संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जुर्म के वीडियो देख-देखकर जुर्म से बच नहीं रहे, कर रहे..
सुनील कुमार ने लिखा है
31-May-2025 6:21 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : जुर्म के वीडियो देख-देखकर जुर्म से बच नहीं रहे, कर रहे..

कल की दो खबरें ऐसी हैं जिनमें एक बड़ी कंपनी के शोरूम से लाखों के महंगे मोबाइल की चोरी पकड़ाई, और यह पता लगा कि एक बड़े कारोबारी के बेटे ने अपने महंगे शौक पूरे करने के लिए लिए गए कर्ज को चुकाने यह चोरी की थी। चोरी तक तो ठीक था, अब पता यह लगा है कि उसने यूट्यूब पर देख-देखकर इस चोरी का तरीका तय किया, और चोरी के मोबाइल नकली बिल बनाकर लोगों को बेच दिए। अब ऐसे कई लोग गिरफ्तार हो गए हैं। एक दूसरी खबर और भी भयानक है, जिसमें इसी प्रदेश छत्तीसगढ़ में एक महिला के कत्ल में उसका सरकारी इंजीनियर पति गिरफ्तार हुआ, और उसने इंटरनेट पर लगातार यह ढूंढा था कि कत्ल के सुबूत कैसे मिटाए जाएं। इसके साथ-साथ उसने यूट्यूब पर जुर्म के करीब डेढ़ सौ एपिसोड और देखे थे, ताकि कत्ल का तरीका तय कर सके। इसके बाद उसने स्कूल से रोज के वक्त पर लौटती अपनी पत्नी को एक गाड़ी से कुचल डाला, और पहली नजर में यह सडक़ हादसे में मौत लग रही थी। बाद में पत्नी की बहन ने शक जाहिर किया, और जब पति की इंटरनेट सर्च हिस्ट्री देखी गई, तो पता लगा कि वह लंबे समय से बीवी को मारने की तैयारी कर रहा था। उसने यहां तक साजिश तैयार कर ली थी कि कत्ल में उसका हाथ न दिखे, इसलिए किस तरह उसके लोकेशन को फोन कहीं और दिखाता रहे। उसने अपना फोन ड्राइवर और एक सहयोगी के साथ दूर एक जगह, 70 किलोमीटर दूर भेज दिया, और वहां से उन्हें अलग-अलग कॉल करने को कहा ताकि उसकी खुद की मौजूदगी किसी और जगह दिखे। और इस वक्त वह 60 हजार रूपए में भाड़े पर लिए गए हत्यारे के साथ उस गाड़ी में बैठा था जिससे कुचलकर उसने पत्नी को मारा।

अब अपराध के कार्यक्रमों को देखने के शौकीन कई लोगों को ऐसा लगता है कि वे जुर्म के तरीकों की जानकारी पाकर अपने को खतरों से बचा सकते हैं। हो सकता है उनका सोचना सही हो, लेकिन दूसरी तरफ यह बात भी है कि जुर्म के कार्यक्रम, चाहे वे फिल्मों के हों, या किसी टीवी के, वे लोगों को एक रास्ता भी दिखाते हैं। अभी कल की ही एक दूसरी खबर और भयानक है, जो कि राजधानी रायपुर के बगल की उद्योग नगरी भिलाई की है। वहां पर एक अधेड़ महिला फोन पर झांसा देने वाले ठगों से इतनी दहशत में आ गई कि मनीलॉंड्रिंग और सीबीआई की जांच जैसी धमकियां सुनकर, वह अपने बुजुर्ग मां-बाप के साथ एक महीने तक ठगों के ऑनलाईन कब्जे में डिजिटल अरेस्ट रही, और इन ठगों ने उसे धमकाकर किस्तों में 55 लाख रूपए ठग लिए। उसकी दहशत का हाल यह था कि बैंक ने इस तरह अंधाधुंध रकम निकालने पर इस महिला से पूछा भी कि वह किसी ऑनलाईन ठगी का शिकार तो नहीं है, लेकिन उसने इससे इंकार कर दिया क्योंकि उसे गिरफ्तारी का डर दिखाया गया था।

