संपादकीय
अमरीका के सबसे चर्चित कारोबारी, और दुनिया के सबसे संपन्न व्यक्ति, एक्स और स्पेस-एक्स, टेस्ला जैसी कंपनियों के मालिक एलन मस्क दर्जन भर बच्चों के पिता हैं। उनका सबसे नया बच्चा शादी से परे के किसी संबंध से अभी सामने आया है। वे दुनिया में आबादी को खूब बढ़ाने के हिमायती हैं, और उनका कहना है कि आबादी का घटना मानव-प्रजाति के ऊपर सबसे बड़ा खतरा है। वे खुलकर कहते हैं कि अगर बुद्धिमान और सक्षम लोग बच्चे पैदा नहीं करेंगे, तो भविष्य असंतुलित होगा। इशारे-इशारे में वे कई बार यह बात कह चुके हैं कि समाज के शिक्षित और तकनीकी वर्ग में जन्मदर बहुत कम हो गई है, जबकि कम संसाधन वाले वर्गों में यह अधिक है। इस असंतुलन को वे दीर्घकालीन समस्या मानते हैं। उनकी इस सोच को गरीबविरोधी रईस सोच भी कहा जाता है। दूसरी तरफ एक अलग खबर है टेलीग्राम नाम के मोबाइल एप्लीकेशन के संस्थापक की है कि उसके दुनिया के 12 से अधिक देशों में सौ बच्चे हैं, और उनमें से जिनकी भी माँ आकर पावेल ड्यूरोव से डीएनए रिश्ता स्थापित कर सकेगी, उसे उनकी संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा। दरअसल, यह आदमी बीते कई बरसों से दुनिया में अच्छे और स्वस्थ शुक्राणु की कमी का तर्क देते हुए अपने देश रूस की एक प्रजनन शुक्राणु शाला के माध्यम से अपने स्पर्म मुफ्त में बांट रहा है। उसकी शर्त यही रहती है कि स्पर्म पाने वाली महिला 37 बरस से कम की रहनी चाहिए। पावेल ने इस उम्र सीमा की महिला के अपने शुक्राणु से गर्भधारण करने पर आईवीएफ तकनीक का पूरा खर्च उठाने का प्रस्ताव भी दिया है। अब यह बात जाहिर है कि यह रूसी कारोबारी 41 बरस की उम्र में दुनिया का एक सबसे सफल कारोबारी माना जाता है, और अगर ऐसे सेहतमंद आदमी के शुक्राणु से कोई महिला गर्भवती होती है, तो उसके बच्चे के स्वस्थ होने की संभावना भी अधिक रहती है। अब सोने में सुहागे की तरह अगर ऐसे बच्चे को 17 अरब डॉलर की इसकी सम्पत्ति में हिस्सा भी मिलेगा, तो ऐसा लगता है कि दुनिया की महिलाओं के बीच इसके लिए एक कतार भी लग सकती है। यह पूरी खबर कुछ अटपटी है, लेकिन दुनिया में संपन्न, ताकतवर, और सनकी लोगों के बीच ऐसी सोच और लोगों में भी हो सकती है।
अब हम ऐसी सोच के खतरे अगर देखें, तो दुनिया में अलग-अलग देशों में चिकित्सा वैज्ञानिक इस कोशिश में लगे हुए हैं कि शुक्राणु के स्तर पर ही कौन-कौन सी जांच करके गंभीर बीमारियों के खतरे वाले शुक्राणुओं का उपयोग कम किया जाए, या इसमें जेनेटिक चयन करके उनमें ऐसी बीमारियों के खतरे पहले से समझ लिया जाए, और उनका उपयोग न किया जाए। इससे परे अभी जेनेटिक एडिटिंग स्पर्म के स्तर पर शायद नहीं आई है। प्रयोगशालाओं में जिस तरह से अलग-अलग स्पर्म में से सबसे स्वस्थ, और बीमारीरहित स्पर्म छांटने का मुकाबला चल रहा है, उससे एक बात हो रही है कि इसका खर्च उठाने की क्षमता रखने वाले संपन्न वर्ग के होने वाले बच्चों में गंभीर बीमारियों वाले बच्चे कम हो सकते हैं। इसके बाद वे अपनी संपन्नता का फायदा उठाकर बाकी कई बीमारियों से भी बच सकते हैं, या उनक इलाज करवा सकते हैं। दूसरी तरफ दुनिया में जो विपन्न तबका है, उसके सामने शुक्राणु-चयन जैसी कोई सहूलियत नहीं है, न ही कोई जांच उनको हासिल है, और उनके होने वाले बच्चे अभावों में ही बड़े होते हैं। नतीजा यह होता है कि संपन्न और विपन्न के बीच आज जो महज आर्थिक फासला है, वह धीरे-धीरे बढ़ते हुए साधारण, और अधिक स्वस्थ डीएनए के बीच फासले सरीखा भी होते चले जाएगा।
