संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कुत्तों के नाम पर इंसानों की तो ऐश हो गई...
25-Aug-2025 8:57 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : कुत्तों के नाम पर इंसानों की तो ऐश हो गई...

सरकारों के काम करने का तरीका बड़ा दिलचस्प रहता है कि हर सरकार, और सरकार के ढांचे में ऊपर बैठे लोग अपने से नीचे के लोगों पर जिम्मेदारियां डालते चलते हैं, और वे बेअक्ली की हद तक नीचे चली जाती हैं मानो कोटवार ही हर समस्या को हल करेगा। अभी सुप्रीम कोर्ट ने सडक़ों से कुत्तों को हटाने का फैसला बदला तो जिम्मेदारी सरकार पर आ गई कि कुत्तों की नसबंदी करवाई जाए क्योंकि सडक़ों से हटाना तो अब है नहीं। केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों को चिट्ठी लिख दी कि 70 फीसदी कुत्तों की नसबंदी करवाई जाए, और उन्हें एंटी रेबिज टीका लगाया जाए। समाचार बताता है कि अब तक केन्द्र इस बारे में केवल सुझाव देते आया था, लेकिन अब उसने राज्यों को एक स्पष्ट लक्ष्य दिया है, और हर महीने इसके पूरे होने के आंकड़े भेजने को भी कहा है। केन्द्र सरकार नसबंदी और टीकाकरण पर हर कुत्ते पर आठ सौ रूपए, और हर बिल्ली पर छह सौ रूपए राज्य को देगी। इसके अलावा संक्रमित या हिंसक कुत्तों को रखने के लिए अलग से आश्रय केन्द्र बनाने के लिए भी केन्द्र सरकार कुछ रकम देगी। जब सुप्रीम कोर्ट अगली किसी पेशी पर सरकार से इस बारे में पूछेगा, तो केन्द्र सरकार के पास चिट्ठियों की फाइल रहेगी कि उसने राज्यों को क्या-क्या लिखा है, और कितने पैसे दिए हैं। राज्य सरकारें यह काम म्युनिसिपल और पंचायतों को देगी, और ये स्थानीय संस्थाएं कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण करने वाली कुछ एजेंसियों, या कुछ एनजीओ के मार्फत इस काम को करवाएंगी।

भारत में सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार और बेईमानी के आम पैमानों को देखें तो लगता है कि जहां सडक़, बांध, पुल, या इमारत बनाने में भी परले दर्जे का भ्रष्टाचार होता है, वहां पर कुत्तों को टीका लगा है या नहीं, उनकी नसबंदी हुई है या नहीं, इसकी जांच-परख कैसे हो सकेगी? अगर निगरानी का काम किसी और संस्था को दिया जाएगा, तो वह संस्था भी रहेगी तो हिन्दुस्तानियों की ही, देश के प्रति ईमानदार रहने वाले जापानी तो हिन्दुस्तान की फुटपाथी-कुत्ता योजना चलाएंगे नहीं। जहां स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों की गिनती ज्यादा बताकर, उनके नाम पर यूनिफॉर्म, दोपहर का भोजन, किताब-कॉपी का घोटाला चलते ही रहता है, जहां पर मेडिकल कमिशन ऑफ इंडिया की जांच टीम को धोखा देने के लिए भाड़े के मरीज लाकर अस्पतालों में भर्ती कराए जाते हैं, वहां पर सडक़ों के कुत्तों की नसबंदी और उनका टीकाकरण कितनी ईमानदारी से हो सकेंगे? यह योजना सरकारों को बहुत सुहा सकती है, क्योंकि इसमें लंबी-चौड़ी ‘गुंजाइश’ रहेगी।

