संपादकीय

केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम की खबर है कि वहां एक ब्यूटीपार्लर में शादी की तैयारी कर रही एक दुल्हन पर होने वाले दूल्हे को शक हुआ तो उसने पुलिस को खबर की, और महिला को गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वह इसके पहले सात लोगों से शादियां करके, गहने लेकर भाग चुकी थी, और कुछ घंटों के भीतर 8वीं शादी करने जा रही थी। अभी दो हफ्ते पहले ही छत्तीसगढ़ की भी एक ऐसी खबर आई जिसमें एक मैरिज ब्यूरो चलाने वाली महिला ने उस तक पहुंची एक महिला को कोई लडक़ा पसंद न आने पर, अपनी खुद की पति से उसकी शादी करवा दी, और बाद में उस पति ने इस नई बीवी को खूब ठगा-लूटा। इस तरह के मामले जगह-जगह सामने आ रहे हैं कि भारतीय समाज में शादी के लिए जो आम दबाव रहता है, उसके चलते कहीं लुटेरी दुल्हनें तैयार हो रही हैं, तो कहीं शादी का वायदा करके देह संबंध और बलात्कार हो रहे हैं। ऐसे में क्या सरकार की भी कोई भूमिका हो सकती है?
जिस तरह शादी में कुछ धर्मों और जातियों के लोग कुंडलियां मिलाते हैं, उसी तरह हाल के बरसों में यह सोच बढ़ती जा रही है कि लडक़े-लडक़ी की सेहत की जांच करवानी चाहिए ताकि अगर वे किसी गंभीर बीमारी के शिकार हैं, तो उसका पता लग सके। इससे दो बीमार लोगों के बीच शादी टल सके, ताकि अगली पीढ़ी का किसी जेनेटिक-बीमारी का शिकार होना कम हो सके। हम यहां पूरी तरह से मेडिकल-जुबान नहीं बोल रहे हैं, आम लोगों को समझ में आए, ऐसी बात कर रहे हैं। इसके अलावा समाज अपने स्तर पर भी लोगों की जानकारी रखता, और एक-दूसरे को देता है, लेकिन वह बहुत ही असंगठित, और अनौपचारिक सिलसिला रहता है जिसमें किसी जानकारी के पुख्ता होने की गारंटी नहीं रहती है। अब शहरीकरण के साथ-साथ जब दूसरी जातियों, और दूसरे धर्मों में भी शादियां होने लगी हैं, तो नए-नए शहरों में नए जात-धरम में जानकारी देने वाले लोग रहते भी नहीं हैं, और कई लोग एक से अधिक शादियां करके मजे में दोनों-तीनों घर चलाते रहते हैं, या दो-तीन लोगों को लूटते रहते हैं।
हमारा ख्याल है कि सरकार एक ऐसी सहूलियत मुहैया करा सकती है जिसमें शादी की दिलचस्पी रखने वाले दोनों पक्ष आपसी सहमति से अपने आधार कार्ड, और दूसरी जानकारियां सरकार के किसी पोर्टल में डालें, और उन्हें यह जानकारी मिल जाए कि दूसरे पक्ष के खिलाफ कोई जुर्म तो दर्ज नहीं है, कोई अदालती मामला तो नहीं चल रहा है, उनकी पहले की शादी, या बच्चों की क्या स्थिति है? यह सरकारी मैच-मेकिंग पूरी तरह से मनमर्जी की हो सकती है, और अगर दोनों पक्ष सहमत हों तो सरकार अपनी पैथालॉजी लैब में दोनों के खून की जांच, और बाकी जांच करवाकर दोनों पक्षों को रिपोर्ट भी दे सकती है ताकि किसी संभावित जेनेटिक समस्या की जानकारी शादी के पहले ही हो सके। ऐसा इसलिए भी बेहतर होगा कि आज केन्द्र और राज्य सरकारों की बहुत सी इलाज-योजनाओं का खर्च तो कुल मिलाकर सरकारों पर ही आता है, और अगर आबादी को शादी के बाद की बीमारियों से बचाना है, तो उनकी मर्जी और सहमति से ऐसी जांच पहले हो सकती है। इस तरह सरकार किसी जुर्म के रिकॉर्ड का भी पता लगाकर बता सकती है, और किसी बीमारी के खतरे का भी। अब अगर किसी युवक या युवती के खिलाफ पहले धोखा देकर पांच-सात शादियां करने की रिपोर्ट दर्ज है, तो उसे आधार कार्ड जैसी पहचान से आसानी से तलाशा जा सकता है।
अब शहरीकरण के बाद रिश्ता तय करने के परंपरागत सामाजिक तौर-तरीके बहुत काम के नहीं रह गए हैं। दूसरी तरफ शादियों के लिए जो मेट्रीमोनियल वेबसाइटें हैं, उनमें भी लोग तरह-तरह का धोखा देते हैं। इसलिए जानकारी का सच-झूठ पकडऩे के लिए अगर सरकार अपने रिकॉर्ड की सहूलियत मुहैया कराएगी, तो फिर बाद में बहुत सी एफआईआर, गिरफ्तारी, मामले-मुकदमे, और जेल का बोझ भी सरकार पर से हटेगा। आज हालत यह है कि लोगों को मोबाइल फोन के लिए एक सिमकार्ड लेना होता है, या गैस कनेक्शन, उसके लिए भी आधार कार्ड जैसी शिनाख्त देनी होती है। इसलिए शादी जैसी जिंदगी भर की व्यवस्था के पहले बेहतर जांच जरूरी है। इससे उन लोगों का भी पता लग सकता है जो कि अपने कामकाज या नौकरी के बारे में प्रेम या शादी के वक्त झूठी जानकारी देते हैं। अब चूंकि सरकारें हर जमीन-जायदाद को भी आधार कार्ड के साथ जोड़ रही हैं, इसलिए रिश्तों के पहले सरकारी छानबीन से दोनों पक्षों को एक-दूसरे की आर्थिक स्थिति का भी पता लग सकता है, ताकि उसे लेकर न झूठ बोला जाए, और न बाद में किसी तलाक की नौबत आने पर संपत्ति को लेकर विवाद हो।
जनकल्याणकारी सरकार को लोगों की मर्जी और आपसी सहमति से उनके लिए इतना काम करना चाहिए। जैसे-जैसे सरकारी रिकॉर्ड, पुलिस एफआईआर, अदालती फैसले, टैक्स और दूसरी जांच एजेंसियों के रिकॉर्ड का कम्प्यूटरीकरण हो रहा है, वैसे-वैसे इस तरह की मैच मेकिंग आसान होती जाएगी। संपन्न तबका तो फिर भी अपने सामाजिक संपर्कों के चलते दूर-दूर तक के रिश्तों का सच-झूठ जान लेता है, लेकिन गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों के पास ऐसी जांच-पड़ताल का कोई जरिया रहता नहीं है। ऐसे में सरकार को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए, और एक नेशनल रिकॉर्ड ब्यूरो बनाकर ऐसी जांच का तरीका विकसित करना चाहिए।