संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भारत में भारतीय विमान का सबसे बड़ा हादसा, और उससे निकली नसीहत
सुनील कुमार ने लिखा है
13-Jun-2025 4:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : भारत में भारतीय विमान का सबसे बड़ा हादसा, और उससे निकली नसीहत

गुजरात के अहमदाबाद में एयरपोर्ट से उड़ान भरते ही एयर इंडिया का विमान जिस तरह नीचे गिरा, वह पूरा हादसा वीडियो पर कैद है। तकनीकी जानकार अटकलें लगा रहे हैं कि विमान में ऊपर उठने की ताकत क्यों खो दी थी, लेकिन जांच में अभी वक्त लगेगा, तब तक 229 मुसाफिरों, 12 विमानकर्मियों, और विमान गिरने से ध्वस्त हुए एक मेडिकल-हॉस्टल के 28 लोगों के अंतिम संस्कार चलते रहेंगे। इसमें भी तीन-चार दिनों का वक्त लगेगा, क्योंकि अधिकतर लाशें बुरी तरह जलकर कोयले सरीखी हो गई हैं, उनके टुकड़े-टुकड़े बिखर चुके हैं, और उनकी शिनाख्त के लिए रिश्तेदारों के साथ डीएनए मैचिंग अभी चल रही है। देश के इतिहास में किसी घरेलू उड़ान का यह सबसे बुरा हादसा है, और इससे अधिक संख्या में 1996 में दिल्ली के एक गांव चरखी-दादरी के ऊपर दो विदेशी मुसाफिर विमान हवा में टकराए थे, और दोनों के मिलाकर 349 मुसाफिर सारे के सारे मारे गए थे। एयर इंडिया के ही एक और विमान में बम विस्फोट से 1985 में कनाडा में 329 लोग मारे गए थे, लेकिन वह विदेशी समंदर पर हुआ हादसा था, भारत की जमीन पर नहीं।

विमान हादसा पर हमारे कोई विचार नहीं है कि हम उस पर यहां लिखें। यह पूरी तरह से तकनीकी मामला है, अगर किसी जांच में यह न निकले कि किसी ने छेड़छाड़ करके विमान में ऐसी दिक्कत खड़ी कर दी थी कि वह उड़ते ही गिर पड़े। लेकिन कुछ बुनियादी सवाल जानकार लोगों ने ऐसे उठाए हैं कि उन पर सरकार और रेगुलेटरी संस्थाओं को सोचना चाहिए। कुछ लोगों का कहना है कि अभी जब टाटा ने मोदी सरकार से एयर इंडिया को खरीदा, तो उसे बहुत खराब हालत में यह कंपनी मिली। इसका एक संकेत कुछ महीने पहले केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की उस पोस्ट से मिलता है जिसमें उन्होंने एयर इंडिया के विमान में उन्हें टूटी हुई सीट मिलने की बात लिखी थी, और उसकी फोटो भी पोस्ट की थी। अब अगर केन्द्रीय मंत्री को इस विमान में ऐसा हाल मिलता है, तो हो सकता है कि विमान बहुत खस्ताहाल हों। और यह भी हो सकता है कि चूंकि मोदी सरकार ने ही खटारा हो चुकी कंपनी टाटा को दी थी, इसलिए सरकार के मातहत काम करने वाली निगरानी एजेंसियां भी एयर इंडिया के साथ किसी कमी-बेसी पर अनदेखी कर रही हों। हालांकि टाटा जैसी साख वाली कंपनी से ऐसी किसी लापरवाही की उम्मीद तो नहीं है, लेकिन यह हो सकता है कि सरकारी कंपनी जिस बदहाल में पहुंच गई थी, उसे साल-दो साल के भीतर ही पूरी तरह सुधार लेना टाटा के भी बस में न रहा हो। हम अभी तकनीकी लापरवाही, या किसी तरह की बदमाशी की अटकलों पर और अधिक सोचना नहीं चाहते, क्योंकि पायलटों के संदेश सहित विमान की पल-पल की जानकारी की जांच अब शुरू हो चुकी होगी, और इस विमान को बनाने वाली कंपनी भी सरकार के साथ मिलकर देखेगी कि 11 बरस उड़ान भरने के बाद इसमें कोई तकनीकी खामी तो नहीं रह गई थी।

