संपादकीय
आन्ध्र के मुख्यमंत्री चन्द्राबाबू नायडू ने अभी एक बेनाम दानदाता के तिरूपति मंदिर को दिए गए दान की जानकारी दी जो कि शायद इस मंदिर को मिलने वाला एक सबसे बड़ा चढ़ावा है। उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति ने भगवान वेंकटेश्वर से आशीर्वाद मांगकर कारोबार शुरू किया था, और उसमें उसे बड़ी कमाई हुई। उसने अपनी कंपनी के 60 फीसदी शेयर बेचे, और उससे उसे 6 हजार करोड़ रूपए मिले। उसने समाज और तिरूपति मंदिर का उपकार चुकाने के लिए मंदिर में करीब 140 करोड़ रूपए दाम का 121 किलो सोना दिया है। इस मंदिर में देव प्रतिमा को हर दिन सोने के जो गहने पहनाए जाते हैं, वे 120 किलो के रहते हैं, यह जानकार इस दानदाता ने उससे अधिक सोना दिया है, और अपना नाम भी नहीं बताया है। लोगों को यह बात पहले से पता भी होगी कि दक्षिण भारत में, और तिरूपति के दूसरे राज्यों में बसे भक्तों के बीच भी यह बात प्रचलन में है कि वे अपने कारोबार में भगवान वेंकटेश्वर को भागीदार बनाते और बताते हैं, और फिर कमाई का एक हिस्सा इस मंदिर को चढ़ा देते हैं।
बिना वाहवाही और नाम कमाए कोई व्यक्ति अगर दान करे, तो उसका अधिक महत्व भी होता है। दुनिया में कई जगहों पर लोग दान तो करते हैं, लेकिन अपने या परिवार के नाम के ट्रस्ट बना लेते हैं, और फिर उसके मार्फत अपनी कमाई का एक हिस्सा समाज को देते हैं। लोगों को याद होगा कि किस तरह दुनिया के कुछ सबसे बड़े कारोबारी, वारेन बफेट और बिल गेट्स ने अपनी आधी, या उससे भी अधिक संपत्ति समाज के लिए देना तय किया, और वे लगातार दान देते चल रहे हैं। ये कारोबारी दुनिया के दूसरे अतिसंपन्न लोगों को भी इस बात के लिए हौसला देते हैं कि वे भी समाज को लौटाने का काम करें। भारत में भी कई ऐसे बड़े कारोबारी हैं जो अपनी संपत्ति का एक बहुत बड़ा हिस्सा समाज को दे रहे हैं, और खुद बहुत सादगी की जिंदगी जीते हैं। अजीम प्रेमजी ने हजारों करोड़ रूपए समाज पर बेहतरी के लिए खर्च करना जारी रखा है, और वे खुद विमान की इकॉनॉमी क्लास में चलते हुए देखे जाते हैं। वे अपनी दौलत का बहुत बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं, और उनका फाउंडेशन सात राज्यों में साढ़े तीन लाख स्कूलों में वे शिक्षकों को ट्रेनिंग देने का काम करता है, और उनके दान की रकम अविश्वसनीय किस्म की है। उनके मुकाबले इस देश में सैकड़ों गुना बड़े दौलतमंद भी अपनी जेब के कुछ सिक्कों जितना दान भी नहीं करते हैं। भारत में एक दिक्कत यह लगती है कि लोग, अधिकतर लोग धर्म के नाम पर ही जेब से पैसा निकालते हैं, किसी मंदिर, या किसी बाबा के लिए वे मोटा दान देने तैयार हो जाते हैं, लेकिन समाज के सबसे जरूरतमंद तबकों की सीधी भलाई के लिए कोई सामाजिक संगठन बनाने, या किसी साख वाले सामाजिक संगठन को सीधे दान देने वाले लोग कम हैं। इसलिए अजीम प्रेमजी सरीखे लोगों का एक ऐतिहासिक महत्व है, और वे हो सकता है कि देश के दूसरे अरब-खरबपतियों के लिए एक मिसाल भी बन सकें।
