संपादकीय

भारत और पाकिस्तान के बीच बात सरहद से अधिक भीतर तक घुस आई है, और नागरिक इलाकों में ड्रोन और मिसाइल हमलों से लोगों की मौत होने लगी है, रिहायशी इलाकों में मकानों की बर्बादी हो रही है। जैसा कि किसी भी जंग में होता है, इन दोनों देशों में जो लोग जंग के हिमायती हैं, याकि पड़ोसी दुश्मन देश को खत्म करने की हसरत रखते हैं, वे लोग अपनी फौज को दूसरे देश की राजधानी तक पहुंचते देखना चाहते हैं। इन दोनों में से एक देश के टीवी चैनलों ने अपने देश की फौज को दूसरे देश की राजधानी तक पहुंचा भी दिया था, और सरकार को यह समझाना पड़ा कि इस तरह की बेबुनियाद अफवाहें न फैलाएं। दरअसल, सैकड़ों बरस से चारण और भाट वीर रस की कविताएं सुनाते आए हैं, और यह माना जाता है कि उनसे जोश भरता है, और सैनिक से लेकर सेनापति तक आत्मगौरव, देशप्रेम, और अपनी बहादुरी के आत्मविश्वास से भरकर मोर्चे पर टूट पड़ते हैं। हालांकि अभी भारत और पाकिस्तान के बीच थलसेना के एक-दूसरे के सामने टकराने, या दूसरे देश में घुस जाने जैसा दौर शुरू नहीं हुआ है, और सिर्फ हवाई हमले हो रहे हैं, या सरहद के पार से तोपों से गोले बरसाए जा रहे हैं। फौज की जुबान में कहें तो यह अभी पूरी तरह जंग में तब्दील नहीं हुआ है, अभी यह टकराहट की एक लड़ाई ही चल रही है, और मोटेतौर पर यह अपने जंगी इरादों को दिखाने का एक दौर है।
भारत और पाकिस्तान के बीच पहले कई बार जंग हो चुकी है, और ऐसी आखिरी जंग कारगिल में 1999 में निपट चुकी थी, और इस सदी का यह चौथाई हिस्सा परमाणु हथियार लैस इन दो पड़ोसी देशों के बीच बिना किसी जंग के अब तक चल रहा था। अब कुछ लोगों को जंग की हसरत खूब परेशान कर रही है, और सोशल मीडिया से लेकर सडक़ों तक उनकी बांहें फडफ़ड़ा रही हैं। झूठे सोशल मीडिया अकाउंटों से रात-दिन झूठ फैलाया जा रहा है, और दुश्मन को एक बार अच्छी तरह सबक सिखा देने के फतवे दिए जा रहे हैं। भारत में इस बारे में आत्मविश्वास कुछ अधिक दिख रहा है, लेकिन परंपरागत सैनिक-क्षमता कम होने पर भी पाकिस्तान में कुछ लोगों की बांहें अधिक फडक़ रही हैं, और वहां की सरकार के कुछ मंत्री खुलकर परमाणु हथियारों का जिक्र कर चुके हैं कि पाकिस्तान ने परमाणु हथियार सजाने के लिए नहीं बनाए हैं, और उनमें से हर हथियार का निशाना भारत के अलग-अलग शहरों पर रखा गया है। यह बात बहुत गैरजिम्मेदारी की इसलिए है कि परमाणु हथियार संपन्न देश भी उनके इस्तेमाल की बात इतनी लापरवाही से नहीं करते हैं। लेकिन इन दोनों देशों के बीच पाकिस्तान एक असफल लोकतंत्र है, वहां फौज निर्वाचित सरकार पर हावी है, और फौज की भी एक खुफिया यूनिट, आईएसआई पर ऐसी तोहमतें लगते आई हैं कि वह हिन्दुस्तान में आतंकी हमले करवाती है। इन सबसे परे पाकिस्तान एक धर्म आधारित देश है, और इस्लाम के नाम पर हिंसक और आतंकी हमले करने वाले संगठन वहां मौजूद हैं जो कि पाकिस्तान की जमीन पर ऐसे बड़े-बड़े आतंकी हमले करते आए हैं। ऐसा अस्थिर, कंगाल, और बेकाबू देश परमाणु हथियारों के जखीरे पर बैठा हुआ है, और लोगों को यह जानकर कुछ हैरानी भी होगी कि परमाणु हथियारों की गिनती में दोनों देशों में बहुत बड़ा फर्क नहीं है। और अगर सिर्फ जुबानी जमाखर्च के लिए परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की बात करें, तो इनमें से कोई एक देश भी अपने पूरे हथियारों से पूरी दुनिया को खत्म कर सकता है। ऐसे में परमाणु हथियार का लापरवाही से जिक्र करना एक भयानक सोच है, और हमें पूरी उम्मीद है कि अगर कोई सनकी ताकत किसी आत्मघाती इरादे से पाकिस्तानी परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की सोचेगी, तो अमरीका से लेकर चीन तक उसके मददगार, या शुभचिंतक देश दखल देकर उसे रोकेंगे। दुनिया परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का नुकसान झेल नहीं सकती।