अब ठगी का यह मामला दोनों किस्म की जानकारी बताता है। ठग भी हर दिन अखबारों में ऐसे जुर्म की खबरें पढक़र एक नया धंधा पा रहे हैं, दूसरी तरफ लोग भी इसे पढक़र सावधान हो रहे हैं। लेकिन आम लोगों के मुकाबले मुजरिमों की मनोवैज्ञानिक पकड़ अधिक मजबूत रहती है, और वे जानते हैं कि दहशत में कैसे लाया जाए। लोग हर दिन अखबारों में ठगी की ऐसी खबरें पढ़ते हैं, लेकिन अपने को बचा नहीं पाते। जब उन्हें गिरफ्तारी की धमकी मिलती है, तो उनकी सामान्य समझबूझ काम करना बंद कर देती है, और आत्मरक्षा में वे अपने पास की पाई-पाई दे देने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि सरकार की साइबर-सुरक्षा की तैयारी देश और दुनिया के साइबर-मुजरिमों की तैयारी के मुकाबले बहुत कमजोर है। अब भारत सरकार ने साइबर-जुर्म की शिकायत करने के लिए 1930 नंबर का फोन घोषित किया है, लेकिन कल ही जब रायपुर में एक सावधान महिला अकाउंटेंट ने उसे दिए जा रहे धोखे को भांपकर, सारे सुबूतों और स्क्रीनशॉट के साथ 1930 नंबर पर शिकायत की, तो वहां उसके साथ बदतमीजी की गई। अब दहशत में आए हुए लोग अगर किसी तरह साइबर-धोखाधड़ी की शिकायत भी करना चाहें, और उनके साथ बदसलूकी हो, तो वे कहां जाएं? जब तक उनके खाते खाली नहीं हो जाते, तब तक ठग उनके खून की आखिरी बूंद भी चूस लेते हैं, और उसके बाद सरकार के करने का बहुत कम बचता है।

हम इस मुद्दे पर तकरीबन हर महीने एक बार लिख देते हैं, और सरकार को यह सुझाते भी हैं कि उसे साइबर-अपराधों, या दूसरे किस्म के आर्थिक अपराधों की जांच एजेंसियों से परे खुफिया-निगरानी एजेंसी अलग से बनानी चाहिए, जो कि जुर्म के सिलसिले को शुरू में ही पकड़ सके। लेकिन ऐसी किसी एजेंसी के पास जानकारी देने का हौसला तो लोगों का तभी होगा जब वहां उनके साथ बदतमीजी न हो। केन्द्र और राज्य सरकारों को अपने-अपने स्तर पर साइबर-जागरूकता बढ़ानी चाहिए, ताकि उसके नागरिकों की जमापूंजी इस तरह लूटी न जा सके। यह भी समझने की जरूरत है कि ऐसे हर जुर्म के बाद इन मुजरिमों की आर्थिक ताकत भी बढ़ जाती है, और उनका तजुर्बा भी। और जुर्म की कमाई जाहिर है कि दूसरे किस्म के जुर्म में ही इस्तेमाल होती है, और सरकार की नीयत अगर कालेधन पर काबू पाने की है, तो जुर्म की पूरी कमाई तो सिर्फ कालाधन ही रहती है। हमने पहले भी यह सुझाया है कि सरकार को अपने बैंकिंग सिस्टम में एआई की मदद से ऐसी निगरानी रखनी चाहिए कि जहां कहीं किसी खाते से अंधाधुंध पैसा निकल रहा हो, या किसी खाते में अंधाधुंध पैसा पहुंच रहा हो, या किसी खाते से पैसा आते ही दूसरे खाते में भेजा जा रहा हो, तो बैंक के कम्प्यूटर तुरंत ही एजेंसियों को अलर्ट कर दें। भिलाई के इस मामले में बैंक को शक भी हो गया था कि इस महिला के खाते से असामान्य रूप से रकम दूसरे खातों में भेजी जा रही है, फिर भी उस बैंक ने किसी जांच एजेंसी को, या पुलिस को खबर नहीं की। अब बैंकिंग गोपनीयता के भीतर अगर आज ऐसी गुंजाइश नहीं भी है, तो भी ऐसी संभावना का रास्ता निकालना चाहिए। आज बिना चाकू-पिस्तौल के सिर्फ एक मोबाइल फोन लेकर, और सीबीआई या नार्कोटिक्स ब्यूरो, या ईडी के अफसर बनकर लोग वीडियो कॉल पर किसी परिवार की जिंदगी भर की कमाई को खा जा रहे हैं। इससे परे यह भी समझने की बात है कि एक अधेड़ और दो बुजुर्ग लोगों को महीने भर डिजिटल अरेस्ट रखने से उस तनाव में उनकी जिंदगी पर कोई भी खतरा आ सकता था। ऐसे हर मामले का बारीकी से अध्ययन करके सरकारों को अपने इंतजाम की कमजोरियों को परखना चाहिए, और सुधारना चाहिए।

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