संपादकीय
हिन्दुस्तान की आजादी की सालगिरह मनाने के लिए कल से चारों तरफ लाउडस्पीकर बज रहे हैं, और तरह-तरह के देशभक्ति के गाने बजाए जा रहे हैं। इन सबको सुनकर एक बार फिर ध्यान जाता है कि देश और दुनिया जा किधर रहे हैं, पहुंचे कहां तक हैं, और पूरी बर्बादी में वक्त कितना बाकी है। आजादी की सालगिरह है तो हिन्दुस्तान की, लेकिन इस देश के साथ-साथ बाकी दुनिया का हाल भी गहराई से जुड़ा हुआ है, इसलिए बाकी दुनिया को देखे बिना हिन्दुस्तान के हाल, या बदहाल का अंदाज लगाना कुछ मुश्किल है। अमरीका जिस खूंखार अंदाज में टैरिफ लगा चुका है, उससे भारत से वहां जाने वाला सामान बहुत बुरी तरह मार खा सकता है। आने वाले दिनों में यह कम या ज्यादा जो भी हो, भारत से निर्यात करने वाले लोगों का भरोसा और ढांचा दोनों ही चूर-चूर हो चुके हैं। भारत के अलग-अलग हिस्सों से खबरें आ रही हैं कि अमरीका जाने वाले सामान के निर्यात के ऑर्डर किस तरह कम हो रहे हैं, और चीजों का प्रोडक्शन कम होने से किस तरह के कारखाने पहले बंद होंगे, किनका रोजगार पहले जाएगा।
एक तरफ तो यह आर्थिक अस्थिरता और अनिश्चितता बनी हुई है, दूसरी तरफ जुर्म की अलग-अलग खबरें बताती हैं कि किस तरह भारत के कई हिस्सों में कुटीर उद्योग की तरह साइबर क्राईम पनप रहा है, और जवानों से लेकर रिटायर्ड बूढ़ों तक को मोटी कमाई का झांसा देकर, या ब्लैकमेल करके उनके बैंक अकाऊंट खाली करवा दिए जा रहे हैं। आज अगर देश में हर दिन दसियों हजार लोग इस तरह के झांसे में फंस रहे हैं, अपना सब कुछ गंवा बैठ रहे हैं, तो यह समाज की सुरक्षा व्यवस्था चौपट हो रही है, और दूसरी तरफ मुजरिम आत्मविश्वास से भर रहे हैं, मोटी कमाई से ताकतवर हो रहे हैं। फिर मानो यह भी काफी न हो, इस हिसाब से आज ऑनलाईन सट्टेबाजी ऐसे धड़ल्ले से चल रही है कि केन्द्र और राज्य सरकारों के सारे कानून मिलकर भी उसे नहीं रोक पा रहे हैं। देश के लोगों की मेहनत की कमाई इस ऑनलाईन सट्टेबाजी के रास्ते देश के बाहर निकल जा रही है, और अर्थव्यवस्था से हर तरह के जुर्म की कमाई बाहर-बाहर रहती है।
एक दूसरी खबर आज की नशे के कारोबार को लेकर है। कुछ बरस पहले उड़ता पंजाब नाम से नशे से समाज की जो बर्बादी फिल्म और चर्चा में सामने आई थी, आज देश भर में नशा फैल चुका है, और हम अपने आसपास नशे की हालत में किए जा रहे कत्ल देख रहे हैं, नशे का कारोबार देख रहे हैं। जब पुलिस की पकड़ में बड़े सीमित साधनों में भी एक-एक शहर में करोड़ों का नशे का कारोबार आ रहा है, नौजवान पीढ़ी के बीच शराब से परे भी तरह-तरह का नशा दिख रहा है, वह हिंसा में बदलते भी दिख रहा है, तो आने वाले दिन तो खराब ही रहेंगे। ऐसे जुर्म के धंधे की कमाई इतनी मोटी रहती है, और भारत में इन पर रोक लगाने के जिम्मेदार सरकारी विभाग इस कदर भ्रष्ट हैं कि इन दोनों को मिलाकर देखें, तो नशे के कारोबार को कोई रोक नहीं सकते। दूसरी तरफ नौजवान पीढ़ी का एक हिस्सा बेरोजगारी की निराशा में, तो दूसरा हिस्सा अतिसंपन्नता में अलग-अलग किस्म के नशे में डूब रहे हैं, और तरह-तरह के हादसे सामने आ रहे हैं।
