

दो दिन पहले जब यह दस्तावेज सामने आया कि मुम्बई पुलिस ने अर्नब गोस्वामी की चैट अदालत में दाखिल की है, तो हमने उस पर तुरंत नहीं लिखा और इंतजार किया कि सामने आए इन दस्तावेजों का कोई खंडन तो नहीं आता है। लेकिन अब तक अर्नब गोस्वामी की तरफ से इन दस्तावेजों को झूठा नहीं कहा गया, और अर्नब को चौबीसों घंटे चीखने के लिए अपना चैनल हासिल है, सोशल मीडिया हासिल है, देश के सबसे महंगे वकील हासिल हैं, और सुप्रीम कोर्ट हासिल है, फिर भी उन्होंने अपनी इस चैट को गलत, झूठा, या गढ़ा हुआ नहीं कहा, इसलिए अब इस पर लिखने का मौका है। 

अर्नब की इस बातचीत में पाकिस्तान के बालाकोट पर भारतीय वायुसेना की बहुप्रचारित एयर स्ट्राईक का जिक्र है कि भारत-पाकिस्तान पर कुछ बड़ा करने जा रहा है, और वह आम एयर स्ट्राईक से बहुत बड़ा रहेगा। इस एयर स्ट्राईक को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद बताया था कि किस तरह इस हमले के पहले उनके घर पर फौज के प्रमुख लोगों की बैठक हुई थी, और उसमें उन्होंने यह सुझाव दिया था कि आज बादल छाए हुए हैं, और आज यह हमला कर देना चाहिए क्योंकि बादलों के ऊपर उड़ते हिन्दुस्तानी फौजी विमानों को पाकिस्तानी रडार नहीं पकड़ पाएंगे। अब फौजी हमले की ऐसी रणनीति की जानकारी अर्नब को कुछ दिन पहले कैसे थी? और इसी चैट में अर्नब कुछ केन्द्रीय मंत्रियों के बारे में हिकारत से, कुछ की तारीफ में बात करते दिखता है, और प्रधानमंत्री कार्यालय तक अपनी पहुंच की बात करता है, शायद कहीं पर पीएम से मिलने का भी जिक्र है। तो देश का इतना बड़ा फौजी रहस्य अर्नब को एडवांस में कैसे मालूम था? और उसे यह भी कैसे मालूम था कि यह मामूली एयर स्ट्राईक से बहुत बड़ी कार्रवाई होने जा रही है? 

इसी चैट में एक दूसरी जगह कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले की तारीख से पहले की बातचीत भी है जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। इस हमले को इस चैट में अर्नब गोस्वामी अपनी शानदार जीत बताता है, और भारी खुशी और कामयाबी उसके शब्दों से झलकती है। लोगों को याद होगा कि कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह सहित देश के बहुत से लोगों ने पुलवामा हमले को लेकर बहुत से सवाल और बहुत से संदेह सामने रखे थे, और पाकिस्तानी गद्दार होने की गालियां खाई थीं। अब टीआरपी घोटाले की जांच के दौरान कानूनी रूप से जो चैट हासिल की गई, और अदालत में दाखिल की गई, वह अर्नब गोस्वामी की केन्द्र सरकार तक, प्रधानमंत्री कार्यालय तक, टीआरएआई जैसी संवैधानिक संस्था तक असाधारण पहुंच और पकड़ के उसके दावे दिखाती है। 

देश के कुछ जिम्मेदार मीडिया ने इन बातों को प्रकाशित करने के पहले अर्नब गोस्वामी और केन्द्र सरकार दोनों से संपर्क करके इन पर उनका पक्ष हासिल करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। ऐसे में मुम्बई पुलिस की अदालत में दाखिल की गई चैट को झूठ मानने की कोई वजह नहीं है। अभी कुछ महीने पहले तक अर्नब गोस्वामी अपने चैनल पर एक अभिनेता की मौत की खबरों में उससे जुड़े हुए लोगों की कई किस्म की चैट चटखारे लेकर दिखाते आया है, इसलिए यह माना जाना चाहिए कि अदालत में दाखिल की गई चैट पर खबरें, और उन पर लिखना अर्नब के पैमानों से भी नाजायज नहीं होगा। 

एक अमरीकी उपन्यासकार ने एक मीडिया मालिक की ताकत को लेकर एक रोमांचक उपन्यास लिखा था, और अर्नब गोस्वामी को देखकर, उसकी चैट पढक़र उस उपन्यास की याद आती है। इस उपन्यास में यह मीडिया-कारोबारी औरों को पछाडऩे के लिए भाड़े के हत्यारों या मुजरिमों से ऐसे बड़े-बड़े आतंकी हमले करवाता है जिनकी रिपोर्ट सबसे पहले उसी के अखबार में छपती है। मीडिया के अपने महत्व, और अपनी ताकत का मदमस्त महत्वोन्माद किस तरह सिर चढक़र बोलता है, और अपनी मिल्कियत से चीखता है, उसकी यह एक ऐसी मिसाल सामने आई है जिस पर केन्द्र सरकार को भी कुछ बोलने की जरूरत है। 

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