फिर इस रूसी कारोबारी जैसी हसरत वाले और लोग भी अगर सामने आने लगेंगे, अपने स्पर्म से हजारों बच्चे पैदा करने लगेंगे, आत्ममुग्धता आसमान तक चली जाएगी, तो एक वक्त ऐसा आ सकता है कि दुनिया से जेनेटिक विविधता कुछ कम होने लगे। हम ऐसे दिन की कल्पना करें जब ऐसे एक-एक संपन्न, या बहुत अधिक प्रतिभाशाली, स्वस्थ, मशहूर खिलाड़ी, या चर्चित व्यक्ति अपने शुक्राणु बांटने को तैयार हो जाएं, और एक-एक से हजारों बच्चे होने लगें, तो दुनिया में विविधता और कम हो सकती है। इससे दुनिया में बेहतर समझे जाने वाले रूप-रंग, कद-काठी, सुंदर, स्वस्थ लोगों की एक नई जमात खड़ी हो सकती है, जिसके मुकाबले दूसरे लोग कुछ कमजोर भी लग सकते हैं। ऐसे दिन की कल्पना आज आसान नहीं है, लेकिन एआई जैसे औजार के इस्तेमाल से यह नौबत अधिक दूर तक जा सकती है, क्योंकि दुनिया के सिरफिरे या सनकी, या तानाशाही मिजाज वाले आत्ममुग्ध लोग यह सोच सकते हैं कि उन्हें दूसरे आम लोगों के मुकाबले अधिक बच्चे पैदा करने का हक है, और फिर कृत्रिम गर्भाधान तकनीक से तो किसी एक व्यक्ति के शुक्राणुओं से उसके जीवनकाल में लाखों महिलाओं को गर्भवती किया जा सकता है। ऐसे में अगर पुरूष की हसरत के साथ अतिसंपन्नता जुड़ जाए, या उसका शुक्राणु लेने और गर्भवती होने का खर्च उठाने की ताकत महिलाओं में भी हो, तो भी दुनिया से डीएनए विविधता कम होने लगेगी, और उसके कुछ अलग खतरे रहेंगे।
दुनिया में पिछले दसियों हजार बरस में इंसान डीएनए की विविधता के दौर से गुजरते हुए अधिक मजबूत हुए हैं, और वे तरह-तरह की बीमारियों और महामारियों का सामना करने के लिए अधिक तैयार हैं। आज भी भारत के अंडमान निकोबार के कुछ बिल्कुल ही अछूते टापुओं के आदिवासियों पर यह खतरा मंडराता है कि उनका बाहर की दुनिया से कोई भी संपर्क नहीं रहा है, और किसी बाहरी व्यक्ति से मिलने पर उन्हें जो संक्रामक रोग हो सकते हैं, उससे निपटने की क्षमता उनकी नहीं है। इसलिए दुनिया में अलग-अलग नस्लों की मिलावट, और अलग-अलग तरह की जिंदगी के कई फायदे भी हैं, इससे इंसानों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है, और वे सीमित रक्त समूह वाले समुदायों के मुकाबले अधिक मजबूत हुए हैं।
आज जिस मुद्दे पर हम चर्चा कर रहे हैं, वह एक काल्पनिक खतरा है। लेकिन उसकी एक बड़ी मिसाल तो एक खरबपति कारोबारी की खुद की मुनादी से साबित हुई है। हो सकता है कि ऐसे बहुत से सनकी तानाशाह या कारोबारी हों, जो कि आज भी दुनिया के बहुत से शुक्राणु केन्द्रों को भुगतान करके अपने शुक्राणु को अधिक फैला रहे हों। इंसान की दुनिया पर राज करने की चाह का यह भी एक तरीका तो हमेशा से रहा ही है कि अपनी आल-औलाद को अलग-अलग साम्राज्य पर काबिज किया जाए। यह पूरा सिलसिला आज एक कल्पना के लायक है कि दुनिया विविधता की ताकत से दूर इस किस्म की सीमित शुक्राणु वाली जगह बनकर कैसे-कैसे खतरे झेलेगी? आपकी पहुंच अगर एआई तक हो, तो आपको इस बारे में उससे पूछना चाहिए, और यह मानकर चलना चाहिए कि किसी धर्म, विचारधारा, राजनीति, या निजी व्यक्ति पूजा के चलते इस तरह की बात हो सकती है कि किसी गुरू की अनुयायी महिलाएं उसके शुक्राणु से माँ बनने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाएं।


