संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सर्वदलीय सहयोग, और ओछे राजनीतिक हमले, दोनों साथ-साथ कैसे?
सुनील कुमार ने लिखा है
27-May-2025 2:45 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सर्वदलीय सहयोग, और ओछे राजनीतिक हमले, दोनों साथ-साथ कैसे?

भारत से सांसदों के सात प्रतिनिधि मंडल 32 देशों के लिए भेजे गए हैं, जो अलग-अलग जगहों पर जाकर वहां भारत सरकार का पक्ष रखेंगे कि पाकिस्तान की तरफ से कैसी आतंकी कार्रवाई की वजह से भारत को उस पर फौजी कार्रवाई करनी पड़ी है, और किस तरह पाकिस्तान लगातार ऐसी हरकतों में लगे रहता है। इसके लिए केन्द्र की मोदी सरकार की तरफ से अलग-अलग पार्टियों के सांसदों को चुना गया है, और इनमें मोदी सरकार ने उसकी कटु आलोचक विपक्षी पार्टियों से भी उनके सांसद मनोनीत करने की अपील की थी, ताकि देश के बाहर देश की एकता की एक तस्वीर पेश की जा सके। यह एक अलग बात है कि कांग्रेस के भीतर से जो नाम सरकार के मांगे उसे दिए गए थे, उनमें से सिर्फ एक नाम लिया गया था, और उससे परे के एक नाम, शशि थरूर को सरकार ने जोड़ा था। बाद में सरकार का यह कहना था कि उसने कांग्रेस को सिर्फ सूचना दी थी, उससे कोई नाम नहीं मांगे थे। लेकिन इस घरेलू विवाद को छोड़ दें क्योंकि अब प्रतिनिधि मंडल अलग-अलग देशों में पहुंच रहे हैं, और वहां भारत का पक्ष रख रहे हैं।

इस बीच कल आई यह खबर हक्का-बक्का करती है कि इन्हीं प्रतिनिधि मंडलों में शामिल भाजपा के निशिकांत दुबे ने अमरीकी सरकार का 1963 का एक गोपनीयतामुक्त टेलीग्राम पोस्ट करते हुए यह लिखा है- आयरन लेडी इंदिराजी और उनके पिताजी नेहरूजी कश्मीर के अवैध कब्जे पाकिस्तान के द्वारा 1948 के बाद दुबारा मध्यस्थ अमेरिका और ब्रिटेन के दबाव में भारत सरकार के मंत्री स्वर्णसिंहजी व जुल्फिकार अली भुट्टो की लगातार बैठक 1962 से 1964 के बीच हुई। इस कागज को गौर से पढि़ए, भारत ने पुंछ और उरी पाकिस्तान के द्वारा जबर्दस्ती हथियाए भूभाग को पाकिस्तान को देने का फैसला ही कर लिया था। इतने पर ही मामला नहीं रूका, गुरेज में पूरी नीलम और किशनगंगा घाटी के साथ लाईन ऑफ कंट्रोल की अंतरराष्ट्रीय सीमा। भारत की आज की समस्या का एकमात्र कारण कांग्रेस का हाथ? किसके साथ?

अब निशिकांत दुबे ने एक्स पर ऐसे एक टेलीग्राम की कॉपी पोस्ट की है, और उसके ठीक नीचे एक पाठक ने एक्स के एआई ग्रोक से पूछा क्या यह जो बता रहा है वो सच है? इसके जवाब में ग्रोक ने वहीं पर अपनी राय दी है- निशिकांत दुबे का दावा कि 1962-64 में भारत ने कश्मीर के कुछ हिस्सों जैसे पुंछ, उरी, नीलम घाटी, और किशनगंगा घाटी को पाकिस्तान को देने का फैसला किया था, ऐतिहासिक रिकॉर्ड से समर्थित नहीं है। डी-क्लासिफाईड दस्तावेज, और शैक्षिक स्रोत बताते हैं कि स्वर्णसिंह भुट्टो वार्ता में क्षेत्रीय समायोजन पर चर्चा हुई, लेकिन कोई समझौता नहीं हुआ। दस्तावेज संभावित समायोजन की बात करते हैं, परंतु विशिष्ट क्षेत्रों को सौंपने का कोई सुबूत नहीं है। इसलिए यह दावा गलत प्रतीत होता है। कश्मीर मुद्दा जटिल है, और इसकी सटीक समझ के लिए और शोध जरूरी है।