अब इससे परे अगर परंपरागत सैनिक ताकत की बात करें, तो जिन लोगों को भारत और पाकिस्तान के बीच जंग लंबी लग सकती है, उन्हें इन दोनों के पास मौजूद हथियारों का अंदाज लगा लेना चाहिए। अगर दोनों देशों के बीच जंग पूरी तरह से, और बुरी तरह छिड़ जाती है, सेनाओं का पूरा इस्तेमाल होता है, तो भारत के पास आज मौजूद गोला-बारूद, और हथियार करीब दस दिन साथ दे सकते हैं। यह अंदाज कुछ बरस पहले का भारत के सीएजी का ही था। दूसरी तरफ पाकिस्तान के पास इसी दर्जे की जंग में भारत से उलझने पर करीब चार दिन का गोला-बारूद रहेगा। हम ऐसी किसी जंग के पहले दुनिया के दूसरे देशों, और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के दखल की उम्मीद रखते हैं, और यह मानते हैं कि नौबत इतनी खराब नहीं हो सकेगी। लेकिन फिर भी अमरीका के न्यूयार्क में वल्र्ड ट्रेड सेंटर की दो इमारतों पर ओसामा-बिन-लादेन के विमानों से हुए हमले की कल्पना भला किसने की थी? कोई आत्मघाती आतंकी, कोई दिमाग से सरका हुआ फौजी अफसर, अपने देश में बुरी तरह से असफल और अलोकप्रिय साबित हो चुका कोई नेता कब परमाणु हथियारों की बात सोच ले, उसका अंदाज लगाना अभी आसान नहीं है। और इन दोनों देशों के बीच एक-दूसरे परमाणु क्षमता को लेकर जो आशंकाएं हमेशा से बनी हुई हैं, उनके चलते कुछ भी हो सकता है। अभी हम लिखते हुए यहां पहुंचे ही हैं कि खबर आई है कि पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि परमाणु हथियारों के लिए जिम्मेदार राष्ट्रीय कमांड अथॉरिटी की कोई बैठक नहीं हुई है, और न ऐसी बैठक अभी तय है। आज सुबह ही वहां की सेना ने कहा था कि प्रधानमंत्री ने इस अथॉरिटी की बैठक बुलाई है, उसी का जवाब देते हुए रक्षामंत्री ने यह खंडन किया है। इस अथॉरिटी में फौजी अफसर, और पाकिस्तान सरकार के कुछ मंत्री मिलकर बैठते हैं, और इस मुद्दे पर इन दोनों पक्षों के बीच पिछले कुछ घंटों में सामने आया इतना बड़ा मतभेद पाकिस्तान में इस सबसे गंभीर पहलू में एक भयानक अस्थिरता की नौबत बता रहा है।
हमें उम्मीद है कि भारत की सरकार एक अधिक जिम्मेदार लोकतंत्र की भूमिका निभाएगी, और हिन्द महासागर के इस क्षेत्र में अपने आपको एक अधिक जिम्मेदार देश बनकर दिखाना भी चाहेगी। भारत में अभी तक किसी ने परमाणु हथियारों का जिक्र भी नहीं किया है, जो कि अधिक समझदारी की बात है। लेकिन निर्वाचित सरकारों के सामने अपने मतदाताओं के बीच एक विजेता की छवि बनाए रखने की मजबूरी भी रहती हैं। कई बार बंद कमरे की टेबिलों पर आमने-सामने बैठकर निपटाई जा सकने वाली टकराहट को भी फौजी तरीके से निपटाने की बेबसी सरकारों के सामने रहती है। हम इस बारे में लगातार लिखते आ रहे हैं कि इन दोनों देशों के जो हिमायती देश हैं, उनको दखल देकर दोनों को शांत करने की कोशिश करनी चाहिए, और इनके बीच आपस में रूबरू बातचीत हो सके, उसका माहौल बनाना चाहिए। दूसरी बात यह कि कई अंतरराष्ट्रीय संगठन ऐसे हैं जिनमें भारत और पाकिस्तान दोनों सदस्य हैं, और ऐसे संगठनों को इस नाजुक मौके पर सामने आना चाहिए, और इन दोनों देशों को समझाना चाहिए कि यह दौर जंग का नहीं है, बातचीत से चीजों को निपटाने का है। हमने देखा है कि जिस यूक्रेन को चार दिनों में जीत लेने का दावा रूस ने किया था, उसे वह तीन बरस में भी नहीं जीत पाया है। और कुछ ऐसा ही दावा गाजा में हमास को लेकर इजराइल का था, वहां भी इजराइल की पूरी फौजी ताकत से भी मामला निपटा नहीं है। भारत और पाकिस्तान दोनों को समझाते हुए संयुक्त राष्ट्र ने अभी एक से अधिक बार टकराव खत्म करने की बात कही है, और अमरीका सहित दर्जन भर देश दोनों देशों की सरकारों से लगातार पर्दे के पीछे या सामने टकराव घटाने, और बातचीत करने पर जोर दिया है। जंग में जीत किसी की नहीं होती है, बस हथियारों के कारखानेदारों, और सौदागरों की ऐश होती है, गरीबों के मुंह का निवाला छीनकर सरकारें हथियार खरीदती हैं।