अब इन दिनों छाई हुई एक और खबर को देखें कि मोबाइल फोन पर पोर्नो देख-देखकर नाबालिग लडक़े नाबालिग लड़कियों और बहुत छोटी बच्चियों से भी रेप कर रहे हैं, वीडियो बना रहे हैं, उसे फैला रहे हैं, या ब्लैकमेल कर रहे हैं। दूसरी तरफ मोबाइल फोन के इस्तेमाल को लेकर दीवानगी ऐसी छा गई है कि बच्चों से लेकर अधेड़ लोगों तक, जिसे मोबाइल का बेजा इस्तेमाल करने से रोका जाए, वे खुदकुशी पर उतारू हो जा रहे हैं। इससे परे भी कल की ही छत्तीसगढ़ की बलौदाबाजार जिले की खबर है जिसमें एक नाबालिग स्कूली छात्रा ने मोबाइल फोन के बहुत अधिक इस्तेमाल से रोकने वाले अपने दादा को कुल्हाड़ी से काट-काटकर मार डाला, और इसके बाद वह स्कूल भी चली गई। इससे बड़ी पारिवारिक हिंसा और भला क्या हो सकती है? आज हर दिन दर्जनों ऐसी खबरें आती हैं जिनमें पति, पत्नी, और प्रेमी या प्रेमिका के बीच के किसी त्रिकोण में दो लोग मिलकर तीसरे को मार डाल रहे हैं। जिस समाज में जुर्म और हिंसा बड़े पैमाने पर होने लगे हैं, वह समाज किस बुरी तरह प्रभावित होता है, इसका अंदाज लगाना अधिक मुश्किल नहीं है।
भारत की आजादी की सालगिरह पर आज जब इस देश से जुड़े हुए बहुत से मुद्दों को देखते हैं, तो लगता है कि दिक्कतें और खतरे इस बरस शायद पहले के मुकाबले बड़े अधिक पैमाने पर छाए हुए हैं। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, और इधर दूसरी तरफ बांग्लादेश में जिस तरह हिन्दुओं के साथ हिंसा हो रही है, और भारत के बहुत से हिस्सों में जिस तरह मुस्लिम और ईसाई अल्पसंख्यकों से हिंसा हो रही है, उन्हें देखकर लगता है कि भारत और आसपास के तमाम देशों में धर्म के आधार पर तरह-तरह की हिंसा हो रही है, और धर्म ने एक सार्वजनिक-विकराल रूप ले लिया है, और वह हिंसा को बढ़ाते चल रहा है। अब दुनिया चूंकि एक वैश्विक गांव है, और यहां की तमाम बातें एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, इसलिए ट्रम्प का अमरीका, पुतिन का रूस, और शी का चीन, ये सब आपस में, और भारत जैसे देश के साथ या तो टकरा रहे हैं, या जुड़ रहे हैं। यह सब बड़ा बदलाव पता नहीं कहां ले जाने वाला है। इतना तो तय है कि ट्रम्प की नीतियों से इस देश में जितनी बेरोजगारी आ रही है, वह दसियों हजार नौकरियों के जाने की किस्तों में आईटी सेक्टर में सामने आई है, लाखों भारतीय छात्र और कामगार अब अमरीका नहीं जा सकते, कनाडा से रिश्ते खटाई में पड़े हुए हैं, और पाकिस्तान के साथ तनातनी अभूतपूर्व बढ़ी हुई है। इनमें से हर दिक्कत और खतरे के दाम देश को अर्थव्यवस्था की शक्ल में भी चुकाने पड़ते हैं।
भारत की आजादी की सालगिरह के मौके पर तीन रंगों और देशभक्ति के गानों के साथ-साथ ऐसी कड़वी हकीकत पर भी एक नजर डालना चाहिए कि क्या आज के सारे खतरों को अनदेखा करते हुए सिर्फ जश्न और जलसे मनाना काफी है, जिम्मेदारी की बात है?