लेकिन इस मौके पर हम इससे बिल्कुल अलग ऐसी बात करना चाहते हैं जो ऐसे मौके पर ही की जा सकती है। इसका दुर्घटना से अधिक लेना-देना नहीं है, लेकिन सैकड़ों जिंदगियों से लेना-देना है जो कि कुछ मिनटों में ही खत्म हो गईं। चाहे मुसाफिर हों, चाहे विमानतले दबी इमारत में मारे जाने वाले लोग हों, इनमें से कोई भी तो ऐसे अंत के लिए तैयार नहीं रहे होंगे। इनमें से हर किसी की जिंदगी की कई तरह की जटिलताएं छूट गई होंगी, अधूरे काम रह गए होंगे, हिसाब-किताब, और जमीन-जायदाद का काम रह गया होगा, अपने पैसे किसी और के पास छूट गए होंगे, किसी और के पैसे अपने पास रह गए होंगे। कुल मिलाकर ऐसे किसी भी हादसे में जब लोग अचानक मारे जाते हैं तो उनके पास कोई वसीयता बनाने का वक्त तो रहता नहीं है। जिस तरह किसी के अंतिम संस्कार के वक्त ही लोगों को कुछ बातें सूझती हैं, और बाद में वे श्मशान वैराग्य की तरह धुंधली पड़ जाती हैं, उसी तरह ऐसे हादसों के वक्त लोगों को कम से कम कुछ बातों को सोचना तो चाहिए कि समय रहते अपनी जिम्मेदारी कैसे पूरी की जाए। कल इस हादसे के कुछ घंटों के भीतर ही इस अखबार के यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल पर हमने एक वीडियो बनाकर पोस्ट किया था, जिसमें दुर्घटना की तस्वीरें, और वीडियो रहने से यूट्यूब ने उसे आज सुबह तक रोककर रखा, और बिना फेरबदल उसे जाने दिया। उसमें भी हमने कल दोपहर ही यह बात उठाई थी कि लोगों को साल में कम से कम दो बार अपने सारे हिसाब-किताब, लेन-देन, और बकाया कामकाज की लिस्ट बनाकर अपने परिवार को देना चाहिए, कारोबार या दफ्तर, दोस्त या भागीदार उनको भी उनसे संबंधित सारा हिसाब-किताब देना चाहिए, वरना किसी भी किस्म के हादसे में, या किसी प्राकृतिक मौत के तहत जिसकी जिंदगी अचानक खत्म हो जाती है, वे अपने आसपास कई तरह की पहेलियां और सवाल छोड़ जाते हैं, और उनके जवाब लेने, जानकारी पाने कोई उनके पीछे ऊपर तो जा नहीं सकते। इसलिए हर किसी को अपनी सीमित या अधिक दौलत, और लेन-देन की जानकारी हर बरस कम से कम दो बार आसपास के लोगों को देनी चाहिए, ताकि बाद में उसे लेकर कोई विवाद न हो। इस हिसाब-किताब से हमारा यह मतलब भी है कि लोगों को अपनी नई या पुरानी किसी भी तरह की संपत्ति को लेकर भी बंटवारे की वसीयत करनी चाहिए ताकि बाद में आल-औलाद उसके लिए एक-दूसरे के कत्ल पर उतारू न हो जाएं।

हर किसी की जिंदगी में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण दिन रहते हैं, जन्मदिन और सालगिरह, पुरखों की पुण्यतिथि, या कैलेंडर के कोई ऐसे दिन जो हर बार याद रहें, ऐसे दिनों पर लोगों को बैठकर पिछले बरस तक के हिसाब-किताब को अपडेट करना चाहिए। आज एलआईसी, और बैंकों के पास दसियों हजार करोड़ रूपए लोगों के ऐसे डूबे हुए हैं जिनके कोई दावेदार नहीं है। जाहिर है कि इन लोगों ने अपने परिवार को समय रहते हिसाब-किताब नहीं दिया, और अचानक चल बसे। बहुत से लोग नगदी या गहने कहीं छुपाकर रख देते हैं ताकि सरकारी एजेंसियों की नजर न पड़े, और फिर परिवार को भी उसकी खबर नहीं रहती। हमारे अपने शहर में एक सरकारी बंगले में एक पेड़ के इर्द-गिर्द मिट्टी खोदते हुए माली को वहां से ढेर सारा सोना मिला था, जिसे उसने एक रात तो अपने पास रख लिया, लेकिन अगले दिन उससे तनाव बर्दाश्त नहीं हुआ, और उसने थाने में जाकर सारा सोना जमा कर दिया। अब एक बहुत कमाऊ विभाग के अफसरों का यह बंगला लंबे समय से इसी विमान के अलग-अलग अफसरों के पास था, और उनमें से किसने सोने को दफनाकर छोड़ दिया था, यह आखिरी तक रहस्य बना रहा, और शायद उसके कोई भी दावेदार सामने नहीं आए, क्योंकि सोना मिलता या न मिलता, कोई जांच जरूर मिल जाती। अब हम जो हिसाब-किताब छोडक़र जाने की सलाह दे रहे हैं, उसमें लोग बंद लिफाफे में यह भी छोडक़ जा सकते हैं कि नींबू के पेड़ के नीचे क्या दफन है, और कटहल के नीचे क्या है। अब अगर किसी माली को यह लिफाफा खुलने तक वह सब हाथ नहीं लगा, तो हो सकता है कि वारिसों को छोड़ा हुआ वह धन मिल जाए।

इतने बड़े हादसे से यह सबक तो लोग ले ही सकते हैं कि जिंदगी कितनी अस्थिर और अस्थाई है। साथ-साथ यह अमल करने की समझदारी भी दिखानी चाहिए कि हर साल-छह महीने में लोग अपनी जिम्मेदारियों का लेखा-जोखा घर-परिवार, और अपने कारोबार में करते चलें, वरना लेनदार तो कुछ न कुछ याद दिलाते हुए बाद में आकर खड़े रहेंगे, देनदार पहचानने से भी इंकार कर देंगे। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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