सांसदों के विदेश प्रवास के बीच, जब मोदी सरकार ने अपनी कटु आलोचक पार्टियों के सांसदों को भी देश की एकता की तस्वीर पेश करने के लिए भेजा है, तब एक प्रमुख दल कांग्रेस के दो प्रधानमंत्रियों का नाम लिखते हुए 1963 के किसी कथित दस्तावेज के हवाले से, नेहरू पुण्यतिथि के ठीक एक दिन पहले ऐसा आरोप लगाना सरकार की कौन सी सूझबूझ है? इसके पहले भी निशिकांत दुबे देश में रहते हुए सुप्रीम कोर्ट के पिछले न्यायाधीश के खिलाफ देश के इतिहास का सुप्रीम कोर्ट पर सबसे गंदा और ओछा आरोप लगा चुके हैं, जिसमें उन्होंने उस वक्त के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को देश में चल रहे सभी गृहयुद्धों के लिए जिम्मेदार ठहराया था। बाद में भाजपा ने इस बयान से किनारा कर लिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की साख को खराब करने की यह खुली कोशिश हैरान कर गई थी कि सत्तारूढ़ पार्टी का सांसद किस हद तक जा सकता है, और सीजेआई पर तोहमत लगाने के लिए वह देश में कई गृहयुद्ध चलने की बात भी कह सकता है। इसके बाद दूसरी बार तब हैरानी हुई जब भाजपा ने लोकसभा में 240 और राज्यसभा में 86 सांसदों के रहते हुए ऐसे निशिकांत दुबे को देश की एकता दिखाने के लिए बनाए गए प्रतिनिधि मंडल में रखा, जिसने नेहरू पुण्यतिथि की पहली शाम देश के इतिहास को यह तोहफा दिया। इससे सवाल यह उठता है कि निशिकांत दुबे इस प्रतिनिधि मंडल में देश को एक बताने के लिए बाहर गए हैं, या देश के इतिहास को गालियां बककर वे नेहरू को विदेश से श्रद्धांजलि दे रहे हैं। अब कांग्रेस के जो सांसद भारत सरकार की मुहिम का साथ देने के लिए इन प्रतिनिधि मंडलों में गए हैं, वे अगर विदेश प्रवास से वापिस लौट जाएं, तो क्या वे कुछ गलत करेंगे? क्या अपने गुजरे हुए नेताओं को प्रसंगहीन गालियां बर्दाश्त करना राष्ट्रीय एकता के नाम पर उनकी जिम्मेदारी मानी जाएगी? अमरीकी सरकार का 1963 का कोई डी-क्लासिफाईड दस्तावेज जो संदेश दिखा रहा है, क्या उस संदेश के आधार पर नेहरू पुण्यतिथि पर नेहरू को इस तरह कोसा जाए?

सच तो यह है कि यह सिलसिला किसी भी तरह मासूम नहीं लगता है। जो निशिकांत दुबे अभी सुप्रीम कोर्ट में अपनी पिछली नाजायज और अलोकतांत्रिक बयानबाजी के लिए कटघरे में खड़ा ही है, उसी को ऐसे नाजुक कूटनीतिक अभियान पर भेजना, और फिर उसका विदेश से कांग्रेस पर ऐसा हमला करना, यह किस तरह की राष्ट्रीय एकता मुहिम है? अगर भाजपा की किसी रणनीति के तहत यह बयान नहीं दिया गया है, तो भाजपा को चाहिए कि इस बयान को नाजायज, गैरजरूरी, और पूरी तरह अवांछित ठहराए, और निशिकांत दुबे को वापिस बुलाए। ऐसा न होने पर कांग्रेस पार्टी को यह तय करना चाहिए कि सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद से अपने पार्टी-पुरखों के बारे में ऐसी गालियां सुनकर इस दौरे में शामिल रहना क्या अपने को देशप्रेमी साबित करने के लिए जरूरी है? क्या अपने को देशप्रेमी साबित करने के लिए इस तरह का अपमान झेलना जरूरी है? विपक्ष ने मोदी सरकार को पाकिस्तान के खिलाफ किसी भी कार्रवाई के लिए अपनी पूरी सहमति दी थी। इसके बाद लोगों को याद होगा कि ऑपरेशन सिंदूर के वक्त भाजपा ने सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदा सरकार को कांग्रेस और यूपीए जैसी कमजोर न होने की बात लिखी थी। वह सिलसिला चल ही रहा है। इसका कोई मकसद जाहिर तौर पर हमको समझ नहीं पड़ रहा है, और न ही इससे केन्द्र सरकार या देश को कोई मजबूती या साख मिल रही है। सर्वदलीय सहयोग, और ओछे राजनीतिक हमले, ये दोनों बातें साथ-साथ भला कैसे चल सकती हैं? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


अन्य पोस्ट