कल की ही खबर है कि अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने छत्तीसगढ़ सरकार के साथ एक एमओयू किया है जिसके तहत वह अंबिकापुर में और धरमजयगढ़ में अस्पताल बनाएगा, बालिकाओं को उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप देगा, और अभी चलाए जा रहे चार सौ झूलाघरों को बढ़ाकर ढाई-तीन हजार झूलाघरों तक ले जाएगा। आज देश में किसी भी धर्म के दानदाताओं में अजीम प्रेमजी का योगदान बेमिसाल है, और इस बात से देश के जिन भी हमलावर तबकों को कोई नसीहत मिल सकती है, उन्हें लेनी चाहिए। इस मौके पर हम यह भी याद दिलाना चाहते हैं कि कई किस्म के संगठन जरा सी कोई सामाजिक मदद करके अपने ढेर सारा प्रचार जुटाते हैं। कहीं-कहीं से ऐसी तस्वीरें भी सामने आती हैं जिनमें अस्पताल में भर्ती मरीज को एक केला या सेब थमाते हुए दर्जन भर लोग अपनी फोटो खिंचवाते हैं। गरीबों की बहुत मामूली मदद का ऐसा अश्लील नगदीकरण करने वाले लोगों को वाहवाही की जगह धिक्कार मिलनी चाहिए, ऐसे लोगों को यह भी देखना चाहिए कि तिरूपति में कल 140 करोड़ का चढ़ावा चढ़ाने वाले ने अपना नाम भी उजागर करना पसंद नहीं किया। ऐसे लोगों को यह भी याद रखना चाहिए कि विमान की सबसे मामूली सीट पर सफर करने वाले अजीम प्रेमजी कितने बड़े दानदाता हैं, और कई देशों में अपने बेटे की शादी का जलसा मनाने वाले, उस एक शादी पर हजारों करोड़ रूपए खर्च करने वाले खरबपति का दान का क्या रिकॉर्ड है। चाहे अमरीका के अतिसंपन्न लोग हों, चाहे योरप के, उनमें से हजारों लोग इकट्ठे होकर अब अपनी सरकारों से यह मांग भी कर रहे हैं कि अतिसंपन्नता पर टैक्स बढ़ाना चाहिए क्योंकि आज क्षमता के बावजूद ऐसे लोगों पर टैक्स बहुत ही कम है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प सरीखे लोग बहुत बड़े कारोबारी होने के बाद भी इतनी तिकड़मों से टैक्स चुराते हैं कि अमरीकी अदालतों में उनके खिलाफ मामले बड़ी संख्या में चल रहे हैं।
अच्छी समाजसेवा करने वाले कोई धर्मस्थान हों, धार्मिक संगठन हों, ऐसा बहुत कम होता है। इसलिए लोगों को बिना धार्मिक भावना के सीधे समाज सेवा करने वाले लोगों को, संगठनों को दान देना चाहिए, या उनके दान का आकार बहुत बड़ा हो, तो उन्हें अजीम प्रेमजी फाउंडेशन जैसी संस्था बनाकर दान का सद्उपयोग करना चाहिए। धर्म का दान अगर चर्च के रास्ते भी किसी देश पहुंचता है, तो बहुत से मामलों में वह धर्मांतरण में इस्तेमाल होता है। इसलिए धर्म का चक्कर ही बेकार है। लोगों को सीधे भरोसेमंद संगठन छांटने चाहिए, या खुद होकर मदद के लायक लोगों को ढूंढकर उनकी मदद करनी चाहिए। आपके पास अगर निजी जरूरतों से अधिक पैसा है, और उस पैसे का समाज के जरूरतमंद लोगों के लिए कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है, तो यह आपकी हिंसा के बराबर है। पैसे पर सांप के कुंडली मारकर बैठने की कहावत चलती है, लेकिन सांप को तो नाहक बदनाम किया जाता है, इंसान ही अधिकतर ऐसी कुंडली मारकर बैठते हैं। उनके मरने के बाद उनकी इज्जत कहावतों के सांप जितनी ही रहती है।