जब सुप्रीम कोर्ट के कहे हुए किसी बात को कड़ाई से लागू करवाना रहता है, तो ऊपर से लेकर नीचे तक उस काम के लिए बजट भी मंजूर हो जाता है, और काम को समय पर करने के लिए दबाव भी बने रहता है। लेकिन सडक़ों पर कुत्तों की बढ़ती हुई आबादी से जूझ पाना सुप्रीम कोर्ट के जजों के काबू के बाहर का है। सरकार खर्च के आंकड़े जरूर अदालत को बताती रहेगी, लेकिन वह खर्च कितना काम में आएगा, कितना नाली में बहते जाएगा, यह समझना मुश्किल है। भारत के कुछ आंकड़े बताते हैं कि देश में सिर्फ एक महानगर मुम्बई में पिछले एक दशक में बड़े पैमाने पर नसबंदी से कुत्तों की संख्या में 21 फीसदी गिरावट हुई है। लेकिन चेन्नई के आंकड़े बताते हैं कि 2018 से 2024 तक वहां सडक़ों पर कुत्ते तीन गुना से अधिक हो गए हैं। अकेली दिल्ली में 10 लाख कुत्तों का अनुमान है, जिनमें से पिछले छह महीने में 65 हजार कुत्तों की नसबंदी का दावा किया गया है, लेकिन एक लाख के करीब लोगों को इस शहर में कुत्तों ने काटा भी है। भारत में करीब सवा पांच करोड़ फुटपाथी कुत्तों का अंदाज है, और एक कुत्ते के नसबंदी और टीकाकरण पर डेढ़-दो हजार रूपए का खर्च आम है, कहीं-कहीं यह दो हजार रूपए से अधिक भी है। जिस तरह इंसानों की दवाईयां, इंसानों के बाकी चिकित्सा-उपकरण की खरीदी भारी भ्रष्टाचार में डूबी हुई है, उससे यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है कि बेजुबान, महज भोंकने वाले कुत्तों को महंगे टीके लगे, या सिर्फ कागजों पर टीकाकरण हो गया, नसबंदी ऑपरेशन हुआ, या कागजों पर नसबंदी दिखा दी गई, इसकी जांच कौन करेंगे? इसी देश में आपातकाल के दौरान सबका देखा हुआ है कि नसबंदी के आंकड़े किस तरह फर्जी भरे जाते थे ताकि संजय गांधी को खुश किया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि जिस इलाके से कुत्तों को उठाया जाए, उनके टीकाकरण, उनके पेट से कृमि हटाने, और नसबंदी करने के बाद उन्हें उसी इलाके में वापिस छोड़ा जाए। यह मानवीय लगता आदेश देश में दसियों लाख लोगों की कमाई का एक जरिया बन जाएगा, क्योंकि पूरी दुनिया का यह तजुर्बा है कि कुत्तों के टीकाकरण की जांच कर पाना संभव नहीं है। फिर यह भी है कि कुत्तों को रैबिज का टीका हर साल लगाने पर ही उसका असर रहेगा। आज तो इस देश में इंसानों की मतदाता सूची तय नहीं हो पा रही है, सडक़ के, या पालतू कुत्तों के नाम और फोटो से वोटर कार्ड, या निवासी कार्ड बन जा रहे हैं, डोनल्ड ट्रम्प को बिहार का निवासी बना दिया गया है, ऐसे में एक सरीखे दिखने वाले फुटपाथी कुत्तों का भला क्या रिकॉर्ड रह सकेगा कि उसे अगले साल फिर टीका लगाया जा सके?

दरअसल सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला लोगों को कुत्तों की आजादी का हिमायती लग रहा है, लेकिन सच तो यह है कि उस पर अमल किसी तरह से मुमकिन नहीं है। यह देश जितनी बेईमानी के सरकारी इंतजाम का शिकार है, उसमें इस तरह की कोई जटिल व्यवस्था कामयाब नहीं हो सकती। इस देश में अदालतों के साफ-साफ फैसलों के बाद कई-कई महीने तो कैदी रिहा नहीं हो पा रहे हैं, यहां पर सडक़ के कुत्तों का हिसाब-किताब भला कौन रखेंगे? फिलहाल सवा पांच करोड़ कुत्तों में से 70 फीसदी कुत्तों के नसबंदी और टीकाकरण में बहुत से लोगों के घर पैसों से भर जाएंगे, और उन्हें चाहिए कि वे कम से कम एक-दो फुटपाथी-कुत्ते तो पाल ही लें। आने वाले वक्त में यह देश कुत्तों के नाम पर कमाई का एक बड़ा सिलसिला देखेगा, और टीके बनाने वाली कंपनियां आज जश्न मना रही होंगी। फिलहाल अगर आप सडक़ पर पैदल, या दुपहिए पर चलते हैं, तो अपने आपको बचाकर चलें, क्योंकि देश का सुप्रीम कोर्ट भी अब आपको कुत्तों से बचाने वाला नहीं है। चलते-चलते सोशल मीडिया पर चल रहा एक पोस्टर बता देना ठीक होगा जो कह रहा है, इस देश में कुत्ते ही सबसे अधिक ताकतवर हैं, रातों-रात तीन जजों की बेंच बनवा दी, और दस दिनों में अपनी आजादी का फैसला पा लिया!

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