संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...भीड़त्या के डेढ़ दर्जन आरोपियों से केस वापिस! सुप्रीम कोर्ट जाग रहा है?
सुनील कुमार ने लिखा है
20-Nov-2025 6:39 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : ...भीड़त्या के डेढ़ दर्जन आरोपियों से केस वापिस! सुप्रीम कोर्ट जाग रहा है?

उत्तरप्रदेश में 2015 में एक मुस्लिम अखलाक के गांव में यह अफवाह फैली कि उसने अपने घर में गोमांस रखा है। इस बात की घोषणा गांव के मंदिर से लाउडस्पीकर पर हुई, और बात की बात में एक बड़ी भीड़ जुट गई, और अखलाक को उसके घर से निकालकर पीट-पीटकर मार डाला गया। उसे बचाते हुए उसके बेटे को भी गंभीर चोटें आईं। 2015 में ही पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट फाइल की जिसमें 15 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, और इनमें एक नाबालिग लडक़ा भी था, और एक स्थानीय भाजपा नेता का बेटा भी। 2017 में योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने, और उसके बाद 2021 से अखलाक-मॉबलिंचिंग मामले की सुनवाई शुरू हुई। देश में अपने किस्म की यह पहली भीड़त्या थी जिसे खबरों में मॉबलिंचिंग कहा गया था। अब उत्तरप्रदेश सरकार ने अदालत में अर्जी दाखिल की है कि वह सारे ही अभियुक्तों के खिलाफ हत्या के आरोप सहित तमाम आरोप वापिस लेना चाहती है।

क्या लोकतंत्र में इससे भयानक और कुछ हो सकता है कि एक मांसाहारी परिवार के व्यक्ति को उसके घर पर रखे गए मांस के गौमांस होने का आरोप लगाकर घर से निकालकर पीट-पीटकर मार डाला जाए? क्या देश में प्रशासन और पुलिस नहीं रह गए हैं कि जगह-जगह ऐसी गौ-गुंडई की जाए? कहीं राजस्थान में, कहीं हरियाणा में, अक्सर ही उत्तरप्रदेश में, और अब छत्तीसगढ़ में भी गौहत्या या गौमांस, या गौ-कारोबार, गौ-परिवहन का आरोप लगाकर किसी को भी पीट-पीटकर मार डाला जाता है। छत्तीसगढ़ में पिछले साल राजधानी रायपुर की सरहद पर एक पुल के ऊपर पशु व्यापारियों को पीट-पीटकर मार डाला गया, और फिर उन्हें पुल से कूदकर जान देना बता दिया गया। अपने आपको गौरक्षक कहने वाले लोगों ने 50-60 किलोमीटर तक पशु व्यापारियों की गाड़ी का पीछा किया, उस पर हमला करके उसे रोका, और उसमें कोई गाय नहीं थी, लेकिन तीन मुस्लिम पशु व्यापारी मार डाले गए। ये तीनों अपनी गाड़ी में भैंस ले जा रहे थे। उनमें से एक ने अपने परिवार को फोन लगाया था, और परिवार 47 मिनट तक इन लोगों के मार खाने की चीखें सुनते रहा। लेकिन जैसा कि अभी यूपी सरकार कर रही है, उस वक्त छत्तीसगढ़ की पुलिस ने इस घटना में किसी मारपीट का जिक्र नहीं किया, और यह दिखाया कि ये पशु व्यापारी पुल से नीचे कूदे, और पत्थरों पर गिरकर मर गए। जिन लोगों ने पीछा किया, हमला किया, उन पर हत्या का जुर्म भी दर्ज नहीं किया गया।

आज अखलाक को दिल्ली से 50 किलोमीटर के भीतर ही गादरी नाम के गांव में दफन हुए 10 बरस गुजर चुके हैं, और अब हत्या के सारे ही आरोपियों के खिलाफ सरकार मामला वापिस लेने की अर्जी लगा चुकी है। खबर बताती है कि इसमें राज्यपाल की अनुमति भी साथ में लगाई गई है। गौतम बुद्ध नगर जिले की अदालत में लगी इस अर्जी को लेकर बुद्ध क्या सोच रहे होंगे, इसका अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है। अब तक तो पुलिस या दूसरी जांच एजेंसियां, सरकारी या दूसरे वकील, और न्याय प्रक्रिया में शामिल दूसरे लोग धर्म के नाम पर रियायत करते हुए सुने जाते थे। लेकिन अब तो संविधान की शपथ लेकर काम करने वाली एक सरकार ने एक औपचारिक अर्जी ऐसी लगाई है, जो कि बुरी तरह हक्का-बक्का करती है।

लोगों को याद होगा कि गुजरात में दो-तीन बरस पहले 2002 के दंगों के दौरान एक गर्भवती मुस्लिम महिला से बलात्कार करने वाले, और उसके छोटे से बच्चे को मार डालने वाले 11 लोगों को राज्य और केन्द्र सरकार ने अच्छे चाल-चलन की फाइल बनाकर समय से पहले जेल से रिहा कर दिया था। जेल के बाहर इन्हें माला पहनाकर, मिठाइयां खिलाकर इनका सार्वजनिक अभिनंदन किया गया था। जब इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई, तो अदालत ने इन सारे लोगों को दुबारा जेल भेजा। हमारा ख्याल है कि यूपी की जिला अदालत में यूपी सरकार की लगाई हुई अर्जी का सुप्रीम कोर्ट को खुद ही संज्ञान लेना चाहिए, और इस सरकारी अर्जी को खारिज करते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहिए, और उससे पूछना चाहिए कि संविधान की शपथ का क्या हुआ? देश में आज जगह-जगह अल्पसंख्यकों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, और ऐसे में अल्पसंख्यकों की खुली भीड़त्या करने वाले लोगों को अगर इसी तरह माफी मिलती रही, तो वे क्या-क्या नहीं करेंगे, और देश में बाकी जगहों पर गाय के नाम पर इंसानों को काटने की घटनाएं कहां-कहां पर नहीं होंगी?

गुजरात दंगों के इस सबसे चर्चित बिल्किस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 मुजरिमों को रिहाई रद्द करके दो हफ्ते में जेल भेजा था, और इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- आपने कानून का कत्ल कर दिया है, यह रियायती-रिहाई नहीं, दगाबाजी है, और आपने जुर्म और मुजरिम दोनों को बचाने की कोशिश की। जजों ने कहा ये मिठाई क्या 15 अगस्त की बांट रहे थे? इन बलात्कारियों और हत्यारों को हीरो बना दिया गया। अदालत ने यह भी कहा कि गुजरात सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर बाम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलटने की हिमाकत की, गुजरात सरकार के पास ऐसी रियायत देने का हक ही नहीं था, फिर भी 11 मुजरिमों को छोड़ दिया! जजों ने कहा कि गैंगरेप और सामूहिक हत्या के इन मुजरिमों को इस तरह रिहा करना जनचेतना की हत्या है। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने कहा- बिल्किस बानो के साथ दो बार अन्याय हुआ, पहले 2002 में, दूसरी बार 2022 में जब इन्हें (हत्यारे-बलात्कारियों को) छोड़ा गया।

बिल्किस बानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात (और केन्द्र सरकार भी) को जैसी फटकार लगाई थी, लताड़ लगाई थी, वैसी ही अभी यूपी की योगी सरकार को लगाने की जरूरत है। देखते हैं सुप्रीम कोर्ट अभी जाग रहा है, या... (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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